हिमशिखर धर्म डेस्क
जब भी कोई भक्त भगवान से पूछता है- मैं आपको कहां पाऊंगा, आपका पता-ठिकाना क्या है? तो भगवान बहुत अच्छा-सा उत्तर देते हैं- जरा-सा नाम है, छोटा-सा पता है। मैं अपने भक्तों के दिल में रहता हूं। कुल मिलाकर भगवान कहते हैं तुम जमाने की राह से आए, वरना सीधा रास्ता था दिल का। लंका के युद्ध में भगवान श्रीराम विजयी हो चुके थे। बाकी देवताओं के साथ इंद्र ने भी उनकी स्तुति की और उसका समापन बड़े अच्छे ढंग से किया।
‘बैैदेहि अनुज समेत। मम हृदयं करहु निकेत।।
मोहि जानिऐ निज दास। दे भक्ति रमानिवास।’
भावार्थ : जानकी और छोटे भाई लक्ष्मण सहित मेरे हृदय में अपना घर बनाइए। हे रमानिवास! मुझे अपना दास समझिए और अपनी भक्ति दीजिए।
हनुमान चालीसा की अंतिम पंक्ति में भी तुलसीदासजी ने ऐसी ही मांग करते हुए लिखा है- ‘हृदय बसहु सुर भूप।’
भगवान को अपने में बसाने के लिए, उनका ठिकाना बनाने के लिए सबसे अच्छी जगह है हमारा हृदय। तो इंद्र एक बात सिखा गए कि भले ही मैं राजा हूं, मेरे पास वैभव है, लेकिन मैं भी अपने हृदय में श्रीराम के परिवार को बैठाना चाहता हूं। इसीलिए हमारी भारतीय संस्कृति में परिवार को बहुत महत्व दिया गया है और भगवान से भी कहा है अकेले मत आना, पूरे परिवार के साथ आना। हृदय में हमारा अपना परिवार बसे या भगवान का, उसका आनंद ही कुछ और होता है।