वेद भारत के प्राचीन ज्ञान-विज्ञान का मूल स्रोत हैं, इनकी संख्या चार है। इनमें ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद तथा अथर्ववेद शामिल हैं। दुनिया के सबसे प्राचीन लिखित ग्रंथ होने का गौरव भी वेदों को ही प्राप्त है। यही नहीं हिन्दू धर्म के मूल में इन्हीं ग्रंथों की भूमिका है। वेदों को ईश्वर की वाणी समझा जाता है। वेद, विश्व के उन प्राचीनतम ग्रंथों में से हैं जिनके ऋचाओं का इस्तेमाल आज भी किया जाता है। उल्लेखनीय है कि यूनेस्को ने ऋग्वेद की 1800 से 1500 ईसवी पूर्व की कई पांडुलिपियों को सांस्कृतिक धरोहर की सूची में शामिल किया है।
हिमशिखर धर्म डेस्क
हर मनुष्य कभी न कभी एकांत में यह जरूर सोचता है कि मुझे क्या करना चाहिए और जो कर रहा हूं वह सही है या नहीं। एक शब्द है- सदाचार। इसका सीधा-सा अर्थ है अच्छा आचरण। जीवन के हर क्षेत्र के लिए सदाचार के जो नियम हैं, उनको हमारे ऋषि-मुनियों ने चार वेदों में बांटा है। वेद शब्द का सीधा अर्थ होता है विविध ज्ञान। पर, आज भी कई लोगों को ऐसा लगता है कि वेद हमारा विषय नहीं है।
यह तो संस्कृत के विद्वान, पंडित, ऋषि-मुनियों के काम की चीज है। जबकि सच्चाई यह है कि यदि सामान्य से सामान्य मनुष्य भी अपने को वेद से गुजार ले तो वह जान सकता है उसे करना क्या चाहिए। ऋग्वेद का दावा है हमारे भीतर की आशा की ज्योति जब अंधकार में पड़ती है, तो उसे प्रकाश देने के मंत्र हैं इसमें। यजुर्वेद व्यापक कर्म को दिखाता है।
सामवेद में गीत-संगीत-उपासना है और अथर्ववेद इन तीनों विद्याओं का मिश्रण है। वेद असल में हमारी वृत्ति पर हाथ रखते हैं। इनमें जो मंत्र और फिलोसॉफी आई है, उसे मनुष्य अपनी वृत्ति से जोड़ सकता है और फिर उसके अनुसार जीवन के लिए जो नियम चुनना हों, चुन सकता है। तो सवाल यह नहीं है कि किस वेद को पढ़ें, किससे जुड़ें। अपनी वृत्ति के हिसाब से जो ठीक लगे, उसे अपना लीजिए। वेद हमें यही समझाते हैं और इसीलिए अद्भुत हैं।
अति ज्ञान वर्धक।