पंडित उदय शंकर भट्ट
आज आपका दिन मंगलमयी हो, यही मंगलकामना है। ‘हिमशिखर खबर’ हर रोज की तरह आज भी आपके लिए पंचांग प्रस्तुत कर रहा है। आज से भीष्म पंचक प्रारंभ हो रहे हैँ।
आज का पंचांग
सोमवार, नवम्बर 11, 2024
सूर्योदय: 06:41 ए एम
सूर्यास्त: 05:29 पी एम
तिथि: दशमी – 06:46 पी एम तक
नक्षत्र: शतभिषा – 09:40 ए एम तक
योग: व्याघात – 10:36 पी एम तक
करण: तैतिल – 07:57 ए एम तक
द्वितीय करण: गर – 06:46 पी एम तक
क्षय करण: वणिज – 05:28 ए एम, नवम्बर 12 तक
पक्ष: शुक्ल पक्ष
वार: सोमवार
अमान्त महीना: कार्तिक
पूर्णिमान्त महीना: कार्तिक
चन्द्र राशि: कुम्भ – 02:22 ए एम, नवम्बर 12 तक
सूर्य राशि: तुला
ईश्वर सुधरने का अवसर जरूर देता है
ईश्वर किसी को भी सीधे दंड नहीं देता है। उसको सुधरने का अवसर जरूर देता है। श्रीराम ने रावण के साथ भी यही किया। रावण गलतियां पर गलतियां कर रहा था, राम अवसर पर अवसर दे रहे थे। युद्ध के दूसरे दिन लक्ष्मण जी को शक्ति लगी, हनुमान जी औषधि ले आए।
उसी रात रावण ने कुंभकरण को जगाया। कुंभकरण ने जब सारी बात सुनी, तो रावण से कहा कि ये आपने ठीक नहीं किया, ‘हैं दससीस मनुज रघुनायक, जाके हनुमान से पायक।’ ‘अरे भाई रावण, श्रीराम साधारण मनुष्य नहीं है, और आप उनसे टकरा गए, जिनके हनुमान जैसे सेवक हैं।’ जिस पर रावण इतना भरोसा कर रहा था, वही कुंभकरण रावण को समझा रहा है।
रावण समझ गया कि किसी की बुद्धि फेरना हो, तो उसकी कमजोरियों पर हाथ रखो। कुंभकरण को मदिरा-मांस पेश की गई और कुंभकरण असहमत होते हुए भी राम से युद्ध करने चला और मारा गया। दशहरे पर हमको एक शिक्षा लेनी चाहिए कि ईश्वर सब जानता है, हमारी अच्छाई भी बुराई भी, और वो हमको अवसर देता है, पर अक्सर हम रावण की तरह चूक जाते हैं।
आत्मा अजर-अमर
देव-दुर्लभ मानव शरीर पाकर भी हम प्रेम, एकता, परोपकार और सेवा आदि गुणों को धर्म के अनुसार नहीं कर रहे हैं। यह एक शाश्वत सत्य है कि जो आया है उसे एक दिन जाना है, लेकिन मनुष्य अज्ञानता व सत्संग के अभाव में ‘जाना’ भूल जाता है और तरह-तरह के सांसारिक लोभ-मोह के मायाजाल में फंसा रहता है।
आत्मा तो अजर-अमर है। उसका विनाश नहीं होता। भक्ति मार्ग पर चलने वाला मनुष्य कभी मरता नहीं, सत्संग करने वालों और उसी के अनुसार अपने जीवन को ढालने वालों को कोई नहीं मार सकता। भक्ति मार्ग पर चलने वाला कुछ ऐसा कर जाता है कि वह कभी नहीं मरता। धर्मग्रंथों के अनुसार भाग्यहीन है वह व्यक्ति, जो मरते समय कुछ साथ नहीं ले जाता है।
ईश्वर की भक्ति में लगे भक्त को इस तरह की चिंता नहीं रहती। वैसे भी गुरु-मत, संत-मत और शास्त्र-मत के अनुसार जीवन को सुव्यवस्थित रूप से ढालने वाला ही अपने साथ कुछ ले जाता है। अधिकांश लोग इस गूढ़ ज्ञान को न जानने के कारण अपनी जीवन वृथा ही गुजार देते हैं। ऐसा व्यक्ति अपने साथ परोपकार ले जाता है। मानव की पहचान प्यार, सद्भाव, परोपकार, शांति और वंचितों की मदद करने आदि गुणों से होती है। अपनी इसी पहचान को खोने वाला मानव पशु तुल्य है। संतों, महापुरुषों, गुरुजनों की सच्ची व सबसे बड़ी सेवा यह नहीं कि धन, पुष्पहार अर्पित कर उनकी आरती उतारें, बल्कि उनकी सच्ची व सबसे बड़ी सेवा तो उनके उपदेशों को अपने जीवन में उतारने की है और उनके बताए रास्ते पर चलने की है।
गुरुजनों, संतों और महापुरुषों को पहनाए जाने वाले हार का एक आध्यात्मिक अर्थ है। उसमें हार पहनाने वाला सुमन यानी अच्छा मन अर्पित करता है और कहता है-हे गुरुदेव! (सुमन) अच्छा मन तो है नहीं, मन प्रदूषित है, इस पुष्पहार के माध्यम से अपना मन-जीवन अर्पित कर रहा हूं। आप ही कृपा करके इसे सुंदर व पावन बना दें। आज के वैज्ञानिक तो तरह-तरह के प्रदूषणों के बारे में चिंतित हैं, लेकिन हमारे संत, महापुरुष और प्रबुद्ध जन युगों पूर्व से वैचारिक व सांस्कृतिक प्रदूषण को लेकर चिंतित रहे हैं। इतना ही नहीं उन्होंने इनसे मुक्ति का मार्ग भी बताया और दिखाया है।