आज का पंचांग: जीवन कल्याण का मूल

पंडित उदय शंकर भट्ट

Uttarakhand

आज आपका दिन मंगलमयी हो, यही मंगलकामना है। ‘हिमशिखर खबर’ हर रोज की तरह आज भी आपके लिए पंचांग प्रस्तुत कर रहा है।

 आज का भगवद् चिन्तन

जीवन कल्याण का मूल

निश्चित ही मनुष्य जीवन परमात्मा द्वारा दिया गया एक श्रेष्ठ उपहार है। मनुष्य जीवन की दुर्लभता जिस दिन किसी के समझ में आ जाएगी उस दिन कोई भी व्यक्ति जीवन का दुरूपयोग नहीं कर पायेगा। जीवन एक अवसर है श्रेष्ठ बनने का, श्रेष्ठ करने का और श्रेष्ठ को पाने का। जीवन वो फूल है जिसमें काँटे तो बहुत हैं लेकिन सौन्दर्य की भी कोई कमी नहीं है। जीवन को बुरा केवल उन लोगों के द्वारा कहा जाता है जिनकी नजर फूलों के बजाय काँटो पर ही लगी रहती है।

काँटों पर दृष्टि रहेगी तो इसमें चुभन ही चुभन महसूस होगी पर फूलों पर दृष्टि रहेगी तो जीवन में सौंदर्य भी नजर आयेगा। जीवन में सब कुछ पाया जा सकता है पर सब कुछ देने पर भी जीवन को नहीं पाया जा सकता है। जीवन का तिरस्कार नहीं अपितु इससे प्यार करो। जीवन को बुरा कहने की अपेक्षा सदैव जीवन की बुराई मिटाने के लिए प्रयासरत रहें, यही जीवन कल्याण का मूल है।

हनुमानजी का अद्भुत पराक्रम

जब रावण ने देखा कि हमारी पराजय निश्चित है तो उसने 1000 अमर राक्षसों को बुलाकर रणभूमि में भेजने का आदेश दिया। ये ऐसे थे जिनको काल भी नहीं खा सका था।

विभीषण के गुप्तचरों से समाचार मिलने पर श्री राम को चिन्ता हुई कि हम लोग इनसे कब तक लड़ेंगे? सीता का उद्धार और विभीषण का राज तिलक कैसे होगा ? क्योंकि युद्ध की समाप्ति असंभव है

श्रीराम कि इस स्थिति से वानरवाहिनी के साथ कपिराज सुग्रीव भी विचलित हो गए कि अब क्या होगा? हम अनंत काल तक युद्ध तो कर सकते हैं पर विजयश्री का वरण नहीं ! पूर्वोक्त दोनों कार्य असंभव हैं।

अंजनानंदन हनुमान जी आकर वानर वाहिनी के साथ श्रीराम को चिंतित देखकर बोले–’प्रभु ! क्या बात है?’

श्रीराम के संकेत से विभीषण जी ने सारी बात बतलाई। अब विजय असंभव है।

पवन पुत्र ने कहा–’असम्भव को संभव और संभव को असम्भव कर देने का नाम ही तो हनुमान है। प्रभु ! आप केवल मुझे आज्ञा दीजिए मैं अकेले ही जाकर रावण की अमर सेना को नष्ट कर दूँगा।’

परन्तु कैसे हनुमान ? वे तो अमर हैं’–श्रीरामजी ने कहा।

‘प्रभु ! इसकी चिंता आप न करें, बस सेवक पर विश्वास करें’–हनुमान बोले।

उधर रावण ने चलते समय राक्षसों से कहा था कि, वहाँ हनुमान नाम का एक वानर है उससे जरा सावधान रहना ।

एकाकी हनुमानजी को रणभूमि में देखकर राक्षसों ने पूछा–’तुम कौन हो ? क्या हम लोगों को देखकर भय नहीं लगता जो अकेले रणभूमि में चले आये।’

मारुति बोले–’क्यों आते समय राक्षसराज रावण ने तुम लोगों को कुछ संकेत नहीं किया था जो मेरे समक्ष निर्भय खड़े हो।’

निशाचरों को समझते देर न लगी कि ये महाबली हनुमान हैं। फिर भी वे सोचे–’तो भी क्या ? हम अमर हैं, हमारा ये क्या बिगाड़ लेंगे।

भयंकर युद्ध आरम्भ हुआ। पवनपुत्र की मार से राक्षस रणभूमि में ढेर होने लगे। चौथाई सेना बची थी कि पीछे से आवाज आई–’हनुमान हम लोग अमर हैं‌ हमें जीतना असंभव है। अतः अपने स्वामी के साथ लंका से लौट जाओ, इसी में तुम सबका कल्याण है।’

आंजनेय ने कहा–’लौटूँगा अवश्य पर तुम्हारे कहने से नहीं, अपितु अपनी इच्छा से। हाँ तुम सब मिलकर आक्रमण करो फिर मेरा बल देखो और रावण को जाकर बताना।’

राक्षसों ने जैसे ही एक साथ मिलकर हनुमानजी पर आक्रमण करना चाहा, वैसे ही पवनपुत्र ने उन सबको अपनी पूँछ में लपेटकर ऊपर आकाश में फेंक दिया।

वे सब पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति जहाँ तक है वहाँ से भी ऊपर चले गए, चले ही जा रहे हैं।

चले मग जात सूखि गए गात’–(गोस्वामी तुलसीदास)

उनका शरीर सूख गया अमर होने के कारण मर सकते नहीं। अतः रावण को गाली देते हुए और कष्ट के कारण अपनी अमरता को कोसते हुए अभी भी जा रहे हैं। इधर हनुमान जी ने आकर प्रभु के चरणों में शीश झुकाया।

श्रीराम बोले–’क्या हुआ हनुमान ?’

‘प्रभु ! उन्हें ऊपर भेजकर आ रहा हूँ।’

राघव–’पर वे अमर थे हनुमान।’

‘हाँ स्वामी इसलिए उन्हें जीवित ही ऊपर भेज आया हूँ, अब वे कभी भी नीचे नहीं आ सकते? रावण को अब आप शीघ्रातिशीघ्र ऊपर भेजने की कृपा करें। जिससे माता जानकी का आपसे मिलन और महाराज विभीषण का राजसिंहासन हो सके।’

पवनपुत्र को प्रभु ने उठाकर गले लगा लिया। वे धन्य हो गए अविरल भक्ति का वर पाकर। श्रीराम उनके ऋणी बन गए और बोले–’हनुमान जी ! आपने जो उपकार किया है, वह मेरे अंग-अंग में ही जीर्ण-शीर्ण हो जाय। मैं ! उसका बदला न चुका सकूँ। क्योंकि उपकार का बदला विपत्तिकाल में ही चुकाया जाता है। पुत्र ! तुम पर कभी कोई विपत्ति न आये।’ यह सुनकर निहाल हो गए आंजनेय।

हनुमान जी की वीरता के समान साक्षात काल, देवराज इन्द्र, महाराज कुबेर तथा भगवान विष्णु की भी वीरता नहीं सुनी गयी। ऐसा कथन श्रीराम का है–

न कालस्य न शक्रस्य न विष्णर्वित्तपस्य च।

कर्माणि तानि श्रूयन्ते यानि युद्धे हनूमतः॥

आज का विचार

जो बात आपके अनुकूल ना हो उसका विरोध कभी नहीं करें। यदि दूसरों को पहचानना है तो सबसे पहले खुद को पहचानना होगा।

आज का पंचांग

शुक्रवार, दिसम्बर 27, 2024
सूर्योदय: 07:12
सूर्यास्त: 17:32
तिथि: द्वादशी – 02:26, दिसम्बर 28 तक
नक्षत्र: विशाखा – 20:28 तक
योग: धृति – 22:37 तक
करण: कौलव – 13:39 तक
द्वितीय करण: तैतिल – 02:26, दिसम्बर 28 तक
पक्ष: कृष्ण पक्ष
वार: शुक्रवार
अमान्त महीना: मार्गशीर्ष
पूर्णिमान्त महीना: पौष
चन्द्र राशि: तुला – 13:57 तक
सूर्य राशि: धनु
शक सम्वत: 1946 क्रोधी

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