नई दिल्ली : उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने आज कहा कि दुनिया जिस जलवायु संकट से गुजर रही है, उसे देखते हुए पर्यावरण की रक्षा के आंदोलन में सभी को अवश्य एक योद्धा बन जाना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘पंचायत से लेकर संसद तक सभी हितधारकों को पर्यावरण की रक्षा के लिए अवश्य सक्रिय रूप से कार्य करना चाहिए।’
उन्होंने प्रदूषण कानूनों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ सख्त कदम उठाने की आवश्यकता तथा ‘प्रदूषक भुगतान सिद्धांत’ को सख्ती से लागू करने पर विचार करने की जरूरत पर बल दिया।
हिमाचल प्रदेश में अचानक आई बाढ़ों, उत्तराखंड में भू-स्खलन तथा कनाडा एवं अमेरिका में लू जैसी हाल की आपदाओं को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि ये ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के कारण उग्र मौसम की बढ़ती बारम्बारता के उदाहरण है। उन्होंने कहा, ‘यह स्पष्ट संकेत है कि जलवायु परिवर्तन वास्तविक है और इनसे बचा नहीं जा सकता।’
नायडू ने उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश में हाल ही में बिजली गिरने से हुई मौतों पर भी चिंता जताई और कहा कि बिजली गिरने की घटनाओं में हुई वृद्धि (पिछले वर्ष की तुलना में भारत में 2020-21 के दौरान 34 प्रतिशत अधिक) को भी वैज्ञानिकों द्वारा जलवायु संकट से जोड़ा जा रहा है।
उपराष्ट्रपति ने यह भी सुझाव दिया कि पर्यावरण संरक्षण के साथ हमारी विकास संबंधी आवश्यकताओं को संतुलित करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने जोर देकर कहा कि हमेशा पुराने ढर्रे पर ही नहीं चला जा सकता।
भारतीय सभ्यता में प्रकृति को दिए गए महत्व का स्मरण करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि हमें अपने प्राकृतिक पर्यावरण के ‘ट्रस्टी’ के रूप में कार्य करना चाहिए जैसाकि गांधीजी ने सुझाव दिया था। उन्होंने पेरिस जलवायु समझौते के प्रति भारत की प्रतिबद्धता, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन बनाने में नेतृत्व का उल्लेख किया और जलवायु परिवर्तन को कम करने की दिशा में और अधिक ठोस वैश्विक प्रयासों की अपील की।
उपराष्ट्रपति ने यह भी रेखांकित किया कि किस प्रकार पर्यावरण और स्वास्थ्य गहरे रूप से एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। उन्होंने कहा, ‘अध्ययनों से पता चलता है कि प्रकृति में समय व्यतीत करने से रक्तचाप कम होता है, तनाव कम होता है और भावनात्मक कल्याण में वृद्धि होती है। प्रकृति के निकट होने से हमारा कायाकल्प हो जाता है।’