जीवन में बल, बुद्धि, साहस, कर्मठता, तेजस्विता और तुरंत निर्णय लेने की क्षमता, संकटो पर विजय प्राप्त कर लेने का साहस और सब कुछ कर लेने का अदम्य उत्साह के मिले-जुले रूप को हनुमान कहते हैं। यद्यपि रामायण के प्रधान नायक मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् श्रीराम ही हैं, तथापि इसमें सुन्दरकाण्ड से श्रीहनुमान ही रामायण के महारत्न हैं।रामायण काल में हनुमानजी ने कुछ ऐसे धर्म कार्य किए हैं जिसे कोई और नहीं कर सकता था। जानिए वह कौन सा कार्य था जिसे हनुमानजी ही कर सकते थे-
समुद्र लांघना
माता सीताजी की खोज में जब सभी वानर समुद्र तट पर पहुंचे तो किसी में 100 योजन विशाल समुद्र को लांघने की क्षमता नहीं थी। सभी को निराश देखकर जामवंत ने हनुमानजी को उनके बल व पराक्रम का स्मरण करवाया और हनुमानजी ने 100 योजन विशाल समुद्र को एक छलांग में ही पार कर लिया।
राक्षसों का संहार करना
युद्ध में हनुमानजी ने अनेक पराक्रमी राक्षसों का वध किया। हनुमानजी और रावण में भी भयंकर युद्ध हुआ था। रामायण के अनुसार, हनुमानजी का थप्पड़ खाकर रावण उसी तरह कांप उठा था, जैसे भूकंप आने पर पर्वत हिलने लगते हैं। हनुमानजी के इस पराक्रम को देखकर वहां उपस्थित सभी वानरों में हर्ष छा गया था।
मां सीता की खोज
समुद्र लांघने के बाद हनुमान जब लंका पहुंचे तो लंका के द्वार पर ही लंकिनी नामक राक्षसी से उन्हें रोक लिया। हनुमानजी ने उसे परास्त कर लंका में प्रवेश किया। हनुमानजी ने माता सीता को बहुत खोजा, लेकिन वह कहीं भी दिखाई नहीं दी। फिर भी हनुमानजी के उत्साह में कोई कमी नहीं आई।
मां सीता के न मिलने पर हनुमानजी ने सोचा कहीं रावण ने उनका वध तो नहीं कर दिया, यह सोचकर उन्हें बहुत दु:ख हुआ। लेकिन इसके बाद भी वे लंका के अन्य स्थानों पर माता सीता की खोज करने लगे। अशोक वाटिका में जब हनुमानजी ने माता सीता को देखा तो वे अति प्रसन्न हुए। इस प्रकार हनुमानजी ने यह कठिन काम भी बहुत ही सहजता से कर दिया।
लंका दहन
माता सीता की खोज करने के बाद हनुमानजी ने उन्हें भगवान श्रीराम का संदेश सुनाया। इसके बाद हनुमानजी ने अशोक वाटिका को तहस-नहस कर दिया। ऐसा हनुमानजी ने इसलिए किया क्योंकि वे शत्रु की शक्ति का अंदाजा लगा सकें। जब रावण के सैनिक हनुमानजी को पकड़ने आए तो उन्होंने उनका वध कर दिया।
तब रावण ने अपने पराक्रमी पुत्र अक्षयकुमार को भेजा, हनुमानजी ने उसको भी मार दिया। हनुमानजी ने अपना पराक्रम दिखाते हुए लंका में आग लगा दी। पराक्रमी राक्षसों से भरी लंका में जाकर माता सीता को खोज करना व राक्षसों का वध कर लंका को जलाने का साहस हनुमानजी ने बड़ी ही सहजता से कर दिया।
विभीषण को अपने पक्ष में करना
श्रीरामचरित मानस के अनुसार, जब हनुमानजी लंका में माता सीता की खोज कर रहे थे, तभी उनकी मुलाकात विभीषण से हुई। रामभक्त हनुमान को देखकर विभीषण बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने पूछा कि- क्या राक्षस जाति का होने के बाद भी श्रीराम मुझे अपनी शरण में लेंगे। तब हनुमानजी ने कहा कि- भगवान श्रीराम अपने सभी सेवकों से प्रेम करते हैं। जब विभीषण रावण को छोड़कर श्रीराम की शरण में आए तो सुग्रीव, जामवंत आदि ने कहा कि ये रावण का भाई है। इसलिए इस पर भरोसा नहीं करना चाहिए। उस स्थिति में हनुमानजी ने ही विभीषण का समर्थन किया था। अंत में, विभीषण के परामर्श से ही भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया।
संजीवनी बूटी लाना
राम रावण युद्ध में जब रावण के पुत्र इन्द्रजीत ने ब्रहमास्त्र का प्रयोग कर लक्ष्मण को मूर्छित कर दिया इस शक्ति का उपचार केवल संजीवनी बूटी के द्वारा ही किया जा सकता था यह बूटी केवल हिमालय पर्वत पर पायी जाती थी जिसे हनुमान जी ही लेकर आ सकते थे दूसरा कोई भी इस बूटी को उचित समय पर लाने में सक्षम नहीं था।