परंपरा : हवन में आहुति देते समय क्यों कहते है ‘स्वाहा’?

हिंदू धर्म में यज्ञ और हवन करने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। यज्ञ और हवन करते समय कई नियमों का पालन किया जाता है। यज्ञ और हवन में आहुति डालते समय स्वाहा जरूरी बोला जाता है। ऐसा माना जाता है कि यदि आहुति डालते समय स्वाहा न बोला जाए तो देवता उस आहुति को ग्रहण नहीं करते। दरअसल कोई भी यज्ञ तब तक सफल नहीं माना जा सकता है जब तक कि हवन का ग्रहण देवता न कर लें। लेकिन, देवता ऐसा ग्रहण तभी कर सकते हैं जबकि अग्नि के द्वारा स्वाहा के माध्यम से अर्पण किया जाए।

Uttarakhand

पंडित उदय शंकर भट्ट

अग्निदेव में जो जलाने की तेजरूपा (दाहिका) शक्ति है, वह देवी स्वाहा का सूक्ष्मरूप है। हवन में आहुति में दिए गए पदार्थों का परिपाक (भस्म) कर देवी स्वाहा ही उसे देवताओं को आहार के रूप में पहुंचाती हैं, इसलिए इन्हें ‘परिपाककरी’ भी कहते हैं।

सृष्टिकाल में परब्रह्म परमात्मा स्वयं ‘प्रकृति’ और ‘पुरुष’ इन दो रूपों में प्रकट होते हैं। ये प्रकृति देवी ही मूल प्रकृति या पराम्बा कही जाती हैं। ये आदिशक्ति अनेक लीलारूप धारण करती हैं। इन्हीं के एक अंश से देवी स्वाहा का प्रादुर्भाव हुआ जो यज्ञभाग ग्रहणकर देवताओं का पोषण करती हैं।

सृष्टि के आरम्भ की बात है, उस समय ब्राह्मण लोग यज्ञ में देवताओं के लिए जो हवनीय सामग्री अर्पित करते थे, वह देवताओं तक नहीं पहुंच पाती थी।

Uttarakhand

देवताओं को भोजन नहीं मिल पा रहा था इसलिए उन्होंने ब्रह्मलोक में जाकर अपने आहार के लिए ब्रह्माजी से प्रार्थना की। देवताओं की बात सुनकर ब्रह्माजी ने भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान किया। भगवान के आदेश पर ब्रह्माजी देवी मूल प्रकृति की उपासना करने लगे। इससे प्रसन्न होकर देवी मूल प्रकृति की कला से देवी ‘स्वाहा’ प्रकट हो गयीं और ब्रह्माजी से वर मांगने को कहा।

ब्रह्माजी ने कहा–’आप अग्निदेव की दाहिका शक्ति होने की कृपा करें। आपके बिना अग्नि आहुतियों को भस्म करने में असमर्थ हैं। आप अग्निदेव की गृह स्वामिनी बनकर लोक पर उपकार करें।’

Uttarakhand

अग्नि देव का देवी स्वाहा के साथ विवाह-संस्कार हुआ। शक्ति और शक्तिमान के रूप में दोनों प्रतिष्ठित होकर जगत के कल्याण में लग गए। तब से ऋषि, मुनि और ब्राह्मण मन्त्रों के साथ ‘स्वाहा’ का उच्चारण करके अग्नि में आहुति देने लगे और वह हव्य पदार्थ देवताओं को आहार रूप में प्राप्त होने लगा। स्वाहा हीन मन्त्र से किया हुआ हवन कोई फल नहीं देता है। मान्यता है कि तभी देवता पूर्णत: संतुष्ट होते हैं। साथ ही सभी वैदिक व पौराणिक विधान, अग्नि को समर्पित मंत्रोच्चार एवं ‘स्वाहा’ के द्वारा हविष्य सामग्री को देवताओं तक पहुंचाने की पुष्टि कराते हैं।

Uttarakhand

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *