उत्पन्ना एकादशी व्रत आज : भगवान विष्णु की पूजा से मिलता है यज्ञ, तीर्थ, स्नान और दान से भी ज्यादा पुण्य

धार्मिक मान्यता है कि एकादशी व्रत के पुण्य प्रताप से व्रती को समस्त पापों से मुक्ति मिलती है। साथ ही सभी मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होती हैं। कालांतर से एकादशी व्रत मनाने का विधान है।


पंडित उदय शंकर भट्ट

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हिमशिखर धर्म डेस्क

सनातन धर्म में एकादशी तिथि को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। 30 नवंबर को उत्पन्ना एकादशी तिथि है। अगहन महीने के देवता भी भगवान विष्णु ही है इसलिए इस दिन विष्णु जी की पूजा और व्रत से कई यज्ञ करने जितना शुभ फल मिलता है।

उत्पन्ना एकादशी महत्व

एकादशी एक देवी थीं, जिनका जन्म विष्णु जी से हुआ था। उत्पन्ना एकादशी के दिन ही एकादशी प्रकट हुई थीं। भगवान विष्णु से उत्पन्न होने के कारण ही इस दिन उत्पन्ना एकादशी व्रत किया जाता है।

विधि-विधान से करें पूजा

एकादशी व्रत पूरे विधि-विधान से करने वाला साधक सभी तीर्थों का फल प्राप्त करता है। व्रत के दिन सुपात्र को दान का भी महत्व है। जो व्यक्ति निर्जला संकल्प लेकर उत्पन्ना एकादशी का व्रत रखता है, उसे मोक्ष व भगवान विष्णु धाम की प्राप्ति होती है। ये व्रत रखने से व्यक्ति के सभी प्रकार के पापों का नाश होता है।

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एकादशी पर क्या कर सकते हैं

पद्म पुराण के मुताबिक एकादशी व्रत में भगवान विष्णु समेत देवी एकादशी की पूजा का महत्व है। इस तिथि पर पूजा-पाठ के साथ ही जरूरतमंद लोगों को धन और अनाज का दान जरूर करें। किसी मंदिर में पूजन सामग्री अर्पित करें। गौशाला में घास और धन का दान करें। ठंड के मौसम की शुरुआत होने से कंबल और गर्म कपड़ों का दान भी करना चाहिए।

एकादशी व्रत कथा

पौराणिक कथा के मुताबिक सतयुग में मुर नामक एक असुर ने अपनी शक्ति से स्वर्ग लोक पर विजय पा ली। तब इंद्रदेव विष्णु जी के पास पहुंचे और उनसे सहायता मांगी, तो विष्णु जी ने मुर से युद्ध किया, जो कई वर्षों तक चला। इसी बीच विष्णु जी को निद्रा सताने लगी तो वे बद्रिकाश्रम में हेमवती गुफा में विश्राम करने चले गए। मुर भी पीछे गया और सोते हुए विष्णु जी को मारने के लिए बढ़ा, तभी अंदर से एक कन्या निकली और उसने मुर से युद्ध किया।

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घमासान युद्ध के बाद कन्या ने मुर का मस्तक धड़ से अलग कर दिया। जब विष्णु जी की नींद टूटी, तो उन्हें सारी बात पता चली। तब प्रसन्न होकर विष्णु जी ने कन्या को वरदान दिया कि “हे कन्या तुम अब एकादशी नाम से पूजी व जानी जाओगी व सबकी मनोकामना पूर्ण कर पाप का नाश करोगी।” तभी से एकादशी व्रत परंपरा शुरू होने की मान्यता है।

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