जीवन का मंत्र : आन्तरिक कलह के कारण हम उन्नति नहीं कर पा रहे हैं

महाभारत मानव को मानव बनने की प्रेरणा देता है। शायद हमारे देश में आज भी इन नीति परक शिक्षाओं पर हम अपना ध्यान केन्द्रित नहीं कर पा रहे हैं। केवल आपस में झगड़ रहे हैं, लड़ रहे हैं और कोई पराई शक्ति हम पर शासन कर रही है। हमारा मन मस्तिष्क आपस में उलझा है, इसी का स्पष्ट संकेत इस देश में देखने को मिल रहा है। आइए इस तथ्य परक प्रसंग से कुछ शिक्षा ग्रहण करने का सार्थक प्रयास किया जाय।

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पंडित हर्षमणि बहुगुणा

प्रसंग एक चिड़िया पकड़ने वाले व्याध का है। उसने चिड़ियाओं को पकड़ने के लिए जाल बिछाया। उस जाल में साथ साथ रहने वाले दो पक्षी बैठ गए। दोनों उस जाल को लेकर उड़े। वह व्याध भी आकाश में उड़ते उन्हें देख कर इधर-उधर बहुत आशा से उनके पीछे दौड़ रहा था।

ऐसा नजारा देख कर एक संत ने उस व्याध से पूछा। अरे व्याध ! मुझे यह अटपटा लग रहा है कि तुम उड़ते पक्षियों के पीछे पृथ्वी पर भटक रहे हो? तब व्याध ने कहा कि महाराज! ये दोनों पक्षी आपस में मिल कर मेरे जाल को उड़ाकर ले जा रहे हैं और अब जब इनमें झगड़ा होने लगेगा तो ये मेरे अधीन हो जाएंगे। और कुछ देर बाद उन दोनों पक्षियों में झगड़ा होना शुरू हो गया और वे दोनों लड़ते झगड़ते पृथ्वी पर गिर पड़े।

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बस, व्याध ने उन्हें पकड़ लिया। इसी प्रकार जब दो कुटुम्बियों में सम्पत्ति के लिए आपस में झगड़ा होने लगता है, तो वे शत्रुओं के चंगुल में फंसकर अपना सर्वस्व नष्ट कर देते हैं। आपसदारी के काम तो साथ बैठकर पूरे किए जाते हैं, जैसे साथ साथ भोजन करना, आपस में प्रेम की बात करना, एक दूसरे के सुख दु:ख को पूछना और आपस में मिलजुल कर रहना, ‘बिरोध करना नहीं’।

जो लोग ऐसा नहीं करते, बल्कि आपस में ही लड़ते झगड़ते रहते हैं, उनके आपसी बैर का लाभ उठाने के लिए उद्यत शत्रु उन झगड़ने वालों का सर्वनाश कर डालते हैं, इसलिए बुद्धिमानों को कभी भी आपस में लड़ाई झगड़ा नहीं करना चाहिए।

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वास्तव में आज भारत में आन्तरिक कलह के कारण हम भारतीय उन्नति के मार्ग को प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं। जितना अधिक लाभ हमें मिलना चाहिए था उतना नहीं मिल पा रहा है। क्या हम समझदार बन कर स्वार्थ से हट कर अपनी उन्नति के मार्ग को प्रशस्त नहीं कर सकते हैं। विचारणीय है, चिंतनीय है और करणीय है। आइए इस पर गहन विचार कर लाभान्वित होंगे।

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