विडम्वना : श्राद्धकर्म में पितृ तर्पण के लिए नहीं मिल रहा गाय का दूध, इसका कारण हम स्वयं

किसानों के खेतों में घुसता हुआ भूखा-प्यासा गोवंश, कूड़े के ढेरों से कूड़ा व पॉलिथीन खाता हुआ गोवंश, वाहनों से दुर्घटनाग्रस्त होता हुआ गोवंश का दिखना आम बात हो गई है। दूध देना बंद कर देने के बाद लोग गाय को सड़क पर मरने के लिए छोड़ देते हैं। इन दिनों श्राद्ध पक्ष चल रहा है। सभी जानते हैं कि श्राद्धकर्म में पितरों की तृप्ति के लिए गाय का दूध आवश्यक है। लेकिन हकीकत यह हैै कि आज के समय गाय की दुुर्दशा किसी से छुपी नहीं है। ऐसे में श्राद्ध पक्ष में हम लोग कहीं देशी गाय के दूध के बिना पितृ तर्पण के नाम पर औपचारिकता तो नहीं निभा रहे हैं-

Uttarakhand

हर्षमणि बहुगुणा
श्राद्ध पक्ष प्रारम्भ हो चुुका है। श्राद्धकर्म में पितरों की तृप्ति के लिए गाय दूध, कुश और तिल की महत्ता होती है। एक मित्र के यहां श्राद्ध में आमंत्रण था, तो न चाहते हुए भी वहाँ जाना पड़ा। श्राद्धकर्म में पितृ तर्पण के लिए दूध की आवश्यकता होती है, वह भी गाय का। लेेकिन मित्र के घर पर गाय दूध उपलब्ध नहीं हो सका।

यह आज के समय में बहुत बड़ी विडम्वना है। घर से चलते समय रास्ते में लगभग तीस पैंतीस गौवंश दिखाई दिए, तब मन में आ रहा था कि कहीं स्थान मिलता व कोई सहयोगी बनता तो इन सभी गौ माताओं को रखना था। मन का यह संकल्प कैसे पूरा होगा यही उहापोह था जिसे अभी तक सुलझा नहीं पाया। और पितृ तर्पण के लिए जब दूध उपलब्ध नहीं हुआ उस समय अपनी स्थिति देखने लायक थी। फिर गौग्रास के लिए भी गाय की आवश्यकता है सड़क पर लावारिस हालत में बहुत गाय किन्तु गौग्रास देने के लिए एक भी नहीं।

हमने गायों का दोहन कर जब वह दुधारू नहीं रही तो उसे उसी के हाल पर छोड़ दिया। तब विश्व घस्र पक्ष की याद आई, कोरोना महामारी की याद आई, आपदाओं की याद आई, मानव के अमानवीय व्यवहार की याद आई। इन सब का कारण हमारे अतिरिक्त और कोई नहीं है। जबकि भारतीय संस्कृति में यहां के मनीषियों ने गाय को माता का स्थान दिया है, और इस पितृपक्ष में श्राद्ध की पूर्णता तब मानी जाती है जब हम कौआ, कुत्ता और गाय को ग्रास अर्पित करते हैं।

आज केवल गाय के विषयक थोड़ी सी जानकारी प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। हो सकता है कि कल से हम गाय को घर पर रख कर उसे उसका खोया हुआ सम्मान दे सकें। तो आईए इस चर्चा में भाग लें।

ज्योतिष एवं वास्तु शास्त्र में गौ (गाय) की महिमा-

1– ज्योतिष में गोधूलि का समय विवाह के लिये सर्वोत्तम माना गया है।

2–यदि यात्रा के प्रारम्भ में गाय सामने पड़ जाय अथवा अपने बछड़े को दूध पिलाती हुई दिखाई पड़ जाय तो यात्रा सफल होती है।

3– जिस घर में गाय होती है, उसमें वास्तुदोष स्वतः ही समाप्त हो जाता है।

4 —जन्मपत्री में यदि शुक्र अपनी नीचराशि कन्या पर हो, शुक्र की दशा चल रही हो या शुक्र अशुभ भाव ( 6,8,12 )-में स्थित हो तो प्रात:काल के भोजन में से एक रोटी सफेद रंग की गाय को खिलाने से शुक्र का नीचत्व एवं शुक्र सम्बन्धी कुदोष समाप्त हो जाता है।

5—पितृदोष से मुक्ति :–

सूर्य, चन्द्र, मंगल या शुक्र की युति राहु से हो तो पितृदोष होता है। यह भी मान्यता है कि सूर्य का सम्बन्ध पिता से एवं मंगल का सम्बन्ध रक्त से होने के कारण सूर्य यदि शनि, राहु या केतु के साथ स्थित हो या दृष्टि सम्बन्ध हो तथा मंगल की युति राहु या केतु से हो तो पितृदोष होता है। इस दोष से जीवन संघर्षमय बन जाता है। यदि पितृदोष हो तो गाय को प्रतिदिन या अमावस्या को रोटी, गुड़, चारा आदि खिलाने से पितृदोष समाप्त हो जाता है।

6—किसी की जन्मपत्री में सूर्य नीचराशि तुला पर हो या अशुभ स्थिति में हो अथवा केतु के द्वारा परेशानियाँ आ रही हों तो सूर्य-केतु अरिष्ट होने के फलस्वरूप ग्रह दोष निवारणार्थ गाय की पूजा करनी चाहिये, दोष समाप्त होंगे।

7—यदि रास्ते में जाते समय गोमाता आती हुई दिखायी दें तो उन्हें अपने दाहिने से जाने देना चाहिये, यात्रा सफल होगी।

8—यदि बुरे स्वप्न दिखायी दें तो मनुष्य गो माता का नाम ले, बुरे स्वप्न दिखने बन्द हो जायेंगे।

9—गाय के घी का एक नाम आयु भी है-‘आयु: हि घृतम्’। अत: गाय के दूध-घी से व्यक्ति दीर्घायु होता है। हस्तरेखा में आयु रेखा टूटी हुई हो तो गायका घी काम में लें तथा गाय की पूजा करें।

10 –देशी गाय की पीठ पर जो ककुद् (कूबड़) होता है, वह ‘बृहस्पति’ है। अत: जन्मपत्रिका में यदि बृहस्पति अपनी नीच राशि मकर में हों या अशुभ स्थिति हों तो देशी गाय के इस बृहस्पति भाग एवं शिवलिंग रूपी ककुद् के दर्शन करने चाहिये। गुड़ तथा चने की दाल रखकर गाय को रोटी भी दें।

11–गोमाता के नेत्रों में प्रकाश स्वरूप भगवान् सुर्य तथा ज्योत्स्ना के अधिष्ठाता चन्द्रदेव का निवास होता है। जन्म पत्री में सूर्य-चन्द्र कमजोर हो तो गोनेत्र के दर्शन करें, लाभ होगा।

वास्तुदोषों का निवारण भी करती है गाय

जिस स्थान पर भवन, घर का निर्माण करना हो, यदि वहाँ पर बछड़े वाली गाय को लाकर बाँधा जाय तो वहाँ सम्भावित वास्तु दोषों का स्वत: निवारण हो जाता है, कार्य निर्विघ्न पूरा होता है और समापन तक आर्थिक बाधाएँ नहीं आतीं।

गाय के प्रति भारतीय आस्था को अभिव्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि गाय सहज रूप से भारतीय जनमानस में रची-बसी है। गोसेवा को एक कर्तव्य के रूप में माना गया है। गाय सृष्टि मातृका कही जाती है। गाय के रूप में पृथ्वी की करुण पुकार और विष्णु से अवतार के लिये निवेदन के प्रसंग पुराणों में बहुत प्रसिद्ध हैं। ‘समरांगणसूत्रधार’-जैसा प्रसिद्ध बृहद्वास्तुग्रन्थ गोरूप में पृथ्वी-ब्रह्मादि के समागम-संवाद से ही आरम्भ होता है।

वास्तुग्रन्थ ‘मयमतम्’ में कहा गया है कि भवन निर्माणका शुभारम्भ करनेसे पूर्व उस भूमि पर ऐसी गाय को लाकर बाँधना चाहिये, जो सवत्सा (बछड़े वाली) हो। नवजात बछड़े को जब गाय दुलारकर चाटती है तो उसका फेन भूमिपर गिरकर उसे पवित्र बनाता है और वो समस्त दोषों का निवारण हो जाता है। यही वास्तुप्रदीप, अपराजितपृच्छा आदि ग्रन्थों में तथा महाभारत के अनुशासन पर्व में कहा गया है कि गाय जहां बैठकर निर्भयता पूर्वक सांस लेती है तो उस स्थान के सारे पापों को खींच लेती है।

*निविष्टं गोकुलं यत्र श्वासं मुञ्चति निर्भयम्*।
*विराजयति तं देशं पापं चास्यापकर्षति ।।

यह भी कहा गया है कि जिस घर में गाय की सेवा होती है, वहाँ पुत्र-पौत्र, धन, विद्या आदि सुख जो भी चाहिये, मिल जाता है। यही मान्यता अत्रिसंहिता में भी आयी है। महर्षि अत्रि ने तो यह भी कहा है कि जिस घर में सवत्सा धेनु नहीं हो, उसका मंगल-मांगल्य कैसे होगा?

*गाय का घर में पालन करना बहुत लाभकारी है। इससे घरों में सभी बाधाओं और विघ्नों का निवारण हो जाता है। बच्चों में भय नहीं रहता। विष्णुपुराण में कहा गया है कि जब श्रीकृष्ण पूतना के दुग्धपान से डर गये तो नन्द-दम्पति ने गाय की पूँछ घुमाकर उनकी नजर उतारी और भयका निवारण किया। सवत्सा गाय के शकुन लेकर यात्रा में जाने से कार्य सिद्ध होता है।

पद्मपुराण और कूर्मपुराण में कहा गया है कि कभी गाय को लाँघकर नहीं जाना चाहिये। किसी भी साक्षात्कार, उच्च अधिकारी से भेंट आदि के लिये जाते समय गाय के रँभाने की ध्वनि कान में पड़ना शुभ है। संतान-लाभ के लिये गाय की सेवा अच्छा उपाय कहा गया है।

“शिवपुराण एवं स्कन्दपुराण में कहा गया है कि गो सेवा और गोदान से यम का भय नहीं रहता। गाय के पाँव की धूलिका भी अपना महत्त्व है। यह पाप विनाशक है, ऐसा गरुड़ पुराण और पद्मपुराण का मत है। ज्योतिष एवं धर्मशास्त्रों में बताया गया है कि गोधूलि वेला विवाहादि मंगलकार्यों के लिये सर्वोत्तम मुहूर्त है।

जब गायें जंगल से चरकर वापस घर को आती हैं, उस समय को गोधूलि वेला कहा जाता है। गायके खुरों से उठने वाली धूलराशि। समस्त पाप-तापों को दूर करनेवाली है*।

पंचगव्य एवं पंचामृत की महिमा तो सर्वविदित ही है। गोदान की महिमा से कौन अपरिचित है ! ग्रहों के अरिष्ट-निवारण के लिये गोग्रास देने तथा गाय के दान की विधि ज्योतिष-ग्रन्थों में विस्तार से निरूपित की गई है। इस प्रकार गाय सर्वविध कल्याणकारी है।

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