उपराष्ट्रपति ने न्याय को सुलभ और सस्ता बनाने का आह्वान किया

  • अदालतों में अत्यधिक देरी को दूर करने के तरीके खोजने की जरूरत: उपराष्ट्रपति
  • लॉ यूनिवर्सिटी को छात्रों को बदलाव के दूत बनने के लिए प्रशिक्षित करना चाहिए: उपराष्ट्रपति

नई दिल्ली

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उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने आज न्याय को सभी के लिए सुलभ और सस्ता बनाने और अदालतों में देरी को कम करने का आह्वान किया।

दामोदरम संजीवय्या लॉ यूनिवर्सिटी द्वारा आयोजित “स्वतंत्रता की भावना: आगे की ओर” विषय पर ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ समारोह का उद्घाटन करते हुए उपराष्ट्रपति नायडू ने कहा, “हमें लंबित मामलों और अदालतों में अनुचित देरी से बाहर निकलने का रास्ता खोजने की जरूरत है क्योंकि न्याय देने के लिए समयबद्धता महत्वपूर्ण है।”

उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार और राज्यों का ध्यान न्यायिक रिक्तियों को भरने और आवश्यक बुनियादी ढांचे के निर्माण पर होना चाहिए। कानूनी प्रक्रिया की लागत न्याय प्रणाली तक आम आदमी की पहुंच में बाधा नहीं बननी चाहिए।

उपराष्ट्रपति ने जोर देकर कहा कि लॉ विश्वविद्यालयों के संकायों को यहां के छात्रों को बदलाव के वाहक बनने और देश में न्याय प्रणाली के प्रशासन में परिवर्तन लाने के लिए प्रशिक्षण देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी।

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उन्होंने कानूनी बिरादरी से दबे-कुचले लोगों के लिए लड़ने और उन्हें कानूनी सहायता प्रदान करने का आग्रह किया। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि लोगों को उनका हक बिना किसी ढील या डायवर्जन के मिले। उन्होंने कहा कि अगर अधिकार नहीं दिए जाते हैं तो कानूनी बिरादरी को कार्रवाई करनी चाहिए।

 नायडू ने लोगों को त्वरित न्याय सुनिश्चित करने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी के इष्टतम उपयोग का आह्वान किया और वैकल्पिक विवाद निवारण तंत्र का पूरी तरह से लाभ उठाने का भी आह्वान किया।

विश्वविद्यालय द्वारा श्री दामोदरमसंजीवय्या के जन्म शताब्दी समारोह के अवसर पर उपराष्ट्रपति ने उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने कहा कि श्री दामोदरमसंजीवय्या को उनकी ईमानदारी, सत्यनिष्ठा और निःस्वार्थ भाव से राष्ट्र की सेवा करने की प्रतिबद्धता के लिए याद किया जाता है। उन्होंने कहा कि यह वास्तव में एक सम्मान की बात है कि इस विश्वविद्यालय का नाम भारत के ऐसे महान सपूत के नाम पर रखा गया है।

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इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलपति, प्रो. (डॉ.) एस. सूर्य प्रकाश, कुलसचिव, प्रो. (डॉ.) के. मधुसूदन राव, संकाय और छात्र उपस्थित थे।

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