सुप्रभातम्: हनुमानजी ने लंका में माता सीता को किस वृक्ष के नीचे बैठा पाया था? जानिए कथा

हिमशिखर धर्म डेस्क

Uttarakhand

रामायण के अनुसार महावीर हनुमान जब सीताजी की खोज में लंका पहुंचे थे, वहां की शोभा और माया देखकर उन्‍हें बड़ा अचरज हो रहा था। पहली बात तो यह थी कि लंकानगरी में बिना आज्ञा लिए बाहर से कोई प्रवेश कर ही नहीं सकता था, लेकिन हनुमानजी सफल हो गए। फिर जब उन्‍होंने सूक्ष्म रूप धरकर लंका में सीताजी को ढूंढना शुरू किया तो लंका इतनी बड़ी और भव्‍य थी कि इधर-उधर फिरते हुए हनुमान भ्रमित होने लगे। उन्‍होंने रावण के महल का कोना-कोना छान मारा, लेकिन उन्‍हें सीताजी नहीं दिखीं।

एक जगह हनुमान को जब विभीषण का घर दिखा तो उन्‍हें अचरज हुआक। दरअसल, राक्षस होने के बावजूद विभीषण भगवान विष्‍णु के भक्‍त थे। हनुमानजी को उनके घर की चारदीवारों पर ईश्‍वरीय मुद्राओं के निशान दिखे थे। तब विभीषण-हनुमान दोनों मिलते हैं। विभीषण ही हनुमानजी को संकेत देते हैं कि सीताजी को रावण ने अशोक वाटिका में बंधक बना रखा है। विभीषण द्वारा दिए संकेत के अनुसार, हनुमान जी अशोक वाटिका की चारदीवारी के पास जा पहुंचे। वहाँ भयानक और सशस्त्र राक्षसों का पहरा था। उनसे बचने के लिए हनुमान जी ने एक बहुत छोटे से वानर का रूप धरा और वाटिका के अंदर एक पेड़ पर जा चढ़े। अशोक वाट‍िका में हनुमानजी जब घुसे तो उन्‍हें राक्षसियों के झुंड के बीच विशाल पेड़ के नीचे एक दिव्‍यजन्‍मा स्‍त्री नजर आईं। उनके मुख पर तेज था। वह स्‍त्री सीताजी ही थीं।

सीता जी अशोक के वृक्ष से कहती हैं, कि अपना नाम सत्य कर दे, मेरा शोक हर ले। हनुमान जी ने विचार किया कि माँ! यह तो नाम का ही अशोक है, शोक दूर करने की असली औषधि तो मेरे पास है। बस मुद्रिका डाल दी। संसार के सब नाम झूठे हैं, सच्चा नाम तो एक ही है, राम नाम।

हनुमान जी ने माँ को रामकथा सुनाई। संत के पास भगवान की कथा के सिवाय सुनाने को है भी क्या? यह कथा सुनने मात्र से ही कल्याण कर देती है। सुनते ही सीता जी का दुख भाग गया। जिन मनुष्यों को कथा में रुचि नहीं है, संसार की व्यथा में ही रुचि है, उन्हें कभी शांति मिल नहीं सकती। संसार की कथा तो सूली है, मृत्यु की ओर ले जाती है।
“सुनै को श्रवण सूल सम बानी”

Uttarakhand

हनुमान जी अभी भी छिपे हैं, सामने नहीं आते, कि माँ डर न जाएँ। और आए तो वही हुआ जिसका डर था-
“फिरि बैठी मन विस्मय भयऊ”
हनुमान जी कहते हैं, माँ! कथा को देखो, कथावाचक को मत देखो। कथा ही सुंदर है, कथावाचक तो पूरा बंदर है।
यहाँ लंबी चर्चा चली, फिर सीता जी आशीर्वाद देने लगीं। हनुमान जी को लगा कि उन्हें पाँच आशीर्वाद रूपी पंचतत्व की देह, और प्रभुप्रेम रूपी प्राण मिल गए। मानो नया जन्म मिल गया हो। बस पुरानी आदत वापिस आ गई। भूख लग आई-
फलों की ओर देखने लगे। सीताजी कहती हैं बेटा! ये फल मत खाना, ये लंका का फल, संसार का फल देखने में ही सुंदर है, खाने में जहरीला है। पर तभी माँ ने कहा-
“रघुपति चरण हृदय धरि तात ‘मधुर’ फल खाहू”

Uttarakhand

यही रहस्य है। संसार तो “विष” है, पर इस विष में “राम” का नाम मिला दें, तो विष+राम, विश्राम हो जाता है। तब जहरीला फल मधुर हो जाता है।
वास्तव में हनुमान जी को फल चखना नहीं है, रावण को फल चखाना है। कौन सा फल? वही फल जो राम जी का नाम न जपने वाले को मिलता है-
“भजहू न रामहि सो फल लेहू”

Uttarakhand

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *