आज का पंचांग: निराशा में नहीं,आशा में जिएं

पंडित उदय शंकर भट्ट

Uttarakhand

आज आपका दिन मंगलमयी हो, यही मंगलकामना है। ‘हिमशिखर खबर’ हर रोज की तरह आज भी आपके लिए पंचांग प्रस्तुत कर रहा है।

हमारे शास्त्रों में बताया है कि चार युग हैं और चारों युग में अलग-अलग वृत्ति के मनुष्य रहते हैं। अब हम मनुष्यों के भीतर भी चार युग हैं। हम 24 घंटे में चारों युग से गुजरते हैं। ऐसा कहते हैं कि हमारी अशांति का अर्जन हम ही करते हैं और हमारी शांति का सृजन भी हम ही करते हैं।

ऐसे ही जो युग हमारे भीतर होगा, हम वैसी ही हरकतें या क्रियाकलाप करने लगेंगे। राम और भरत के इस वार्तालाप के जरिए तुलसीदास जी ने संकेत दिया है- ‘ऐसे अधम मनुज खल कृतजुग त्रेतां नाहिं। द्वापर कछुक बूंद बहु होइहहिं कलिजुग माहिं।’ ‘ऐसे नीच और दुष्ट मनुष्य सत्ययुग और त्रेता में नहीं होते। द्वापर में थोड़े से होंगे और कलियुग में तो इनके झुंड के झुंड होंगे।’

इसका मतलब यह है कि जब हमारे भीतर कलियुग उतरता है तो हम उस समय गलत काम करते हैं। द्वापर में एक भ्रम बना रहता है, क्या सही क्या गलत। त्रेता और सतयुग में हम सत्कार्य ही करेंगे। इसलिए हम दिन भर में अपना जो भी मूल्यांकन करें, एक विश्लेषण ये भी करें कि कौन-सा युग हमारे भीतर किस अवधि में सक्रिय हो रहा है। कोशिश तो ये की जाए कि हमारा आचरण सतयुग और त्रेतायुग जैसा हो। भौतिक सफलताएं चाहे जितनी अर्जित कर लें, पर अच्छाई जरूर कमाई जाए।

आज का पंचांग

शुक्रवार, अक्टूबर 25, 2024
सूर्योदय: 06:28
सूर्यास्त: 17:41
तिथि: नवमी – 27:22+ तक
नक्षत्र: पुष्य – 07:40 तक
योग: शुभ – 29:27+ तक
करण: तैतिल – 14:35 तक
द्वितीय करण: गर – 27:22+ तक
पक्ष: कृष्ण पक्ष
वार: शुक्रवार
पूर्णिमान्त महीना: कार्तिक
चन्द्र राशि: कर्क
सूर्य राशि: तुला

आज का विचार

उस ज्ञान का कोई लाभ नहीं जिसे आप काम में नहीं लेते। आप अपनी जिंदगी की तुलना दूसरों से ना करें क्योंकि, सूरज और चंद्रमा दोनों ही चमकते है लेकिन अपने अपने समय पर।

 आज का भगवद् चिन्तन

निराशा में नहीं,आशा में जिएं

मानव जीवन एवं बीता हुआ समय बार-बार नहीं मिलता है इसलिए जीवन के प्रत्येक पल को आशा और विश्वास के साथ जीकर उत्सव मनाना सीखिए। निराश, हताश एवं उदास मन जीवन प्रगति में सबसे बड़े अवरोधक का कार्य करता है। निराशा अर्थात सफलता की दिशा में अपने बढ़ते हुए कदमों को रोककर परिस्थितियों के आगे हार मान लेना है। निराशा का अर्थ मनुष्य की उस मनोदशा से है जिसमें स्वयं द्वारा किए जा रहे प्रयासों के प्रति अविश्वास उत्पन्न हो जाता है।

निराशा जीवन और प्रसन्नता के बीच एक अवरोधक का कार्य करती है क्योंकि जिस जीवन में निराशा, कुंठा, हीनता आ जाए वहाँ सब कुछ होते हुए भी व्यक्ति दरिद्र, दुःखी और परेशान ही रहता है। स्वयं की क्षमताओं पर, प्रयासों पर और स्वयं पर भरोसा रखो। दुनिया की कोई भी वस्तु ऐसी नहीं जो मनुष्य के प्रयासों से बड़ी हो इसलिए जीवन को निराशा में नहीं प्राप्त्याशा में जियो।

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