सुप्रभातम्: चक्रव्यूह में अभिमन्यु मारा गया था या फिर कौरव महाबलियों ने उसे घेर कर मार दिया था?

भगवान श्रीकृष्ण की नीति के चलते अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु को चक्रव्यूह को भेदने का आदेश दिया गया। यह जानते हुए भी कि अभिमन्यु चक्रव्यूह भेदना तो जानते हैं, लेकिन उससे बाहर निकलना नहीं जानते। दरअसल, अभिमन्यु जब सुभद्रा के गर्भ में थे तभी चक्रव्यूह को भेदना सीख गए थे लेकिन बाद में उन्होंने चक्रव्यूह से बाहर निकलने की शिक्षा कभी नहीं ली। अभिमन्यु श्रीकृष्ण के भानजे थे। अभिमन्यु के चक्रव्यूह में जाने के बाद उन्हें चारों ओर से घेर लिया गया। घेरकर उनकी जयद्रथ सहित 7 योद्धाओं द्वारा निर्मम तरीके से हत्या कर दी गई

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हिमशिखर धर्म डेस्क

महाभारत का युद्ध कुरुक्षेत्र में 18 दिनों तक चला। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि यह युद्ध कौरवों और पांडवों के बीच हुआ था। जहां कौरव धोखा देने और छल कपट में अव्वल थे। वहीं, पांडव धर्म की ओर से लड़ रहे थे। कौरवों ने पांडवों को हराने के लिए छल की रणनीति बनाई। कौरव चाहते थे कि वो युधिष्ठिर को बंदी बनाकर युद्ध जीत लें जिसके लिए उन्होंने सोचा कि वो अर्जुन को युद्ध में उलझाकर चारों भाइयों से दूर ले जाएंगे और फिर युधिष्ठिर को बंदी बना लेंगे।

इस रणनीति को अंजाम देते हुए कौरव सेना की एक टुकड़ी ने अर्जुन से युद्ध किया और वो उसे रणभूमि से दूर ले गए। वहीं, गुरु द्रोणाचार्य ने युधिष्ठिर को बंदी बनाने के लिए चक्रव्यूह की रचना क। यह चक्रव्यूह कैसे तोड़ना है इसकी जानकारी केवल पांडवों को थी। जैसे ही अर्जुन रणभूमि से दूर गया वैसे ही द्रोणाचार्य ने पांडवों को ललकारा। उन्होंने कहा कि या तो युद्ध करो या फिर हाल मान लो। लेकिन नियमों के तहत लड़ना आवश्यक था। पांडवों ने सोचा कि अगर वो युद्ध नहीं करेंगे तो भी हारेंगे और युद्ध करेंगे तो भी हारेंगे। यह देख धर्मराज युधिष्ठिर को कोई उपाय नहीं सूझ रहा था।

इस कशमकश के दौरान धर्मराज युधिष्ठिर के सामने एक युवक आया और उसने कहा कि काकाश्री, मुझे चक्रव्यूह को तोड़ने और युद्ध करने का आशीर्वाद दीजिए। यह और कोई नहीं बल्कि अभिमन्यु था, अर्जुन का पुत्र। अभिमन्यु की उम्र 16 वर्ष की ही थी। लेकिन वह अपने पिता की तरह युद्ध कौशल में निपुण थे। लेकिन युधिष्ठिर ने अभिमन्यु को मना कर दिया। लेकिन अभिमन्यु नहीं माना। उसने कहा कि जब वो अपनी मां के गर्भ में था तब उसके पिता ने उसे चक्रव्यूह तोड़ना सिखाया था। अभिमन्यु ने कहा कि उसे चक्रव्यूह तोड़ना आता है। मैं आगे रहूंगा और आप सब मेरे पीछे-पीछे आइए।

आप केवल इतना भर जानते हैं कि चक्रव्यूह में अभिमन्यु मारा गया था या फिर कौरव महाबलियों ने उसे घेर कर मार दिया था?तो फिर आप रुकिये …

श्रीकृष्ण जिसके गुरु हों और जो स्वयं केशव ही का भांजा भी हो। उसके शौर्य को फिर आधा ही जानते हैं आप तब। कुछ तथ्यों से आप वंचित हैं। क्योंकि उस लड़ाई में अभिमन्यु ने जिन वीरपुत्र योद्धाओं को मार कर वीरगति पाई थी उनको भी जान लीजिये …

और ये तब था जब … उस चक्रव्यूह को जिसे अभिमन्यु को भेदना था ..उसके प्रत्येक द्वार-पहले से लेकर सातवें पर योद्धाओं को देखिये –

१) अश्वथामा
२) दुर्योधन
३)द्रोणाचार्य
4) कर्ण
५) कृपाचार्य
६) दुशासन
7) शाल्व (दुशासन के पुत्र)

अभिमन्यु के प्रवेश के बाद ही जयद्रथ ने प्रथम प्रवेश द्वार पर पांडवों के प्रवेश को रोक दिया था।

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चक्रव्यूह जो कि कुरुक्षेत्र के सबसे खतरनाक युद्ध तंत्र में से एक था। वह चक्रव्यू जिसको भेदना असंभव था..

द्वापर युग में केवल 7 लोग ही जानते थे:

●कृष्णा
●अर्जुन
●भीष्म
●द्रोणाचार्य
●कर्ण
●अश्वत्थामा
●प्रद्युम्न

अभिमन्यु केवल उसमें प्रवेश करना जानता था
चक्रव्यूह को घूर्णन मृत्यु चक्र (rotating death wheel) भी कहा जाता था ..

यह पृथ्वी की तरह घूमता था, साथ ही हर परत के चारों ओर घूमता था। इस कारण से, निकास द्वार हर समय एक अलग दिशा में मुड़ता था, जो दुश्मन को भ्रमित करता था।

आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि संगीत या शंख ध्वनि के अनुसार, चक्रव्यूह के सैनिक अपनी स्थिति बदल सकते थे। कोई भी कमांडर या सिपाही स्वेच्छा में अपनी स्थिति नहीं बदल सकता था…द्रोण रचित चक्रव्यूह एक घूमते हुए चक्र कुंडली की तरह था, अगर कोई योद्धा इस व्यूह के खुले हुए हिस्से में घुसता था तो मारे गए सैनिक की जगह तुरंत ही दूसरा अधिक शक्तिशाली सैनिक आ जाता था, सैनिकों की पंक्ति लगातार घूमती रहती थी और बाहरी सभी चक्र शक्तिशाली होते रहते थे।

इसलिए चक्रव्यूह में प्रवेश आसान था पर बाहर निकलने के लिए योद्धा को व्यूह की किसी भी समय तात्कालिक स्थिति की जानकारी होना आवश्यक था और इसके लिए व्यूह के हर चक्र के एक योद्धा की स्थिति उसे याद रखनी पड़ती थी।

माना जाता है कि चक्रव्यूह का गठन दुश्मन को मनोवैज्ञानिक और मानसिक रूप से इतना तोड़ देता था कि दुश्मन के हजारों सैनिक एक पल में मर जाते थे।

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यह अकल्पनीय है कि यह रणनीति सदियों पहले “वैज्ञानिक रूप से” गठित की गई थी।

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