आज का पंचांग: संघर्ष में सुख

पंडित उदय शंकर भट्ट

आज आपका दिन मंगलमयी हो, यही मंगलकामना है। ‘हिमशिखर खबर’ हर रोज की तरह आज भी आपके लिए पंचांग प्रस्तुत कर रहा है।

महाभारत में जीवन प्रबंधन, नैतिकता और नेतृत्व के गहरे सूत्र छिपे हैं। महाभारत में एक कथा है, जिसमें युधिष्ठिर और कर्ण की तुलना होती है। कथा में जब एक व्यक्ति अपने पिता के दाह संस्कार के लिए चंदन की लकड़ियां खोजते हुए पहले युधिष्ठिर और फिर कर्ण के पास पहुंचता है। जानिए ये पूरी कथा और इस कथा की सीख…

एक व्यक्ति के पिता का देहांत हो गया तो वह सोचने लगा कि मुझे अपने पिता का अंतिम संस्कार चंदन की लकड़ियों से करना चाहिए। इस समय बारिश हो रही थी, इस कारण कहीं भी चंदन की सूखी लकड़ियां नहीं थीं। उस व्यक्ति ने विचार किया कि मुझे अपने राजा युधिष्ठिर के पास जाना चाहिए।

युधिष्ठिर के पास संसाधनों की कोई कमी नहीं थी। जब व्यक्ति युधिष्ठिर के पास पहुंचा तो युधिष्ठिर ने उससे कहा कि चंदन की लकड़ियां तो बहुत हैं, लेकिन बारिश की वजह से भीग गई हैं। ये सुनकर वह व्यक्ति वहां से निराश होकर कर्ण के पास पहुंचा।

कर्ण की स्थिति भी वही थी, उसके पास की चंदन की लकड़ियां भी भीग चुकी थीं, लेकिन कर्ण ने थोड़ा सोच-विचार किया कि मेरे द्वार से आज तक कोई खाली हाथ नहीं गया है, इसे भी खाली हाथ नहीं जाना चाहिए। कर्ण के पास जो सिंहासन था, वह चंदन की लकड़ी से ही बना था। कर्ण ने तुरंत ही अपना सिंहासन तोड़कर उस व्यक्ति को चंदन की लकड़ियां दे दीं।

चंदन की लकड़ी का सिंहासन तो युधिष्ठिर के पास भी था, लेकिन युधिष्ठिर ऐसा कुछ सोच नहीं सके। इस घटना के बाद ये चर्चा होने लगी थी कि ज्यादा बड़ा दानी कौन है- युधिष्ठिर या कर्ण।

इस कथा से जीवन प्रबंधन की तीन बातें हम सीख सकते हैं।

पहली बात – समस्या नहीं, उसके समाधान पर ध्यान देना चाहिए।

युधिष्ठिर ने देखा कि लकड़ियां भीगी हैं और निष्कर्ष पर पहुंच गए कि उनके चंदन की सूखी लकड़ियां नहीं हैं। दूसरी ओर कर्ण ने समस्या के समाधान के बारे में सोचा। यही सफल जीवन प्रबंधन का मूलमंत्र है, जब परिस्थिति जटिल हो, तब समाधान ढूंढने की कोशिश करनी चाहिए।

दूसरी बात – दान समझदारी से देना चाहिए। कर्ण ने ये

नहीं सोचा कि सिंहासन कट जाएगा, बल्कि ये देखा कि किसी की अंतिम इच्छा पूरी हो सकती है। यही सच्ची उदारता है, जो समय, स्थान और पात्र को समझकर निर्णय लेती है। हमें भी दान देते समय समझदारी से काम लेना चाहिए।

तीसरी बात – सम्मान पद से नहीं अच्छे कर्म से मिलता है। युधिष्ठिर राजा थे, पर कर्ण का ये कर्म श्रेष्ठ था। ऐसे ही कर्मों की वजह से कर्ण को दानवीर कहा जाता है।

किसी की मदद करनी हो तो हमें सिर्फ अपना सामर्थ्य देखना काफी नहीं, समय और सामने वाले की भावना भी समझनी चाहिए। जब कोई जरूरतमंद दिखाई दे तो उसकी जरूरत को समझकर दान करें। कर्ण और युधिष्ठिर की यह कथा हमें सिखाती है कि सच्ची सेवा वही है जो सहानुभूति और दूरदृष्टि से की जाए। तभी हम भी अपने जीवन में दानवीर बन सकते हैं।

कैलेंडर

तिथिद्वादशी सुबह 11:44 बजे तक
नक्षत्रपूर्व भाद्रपद प्रातः 08:53 बजे तक
त्रयोदशी
उत्तरा भाद्रपद
योगइंद्र दोपहर 12:31 बजे तक
करणतैतिला 11:44 AM तक
वैधृति
गैराज 10:09 PM तक
काम करने के दिनशुक्रवार
वानिया
पक्षकृष्ण पक्ष

चंद्र मास, संवत और बृहस्पति संवत्सर

विक्रम संवत2082 कालयुक्त
संवत्सरकालयुक्त 03:07 PM तक
शक संवत1947 विश्वावसु
सिद्धार्थी
गुजराती संवत2081 नल
चन्द्रमासावैशाख – पूर्णिमांत
दायाँ/गेट12
चैत्र – अमंता

राशि और नक्षत्र

राशिमीना
नक्षत्र पदपूर्व भाद्रपद प्रातः 08:53 बजे तक
सूर्य राशिमेशा
उत्तरा भाद्रपद दोपहर 02:19 बजे तक
सूर्य नक्षत्रअश्विनी
उत्तरा भाद्रपद सायं 07:44 बजे तक
सूर्य पदअश्विनी
उत्तरा भाद्रपद 01:06 AM, 26 अप्रैल तक
उत्तरा भाद्रपद

आज का विचार

बात सरल सी है दुखी रहना है तो सब मे कमी खोजो और प्रसन्न रहना है तो सब मे गुण खोजो, विचारों को पढ़कर बदलाव नही आता है, विचारों पर चलकर ही बदलाव आता है.!

आज का भगवद् चिंतन

संघर्ष में सुख

जिस जीवन में संघर्ष नहीं होगा उस जीवन में सुख-समृद्धि एवं शांति रुपी मधुर फलों की प्राप्ति भी नहीं हो सकती। संघर्ष वो वृक्ष है जिसकी जडें कड़वी जरूर होती हैं लेकिन उसके फल बड़े ही मधुर होते हैं। जिस जीवन में आज जितनी मधुरता है उस जीवन में कभी उतना ही संघर्ष भी रहा होगा। प्रायः हम लोग मधुर फल तो चाहते हैं लेकिन संघर्ष रूपी कड़वाहट का स्वाद नहीं लेना चाहते हैं।

हम ये भूल जाते हैं कि जीवन की मधुरता की जड़ तो संघर्ष ही है। जो इस कड़वाहट से बचने का प्रयास करते हैं वो जीवन की मधुरता से भी वंचित रह जाते हैं। जिसके जीवन का संघर्ष जितना बड़ा होगा उसके जीवन में उतनी सुख और सफलता की मिठास होगी। पहले संघर्ष की कड़वाहट और फिर सफलता की मिठास, यही तो जीवन का नियम है।

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