हिमशिखर खबर ब्यूरो
महाभारत में राजा परीक्षित को ये शाप मिला था कि सात दिन बात तक्षक नाग उन्हें डंस लेगा और उनकी मृत्यु हो जाएगी। राजा परीक्षित ने शुकदेव जी से निवदेन किया कि आप मुझे मृत्यु का अर्थ समझाइए।
शुकदेव जी ने जो ज्ञान परीक्षित को दिया था, वही भागवत कथा बन गया। जब इनकी बातचीत अंतिम चरण में थी, तब शुकदेव जी ने परीक्षित से कहा, ‘ये जो कथा मैंने आपको सुनाई है। इसे संसार भागवत महापुराण के नाम से जानेगा। ये कथा सबसे पहले नर-नारायण ने नारद मुनि को सुनाई थी। नारद जी ने मेरे पिता श्रीकृष्णद्वैपायन को सुनाई। इसके बाद मेरे पिता ने इसका उपदेश मुझे दिया है। यही कथा मैंने आपको सुनाई है। भविष्य में नैमिषारण्य में 88 हजार सनकादिक ऋषि इकट्ठा होंगे और एक बहुत बड़ा सत्र करेंगे। वो लोग सूत जी से कथा सुनेंगे।’
शुकदेव जी ने आगे कहा, ‘राजन् अच्छा साहित्य, अच्छे विचार और जीवन से जुड़ी बातें ऐसे ही एक-दूसरे में स्थानांतरित होती हैं। गुरु शिष्य को सुनाता है और शिष्य आगे बढ़ाता है। ये कथा वर्षों तक सुनी जाएगी।’
आज भी ये कथा भागवत के रूप में सुनी जाती है।
सीख
शुकदेव की बातें हमें शिक्षा दे रही है कि हमारे ऋषि-मुनियों ने बहुत अच्छा-अच्छा साहित्य लिखा है, सुना है। आज के समय में भी ये साहित्य हमारा मार्गदर्शन करता है। इस साहित्य को पढ़ें, सुनें और दूसरों को सुनाएं। अच्छा साहित्य आगे बढ़ाना चाहिए।