पंडित उदय शंकर भट्ट
आज आपका दिन मंगलमयी हो, यही मंगलकामना है। ‘हिमशिखर खबर’ हर रोज की तरह आज भी आपके लिए पंचांग प्रस्तुत कर रहा है। आज भाद्रपद की 25 गते है।
बुधवार, सितम्बर 11, 2024
सूर्योदय: 06:04 ए एम
सूर्यास्त: 06:31 पी एम
तिथि: अष्टमी – 11:46 पी एम तक
नक्षत्र: ज्येष्ठा – 09:22 पी एम तक
योग: प्रीति – 11:55 पी एम तक
करण: विष्टि – 11:35 ए एम तक
द्वितीय करण: बव – 11:46 पी एम तक
पक्ष: शुक्ल पक्ष
वार: बुधवार
अमान्त महीना: भाद्रपद
पूर्णिमान्त महीना: भाद्रपद
चन्द्र राशि: वृश्चिक – 09:22 पी एम तक
सूर्य राशि: सिंह
दुर्वाष्टमी व्रत आज
पौराणिक कथाओं के अनुसार, समुद्र मन्थन के समय भगवान विष्णु कूर्म अवतार धारण करके मन्दराचल पर्वत की धुरी में विराजमान हो गये। मन्दराचल पर्वत के तीव्र गति से घूमने के कारण, उसकी रगड़ से भगवान विष्णु की जंघा से कुछ रोम निकलकर समुद्र में गिर गये। अमृत के प्रभाव से भगवान विष्णु के रोम पृथ्वीलोक पर दूर्वा घास के रूप में उत्पन्न हुये। इसलिये दूर्वा को अत्यन्त पवित्र माना जाता है तथा दुर्वाष्टमी पर दूर्वा घास का पूजन किया जाता है।
गणेश चतुर्थी के 4 दिन बाद यानी पंचांग के मुताबिक भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की आठवीं तिथि पर दूर्वाष्टमी व्रत होता है। इस बार ये आज रहेगा। इस दिन भगवान गणेश को खासतौर से दूर्वा चढ़ाने की परंपरा है। माना जाता है इस दिन दूर्वा से गणेशजी की विशेष पूजा करने से हर तरह की परेशानियां दूर होती हैं और मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं। इससे जुड़ी कथा पुराणों में भी है। जिसमें राक्षस को मारने के बाद गणेशजी को दूर्वा चढ़ाई और तब से ये परंपरा चली आ रही है।
दूर्वा के बिना अधूरे हैं कर्मकांड और मांगलिक काम हिन्दू संस्कारों और कर्मकाण्ड में इसका उपयोग खासतौर से किया जाता है। हिन्दू मान्यताओं में दूर्वा घास प्रथम पूजनीय भगवान श्रीगणेश को बहुत प्रिय है। इसलिए किसी भी तरह की पूजा और हर तरह के मांगलिक कामों में दूर्वा को सबसे पहले लिया जाता है। इस पवित्र घास के बिना, गृहप्रवेश, मुंडन और विवाह सहित अन्य मांगलिक काम अधूरे माने जाते हैं। भगवान गणेश की पूजा में दो, तीन या पाँच दूर्वा अर्पण करने का विधान शास्त्र में मिलता है।
आज का विचार
श्वास से शरीर टिकता है ओर विश्वास से संबंध टिकते है, कोई पूर्ण संस्कारी नहीं होता क्योंकि अन्तिम संस्कार को दूसरे ही करते है।
आज का भगवद् चिन्तन
कृपामयी श्रीराधा
श्रीराधा रानी जी कृपा से परिपूर्ण हैं। करुणा तो किसी के भी हृदय में जागृत हो सकती है लेकिन कृपा सब के बस की बात नहीं, वह तो हमारी किशोरी जू ही जानती हैं। करुणा और कृपा के मध्य एक सूक्ष्म भेद होता है। किसी गिरे हुए को देख कर मन में दया का भाव उत्पन्न होना, उसकी ऐसी दुर्दशा देख कर मन का व्यथित हो जाना, यह करुणा है।
किसी गिरे हुए को हाथ पकड़ कर उठाना, उसकी यथासंभव सहायता करना और उसे अपने गंतव्य तक पहुँचा देना, यह कृपा है। भव सागर में पड़े इस जीव की दशा को देखकर कृपा सिंधु श्रीराधे रानी से रहा नहीं जाता और वह पात्र-कुपात्र के भेद को जाने बिना ही सब को पार लगा देती हैं। विषय-वासना में लिपटे जीव को श्रीकृष्ण तक पहुँचाने वाली सीढ़ी का नाम ही श्रीराधा है।