आज का पंचांग: धर्म का स्वभाव

पंडित उदय शंकर भट्ट

आज आपका दिन मंगलमयी हो, यही मंगलकामना है। ‘हिमशिखर खबर’ हर रोज की तरह आज भी आपके लिए पंचांग प्रस्तुत कर रहा है।

जीवन में जब भी हम कठिनाइयों से घिर जाते हैं तो अक्सर डर और असमंजस में फंस जाते हैं। ऐसे समय में हमें एक ऐसी मदद चाहिए जो न सिर्फ हमारा हौसला बढ़ाए, बल्कि ये भी सिखाए कि कठिन परिस्थितियों का सामना कैसे करना चाहिए। रामायण में हनुमान जी की लंका यात्रा का प्रसंग जीवन प्रबंधन के इसी सूत्र को बताता है…

हनुमान जी सीता माता की खोज में लंका पहुंचे। जब वे एक ऊंचे पर्वत पर खड़े होकर लंका को देखते हैं तो उनकी आंखों के सामने एक अत्यंत भव्य और भयानक चित्र उभरता है। लंका सोने के परकोटे से घिरी हुई थी, उसके भीतर भव्य महल, चौक, बाजार, हाथी, घोड़े और रथों की भरमार थी। चारों ओर भयंकर राक्षस पहरा दे रहे थे जो अपनी भयावहता से किसी को भी भयभीत कर सकते थे।

ऐसी मुश्किल स्थिति में सामान्य व्यक्ति भयभीत हो सकता था, लेकिन हनुमान जी ने डरने के बजाय बुद्धिमानी से काम लिया। उन्होंने सोचा कि यदि वे अपने वास्तविक रूप में लंका में प्रवेश करेंगे तो राक्षसों की नजर उन पर पड़ जाएगी और अनावश्यक युद्ध हो जाएगा। हनुमान जी का लक्ष्य था सीता माता को ढूंढना, न कि युद्ध करना। इसलिए हनुमान जी ने तत्काल योजना बनाई और अपने आकार को इतना छोटा कर लिया कि वे मच्छर जैसे दिखाई देने लगे।

छोटा आकार धारण करके वे लंका में प्रवेश कर गए। लंका में प्रवेश करते समय हनुमान जी ने भगवान श्रीराम का स्मरण किया, जिससे उनकी मानसिक स्थिरता और शक्ति बनी रही।

  1. विक्रम संवत – 2082, कालयुक्त
  2. शक सम्वत – 1947, विश्वावसु
  3. पूर्णिमांत – बैशाख
  4. अमांत – बैशाख

तिथि

  1. शुक्ल पक्ष दशमी   – May 06 08:38 AM – May 07 10:20 AM
  2. शुक्ल पक्ष एकादशी   – May 07 10:20 AM – May 08 12:29 PM

नक्षत्र

  1. पूर्व फाल्गुनी – May 06 03:52 PM – May 07 06:17 PM
  2. उत्तर फाल्गुनी – May 07 06:17 PM – May 08 09:06 PM

आज का विचार

संतुष्टि सबसे बड़ा धन है, विश्वास सबसे बड़ा बंधु है, तथा निर्वाण सबसे बड़ा सुख है। जो व्यक्ति अपने जीवन में दूसरों को खुशी के पल देता है वह खुद भी बहुत सुख पाता है.!!

आज का भगवद् चिंतन


धर्म का स्वभाव

विनम्रता धर्म की अनिवार्यता नहीं अपितु धर्म का स्वभाव है। धर्म के साथ विनम्रता ऐसे ही सहज चली आती है, जैसे फूलों के साथ खुशबू और दीये के साथ प्रकाश। जब धर्म किसी व्यक्ति के जीवन में आता है तो वह अपने साथ विनम्रता जैसे अनेक सद्गुणों को लेकर आता है। धन और धर्म दोनों ही व्यक्ति की चाल को बदल देते हैं। जब धन होता है तो व्यक्ति अकड़ कर चलता है और जब धर्म होता है तो वह विनम्र होकर चलने लगता है।

जीवन में संपत्ति आती है तो मनुष्य कौरवों की तरह अभिमानी हो जाता है और जीवन में सन्मति आती है तो मनुष्य पाण्डवों की तरह विनम्र भी बन जाता है। संपत्ति आने के बावजूद भी जो उस संपत्ति रूपी लक्ष्मी को उन प्रभु श्री नारायण की चरणदासी समझकर उसका सदुपयोग करते हुए अपने जीवन को विनम्र भाव से जीते हैं, सचमुच इस कलिकाल में उनसे श्रेष्ठ कोई साधक नहीं हो सकता।

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