आज का पंचांग : व्यक्तित्व निर्माण

पंडित उदय शंकर भट्ट

आज आपका दिन मंगलमयी हो, यही मंगलकामना है। ‘हिमशिखर खबर’ हर रोज की तरह आज भी आपके लिए पंचांग प्रस्तुत कर रहा है। आज 3 फरवरी को माघ महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी और सोमवार दिन है। यह तिथि कल सुबह 04.38 बजे तक रहेगी। इसके बाद सप्तमी तिथि लग जाएगी। इस तिथि पर चंद्रमा मीन राशि में मौजूद होंगे। इस तिथि पर रेवती नक्षत्र रहेगा। इसके साथ ही साध्य योग का संयोग रहेगा। दिन के शुभ मुहूर्त की बात करें तो सोमवार को अभिजीत मुहूर्त दोपहर 12.10 बजे से 12.53 बजे तक रहेगा। राहुकाल का समय सुबह 08.28 बजे से सुबह 09.49 बजे तक रहेगा। इस समय कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है।

आज का विचार

सब कुछ नक़ल किया जा सकता है, लेकिन चरित्र और व्यवहार नक़ल नहीं किया जा सकता। जीवन जीने के लिए सबक तथा साथ दोनों आवश्यक होता है.

श्रीरामचरितमानस
श्रीराम नाम महिमा


राम भालु कपि कटक बटोरा ।
सेतु हेतु श्रमु न कीन्ह थोरा ।।
नामु लेत भवसिंधु सुखाहीं ।
करहु बिचारू सुजन मन माहीं ॥
( बालकांड 24/2)
राम राम बंधुओं, मानस के आरंभ में राम नाम की महिमा बताते हुए गोस्वामी जी कहते हैं कि राम जी ने भालू व बंदरों की सेना बनाई और सागर पर पुल बांधने के लिए कम परिश्रम नहीं किया परंतु राम नाम लेते ही संसार सागर सूख जाता है , जिससे आसानी से बिना किसी बाधा के संसार सागर पार किया जा सकता है , सज्जन लोग इस पर विचार करें ।
राम जी से बड़ा राम जी का नाम है। नाम जप से , राम नाम अपनाने से जीवन की दुरूह से दुरूह कठिनाइयाँ भी समाप्त हो जाती है। ज़रूरत है अपने जीवन में राम नाम धारण करने की, अपनाने की, शेष कार्य यह खुद करता है।


आज का भगवद् चिंतन

व्यक्तित्व निर्माण

स्वभाव में ही किसी व्यक्ति का प्रभाव झलकता है। व्यक्तित्व की भी अपनी भाषा होती है जो कलम या जिह्वा के इस्तेमाल के बिना भी लोगों के अंतर्मन को छू जाती है। जिस प्रकार कस्तूरी की पहचान उसकी सुगंधी से होती है, उसी प्रकार व्यक्तित्व की भी अपनी एक सुगंधी होती है, जिसे बताया अथवा दिखाया तो नहीं जा सकता केवल महसूस किया जा सकता है।

सिंहासन पर बैठकर व्यक्तित्व महान नहीं बनता अपितु महान व्यक्तित्व एक दिन जन-जन के हृदय सिंहासन पर अवश्य बैठ जाता है। सिंहासन पर बैठना जीवन की उपलब्धि हो अथवा नहीं मगर किसी के हृदय में बैठना जीवन की वास्तविक उपलब्धि अवश्य है।

राज सिंहासन पर बैठ सको न बैठ सको मगर किसी के हृदय सिंहासन पर बैठ सको तो समझना चाहिए कि आपका जीवन सार्थक हो गया है और यही तो विराट व्यक्तित्व का एक प्रधान गुण भी है।

भगवान से प्रार्थना में क्या मांगूँ…?

प्रह्लाद ने भगवान से माँगा:- “हे प्रभु मैं यह माँगता हूँ कि मेरी माँगने की इच्छा ही ख़त्म हो जाए…”

कुंती ने भगवान से माँगा:- “हे प्रभु मुझे बार बार विपत्ति दो ताकि आपका स्मरण होता रहे…”

महाराज पृथु ने भगवान से माँगा:- “हे प्रभु मुझे दस हज़ार कान दीजिये ताकि में आपकी पावन लीला गुणानुवाद का अधिक से अधिक रसास्वादन कर सकूँ…”

और हनुमान जी तो बड़ा ही सुंदर कहते हैं:- “अब प्रभु कृपा करो एही भाँती।सब तजि भजन करौं दिन राती॥”

भगवान से माँगना दोष नहीं मगर क्या माँगना ये होश जरूर रहे…

पुराने समय में भारत में एक आदर्श गुरुकुल हुआ करता था, उसमें बहुत सारे छात्र शिक्षण कार्य किया करते थे, उसी गुरुकुल में एक विशेष जगह हुआ करती थी जहाँ पर सभी शिष्य प्रार्थना किया करते थे, वह जगह पूजनीय हुआ करती थी…

एक दिन एक शिष्य के मन के जिज्ञासा उत्पन हुई तो उस शिष्य ने गुरु जी से पूछा – हम प्रार्थना करते हैं, तो होंठ हिलते हैं पर आपके होंठ कभी नहीं हिलते…

आप पत्थर की मूर्ति की तरह खडे़ हो जाते हैं, आप कहते क्या हैं अन्दर से…क्योंकि अगर आप अन्दर से भी कुछ कहेंगे तो होठों पर थोड़ा कंपन तो आ ही जाता है, चेहरे पर बोलने का भाव आ ही जाता है, लेकिन आपके कोई भाव ही नहीं आता…

गुरु जी ने कहा – मैं एक बार राजधानी से गुजरा और राजमहल के सामने द्वार पर मैंने सम्राट और एक भिखारी को खडे़ देखा…

वह भिखारी बस खड़ा था, फटे–चीथडे़ थे उसके शरीर पर, जीर्ण – जर्जर देह थी जैसे बहुत दिनो से भोजन न मिला हो, शरीर सूख कर कांटा हो गया…
बस आंखें ही दीयों की तरह जगमगा रही थीं,बाकी जीवन जैसे सब तरफ से विलीन हो गया हो,वह कैसे खड़ा था यह भी आश्चर्य था…
लगता था अब गिरा-तब गिरा !

सम्राट उससे बोला – बोलो क्या चाहते हो…???

उस भिखारी ने कहा – अगर आपके द्वार पर खडे़ होने से मेरी मांग का पता नहीं चलता,तो कहने की कोई जरूरत नहीं… क्या कहना है, मै आपके द्वार पर खड़ा हूं,मुझे देख लो मेरा होना ही मेरी प्रार्थना है…”

गुरु जी ने कहा – उसी दिन से मैंने प्रार्थना बंद कर दी,मैं परमात्मा के द्वार पर खड़ा हूं,वह देख लेगें…
अगर मेरी स्थिति कुछ नहीं कह सकती,तो मेरे शब्द क्या कह सकेंगे…अगर वह मेरी स्थिति नहीं समझ सकते,तो मेरे शब्दों को क्या समझेंगे…???

अतः भाव व दृढ विश्वास ही सच्ची परमात्मा की याद के लक्षण हैं,यहाँ कुछ मांगना शेष नही रहता,आपका प्रार्थना में होना ही पर्याप्त है!!

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