आज का पंचांग: शिवजी त्रिशूल एवं डमरू का संदेश

पंडित उदय शंकर भट्ट

Uttarakhand

आज आपका दिन मंगलमयी हो, यही मंगलकामना है। ‘हिमशिखर खबर’ हर रोज की तरह आज भी आपके लिए पंचांग प्रस्तुत कर रहा है। आज सावन की 16 गते है। आज कामिका एकादशी का व्रत रखा जाएगा।

इस दिन किए पूजन से पितरों का भी आशीर्वाद मिलता है। इस शुभ एकादशी के दिन किया गया किसी भी प्रकार का दान-पुण्य जीवन के कष्टों को दूर कर मोक्ष के द्वार खोलता है। इस दिन एकादशी की कथा भी सुननी चाहिए।

 आज का पंचांग

बुधवार, जुलाई 31, 2024
सूर्योदय: 05:42 ए एम
सूर्यास्त: 07:13 पी एम
तिथि: एकादशी – 03:55 पी एम तक
नक्षत्र: रोहिणी – 10:12 ए एम तक
योग: ध्रुव – 02:14 पी एम तक
करण: बालव – 03:55 पी एम तक
द्वितीय करण: कौलव – 03:39 ए एम, अगस्त 01 तक
पक्ष: कृष्ण पक्ष
वार: बुधवार
अमान्त महीना: आषाढ़
पूर्णिमान्त महीना: श्रावण
चन्द्र राशि: वृषभ – 10:15 पी एम तक
सूर्य राशि: कर्क

आज का विचार

परिश्रम और ईमानदारी, सौभाग्य की जननी है। मनुष्य के जीवन में अहंकार एक ऐसी दौड़ होती है, जो दौड़ जीतने के बाद भी हार जाता है।

सिंधु-तरन, सिय सोच हरन, रबि-बालबरन-तनु।
भुज बिसाल, मूरति कराल कालहुको काल जनु॥
गहन-दहन-निरदहन लंक निःसंक, बंक-भुव।
जातुधान-बलवान-मान-मद-दवन पवनसुव॥
कह तुलसीदास सेवत सुलभ, सेवक हित संतत निकट।
गुनगनत, नमत, सुमिरत, जपत समन सकल-संकट-बिकट॥

भावार्थ – जिनके शरीर का रंग उदयकाल के सूर्य के समान है, जो समुद्र लाँघकर श्री जानकीजी के शोक को हरने वाले, आजानुबाहु, डरावनी सूरतवाले और मानो काल के भी काल हैं। लंका-रूपी गंम्भीर वन को, जो जलाने योग्य नहीं था, उसे जिन्होंने निःशंक जलाया और जो टेढ़ी भौंहोंवाले तथा बलवान राक्षसों के मान और गर्व का नाश करने वाले हैं, तुलसीदासजी कहते हैं – वे श्रीपवनकुमार सेवा करने पर बड़ी सुगमता से प्राप्त होने वाले, अपने सेवकों की भलाई करने के लिए सदा समीप रहने वाले तथा गुण गाने, प्रणाम करने एवं स्मरण और नाम जपने से सब भयानक संकटों को नाश करने वाले हैं।

आज का भगवद् चिन्तन

शिवजी त्रिशूल एवं डमरू का संदेश

भगवान शिव का स्वरूप देखने में बड़ा ही प्रतीकात्मक और संदेशप्रद है।भगवान शिव के हाथों में त्रिशूल दैहिक, दैविक और भौतिक तीनों तापों का प्रतीक है। भगवान शिव के हाथों में केवल त्रिशूल ही नहीं है अपितु जो त्रिशूल है,उसमें भी डमरू बँधा हुआ है।त्रिशूल वेदना का तो डमरू आनंद का प्रतीक है। जीवन ऐसा ही है, यहाँ वेदना तो है ही मगर आनंद भी कम नहीं है।

आज आदमी अपनी वेदनाओं से ही इतना ग्रस्त रहता है,कि आनंद उसके लिए एक काल्पनिक वस्तु मात्र रह गई है। दु:खों से ग्रस्त होना यह अपने हाथों में नहीं मगर दुःखों से त्रस्त होना यह अवश्य अपने हाथों में है।भगवान शिव के हाथों में त्रिशूल और उसके ऊपर लगा डमरू हमें इस बात का संदेश देते हैं कि भले ही त्रिशूल रुपी तीनों तापों से तुम ग्रस्त हों मगर डमरू रुपी आनंद भी साथ होगा तो फिर नीरस जीवन भी उमंग और उत्साह से भर जाएगा।

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