सनातन धर्म में वैकुण्ठ चतुर्दशी का विशेष महत्व है। यह तिथि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को पड़ती है। यह तिथि आज है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जो भी जातक इस दिन श्रीहरि की पूजा करते हैं या व्रत रखते हैं उन्हें वैकुण्ठ धाम की प्राप्ति होती है। तो आइए जानते हैं कि इस चतुर्दशी का विशेष महत्व?
पंडित हर्षमणि बहुगुणा
आज ‘वैकुण्ठ चतुर्दशी’ है। कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि ‘ वैकुण्ठ चतुर्दशी’ कहलाती है और कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी ‘नरक चतुर्दशी’ जिसके अधिपति यमराज हैं। उस दिन उनकी पूजा की जाती है। ‘वैकुण्ठ चतुर्दशी’ के ‘अधिपति भगवान श्री विष्णु’ जिनकी पूजा अरुणोदय व्यापिनी ग्रहण करते हैं। व्रत और तप की दृष्टि से कार्तिक का महीना पवित्र व पुण्य प्रदायक है, इस मास का विशेष महत्व भी शास्त्रों में वर्णित है।
उत्तरायण को देवकाल और दक्षिणायन को आसुरीकाल माना जाता है। दक्षिणायन में देवकाल न होने से सत् गुणों का क्षरण होता है अतः सत् गुणों की रक्षा के लिए उपासना व व्रत विधान हमारे शास्त्रों में वर्णित है।
अतः कार्तिक मास की विशेषता इस रूप में ख्यात है ।–
मासानां कार्तिक: श्रेष्ठो देवानां मधुसूदन: ।
तीर्थं नारायणाख्यं हि त्रितयं दुर्लभं कलौ ।।
अपि च —
न कार्तिक समो मासो न कृतेन समं युगम् ।
न वेदसदृशं शास्त्रं न तीर्थं गङ्गया समम् ।।
ऐसे इस पवित्र माह में ‘वैकुण्ठ चतुर्दशी’ को रात्रि में विष्णु भगवान की पूजा कमल पुष्पों से करनी चाहिए। यह व्रत शैव व वैष्णवों की पारस्परिक एकता तथा शिव व विष्णु की एकता (एक्य) का प्रतीक है। इस व्रत की अनेकों कथाएं प्रचलित हैं पर यह यह सर्व विदित है कि कमलनयन भगवान विष्णु ने काशी में एक बार भगवान शंकर की पूजा अर्चना करने के लिए मणिकर्णिका घाट पर गंगा स्नान कर एक हजार कमल पुष्पों से अर्चना करने का मन बनाया।
भगवान शंकर ने उनकी परीक्षा लेने के लिए एक पुष्प कम कर दिया इसलिए विष्णु भगवान ने अपने ‘कमलनयन’ नाम की सार्थकता को दृष्टिगत रखते हुए अपने कमलनयन ‘नेत्र’ को अर्पित करने के लिए उद्यत हुए तो देवाधिदेव महादेव प्रकट होकर बोले — हे प्रभो ! आपके सदृश मेरा भक्त कोई नहीं है, अतः आज इस चतुर्दशी को ‘वैकुण्ठ चतुर्दशी’ के नाम से जाना जाएगा और इस दिन जो भी व्यक्ति पहले आपकी पूजा कर मेरी पूजा करेगा उसे वैकुण्ठ लोक की प्राप्ति होगी।
आज के ही दिन देवाधिदेव महादेव ने विष्णु भगवान को सुदर्शन चक्र दिया और कहा कि यह राक्षसों का अन्त करने वाला होगा, इसके समान अन्य कोई अस्त्र शस्त्र नहीं होगा।
“आत्म कल्याण की दृष्टि से व्रत और पर्वों का बहुत अधिक महत्व है। भगवान श्री कृष्ण ने गीता में भी कहा है कि -‘ यज्ञो दानं तपश्चैव पावनानि मनीषिणाम् ‘।
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