भाई कमलानंद,
पूर्व सचिव भारत सरकार
आज नवसंवत्सर यानी विक्रम संवत 2081 का आगमन हो गया है। हमारी भारतीय संस्कृति का पावन पुनीत पर्व हिंदू नववर्ष आज मंगलवार 9 अप्रैल मंगलवार को चैत्र नवरात्रि की शुरूआत के साथ प्रारंभ हो गया है।
भारत का अतीत गौरवशाली है। यहां की सांस्कृतिक धरोहरों ने पूरे विश्व को वैज्ञानिकता, सहृदयता और करुणा की प्रेरणा दी है। हिंदू नव वर्ष यानी नव संवत्सर भी वैज्ञानिकता से परिपूर्ण है
चूंकि दुनिया के बड़े हिस्से पर कभी यूरोपीय देशों का कब्जा रहा, इसलिए इसाई कैलेंडर को मान लिया गया। हम धीरे-धीरे अपनी संस्कृति और जड़ों के कटते चले जा रहे हैं और खुद को पश्चिमी बनाने और दिखलाने में गर्व का अनुभव करते हैं। जो दुनिया भर के ‘डे’ मनाये जा रहे हैं, वे सब पाश्चात्य संस्कृति का प्रचार नहीं तो और क्या हैं?
भारत देश त्योहारों का देश है। सनातन धर्म में हर त्योहार जीवन में खुशियां लेकर आता है। खास बात यह है कि हर त्योहार को मनाने के पीछे कुछ न कुछ वैज्ञानिक तथ्य भी छिपे हुए हैं। अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से 1 जनवरी को नए साल पर प्रकृति में कुछ भी खास बदलाव देखने को नहीं मिलते। जबकि चैत्र माह में चारों तरफ फूल खिल जाते हैं और पेड़ों पर नए पत्ते आ जाते हैं। ऐसा लगता है कि मानो प्रकृति भी नया साल मना रही हो। अंग्रेजी नववर्ष की रात को लोग शराब पीकर जश्न मनाते हैं। शराब पीकर वाहन चलाने से वाहन दुर्घटना की संभावना और भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों का विनाश होता है। वहीं हिंदू नववर्ष की शुरूआत माता दुर्गा की पूजा-आराधना के साथ शुरू होता है। घर-घर में माता रानी की पूजा, गरीबों को जीवनपयोगी सामग्री बांटी जाती है। हवन-यज्ञ और पूजा-पाठ से शुद्ध सात्विक वातावरण बन जाता है।
हम भारतीयों का यह प्रथम कर्तव्य है कि पश्चिमी अंधानुकरण के भ्रमजाल से निकलकर अपनी जड़ों की ओर लौटें और महान सभ्यता के नववर्ष को बढ़-चढ़कर मनाएं, जिससे भारतवर्ष का गौरव पुनः विश्वपटल पर स्थापित हो सके। जिसमें सभी प्रकार की उन्नति का सार छिपा हुआ है। तो इस साल हम उम्मीद करते हैं कि शायद बहुत कुछ बदलेगा।
हिंदू कैलेंडर के इस पहले दिन को बहुत शुभ माना जाता है। इसी पंचांग के आधार पर तमाम त्योहार मनाए जाते हैं। हमने संविधान में अपना राष्ट्रीय कैलेंडर शालिवाहन शक को अंगीकृत किया है, लेकिन सरकारी कैलेंडर के अलावा हम उसे नहीं जानते। या शादी-व्याह या पूजा-पाठ के लिए ही हमें अपने स्वदेशी कैलेंडर की याद आती है। यह ठीक वैसा ही है, जैसे देश की राजभाषा तो हिन्दी है लेकिन कामकाज होता है अंग्रेज़ी में।
गांवों के विकास के लिए बिना सरकार की मदद (असरकारी) और असरकारी, स्वाभिमानी, स्वावलंबी, स्वतंत्र अभियान की जरुरत पर बल देना होगा। समग्र विकास, ग्राम स्वराज और पर्यावरण की चुनौतियों से निपटने के लिए प्रकृति से जुड़ना होगा। गांवों के विकास की बात करो। जड़ से जुड़ो। सभी पेंशनरों, एनजीओ, समाजसेवियों से गांवों के विकास के लिए एक-एक ब्लॉक गोद लेना चाहिए। प्रकृति से जुड़ने और पर्यावरणपूरक धंधे तलाशने होंगे।
स्वाबलंबी बनने के लिए युवाओं को स्वरोजगार पर ध्यान देना होगा, रोजगार बढ़ेगा तभी देश उन्नति के रास्ते पर चलते हुए भारत विश्वगुरु बन पाएगा। कृषि उत्पादन में अत्यधिक उर्वरक और दवाओं का उपयोग जीवन के लिए खतरा बनता जा रहा है। तेजी से पनप रहीं बीमारियों पर नियंत्रण के लिए अब जैविक खेती को बढ़ावा दिए जाने की जरूरत है।
यह विडंबना ही है, कि ज्यादातर लोग दूध बंद करते ही गाय को उसके हाल पर छोड़ देते हैं। गाय प्रदत्त गौमूत्र व गोबर हमारे जीवन के लिए उपहार स्वरूप हैं। जीवन में पंच गव्य का प्रयोग कर विभिन्न तरह की बीमारियां से बचा जा सकता हैं।