सावन में रस्म अदाएगी न हो पौधारोपण: भाई कमलानंद

भाई कमलानंद (डा कमल टावरी) 

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पूर्व सचिव भारत सरकार


सावन पर्व पर सभी को प्रणाम अभिनंदन। सावन पर्व पर पर्यावरण को सहेजने के प्रयास किए जाते हैं, जिसके तहत सरकारी-गैर सरकारी और यहां तक कि आमजन भी हर वर्ष वृक्षारोपण अभियान में खूब उत्साह दिखाते हैं। चारों ओर पेड़़ लगाओ का शोर सुनाई पडता है। बडी सख्या में पेड़ लगाए भी जाते हैं। लेकिन असल सवाल इन पौधों को सहेजन का है। पौधारोपण की औपचारिकता भर निभाई जाती है। हर साल पौधे रोपने के तो रेकार्ड बनाए जाते हैं, पर उन्हें बचाने के मामले में गंभीरता कम ही दिखाई देती है। मानसून में रोपे गए अधिकतर पौधे पनपने से पहले ही दम तोड़ देते हैं। यही वजह है कि पेड़ लगाना ही नहीं उनका संरक्षण करना भी आवश्यक है।

दरअसल, बढ़ते प्रदूषण और वृक्षों की कमी से जो पर्यावरण असंतुलन पैदा हो रहा है उससे मुकाबला करने का एकमात्र रास्ता अधिक से अधिक पेड लगाना है। ऐसे में हमे पौधारोपण को गंभीरता से लेना होगा। इस पर्व पर युवाओं और ग्रामीणों की भागीदारी बढानी होगी। पिछले कुछ दशकों से पेड लगाने के नाम पर फोटो खींचाने का नाटक भी चल रहा है। फोटो खिंचवाकर किसी तरह समाचार छप जाए कि अमुक ने पौधा रोपकर देश के पर्यावरण पर सहयोग कर दिया है, अब आगे पौधा और उसकी किस्मत जाने। हमारे यहां सरकारी वृक्षारोपण की हालत यह है कि आजादी के बाद वृक्षारोपण कर जितने पौधे लगाए गए उनमें से 50 प्रतिशत भी जिंदा नहीं रह पाते।

हमारे देश में पेड़ लगाने की नौटंकी ज्यादा की जाती है। फोटो खींचाकर बड़े गर्व से कहा जाता है कि हमने पेड़ लगा दिया, लेकिन सवाल यह है कि पेड़ का बड़ा होना तक उसकी देखभाल की जिम्मेदारी का निर्वहन भी किया जाएगा । ऐसे में जलवायु परिवर्तन के गभीर खतरों को देखते हुए नाटक की जगह सॉलिड काम करना होगा। जिन्होंने अपने प्रयासों से पेड़ों का जंगल पनपा दिया है, उनका अभिनदन किया जाना चाहिए। जो महानुभाव इस सावन और हरेला पर्व पर पौधों का रोपण कर रहे हैं, क्या ईमानदारी से वादा करेंगे कि आपने इस बार जितने पौधे रोपे हैं, उन्हें हर हाल में आप जिंदा रखेंगे?

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धरती को हरा भरा बनाना जिम्मेदारी से बढ़कर मजबूरी 

पुराने जमाने में पेड़-पौधे लोगों की जिंदगी का एक अहम हिस्सा थे। अनेक सामाजिक एवं धार्मिक कार्यों में वृक्षों की उपस्थिति अनिवार्य मानी जाती थी। घरों में तुलसी का पौधा और आस-पास खाली पड़ी भूमि पर अन्य पौधे लगाना वृक्षों की उपयोगिता का प्रमाण था। विवाह मंडप को केले के पत्तों से सजाना, नवजात शिशु के जन्म पर घर के मुख्य द्वार पर नीम की टहनियाँ लगाना, हवन में आम की लकड़ियों का प्रयोग आदि ढेरों ऐसे उदाहरण है जिनसे तत्कालीन समाज में वृक्षों की उपयोगिता का बखूबी पता चलता है। किन्तु आज स्थिति इसके ठीक विपरीत है। घरों आस-पास पौधा लगाने का चलन दम तोड़ता जा रहा है।

आज जरूरत इस बात कि है की हम सच्चे मन और कर्म  से पौधा लगाएं और उसकी तब तक देखभाल करे जब तक वो अपनी जड़ों पर स्वयं खड़ा न हो जाए क्योंकि अपने और अपनी संतानों के लिए धरती को हरा भरा बनाना हमारी जिम्मेदारी से बढ़कर मजबूरी बनती जा रही है।

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आइए ! सच्चे मन और कर्म से एक पौधा लगाने की पहल तो कीजिए। आपको हार्दिक अनुभूति और सुखद आनंद मिलेगा।

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