काका हरिओम्
नीलम दीदी-नाम लेते ही जो छवि उभर कर सामने आती है, वह है सफेद सलवार-कमीज पहने धीर-गंभीर किताबों के पन्नों में जिन्दगी के सवालों तलाशती एक ऐसी लड़की की जिसने सच को, साफगोई को कब अपने व्यक्तित्व का अटूट हिस्सा बना लाया, अपनों को भी पता नहीं चला.
उसने जिन्दगी को अद्वैत तत्व की अभिव्यक्ति के रूप में ही स्वीकारा.
स्वामी राम के साहित्य को पढ़ने, उसे गहराई से आत्मसात् करने के बाद प्रवृत्ति में निवृत्ति की सुगंध ने अपने इर्दगिर्द को महकाना शुरू कर दिया था. लेकिन संबंधों के भौतिक दायरे को साध्वी ने नकार दिया था. स्वामी राम के शब्दों में, ‘जो मिलना चाहता है,केन्द्र में मिले.राम सीमा पर नहीं मिलेगा अब किसी को.’
यह देह के साथ अनासक्ति का ही परिणाम था जो डॉक्टर्स हैरान थे कि इस हालात में भी पीड़़ा स्पर्श नहीं है.
सुना है, भैय्या दूज के बाद सबको प्रार्थना करने को कहा ताकि बूंद समुद्र में आराम से समा सके. और प्रार्थना सफल हुई.