मनुष्य का जीवन अनिश्चिताओं से भरा है। इस एक जीवन में ही न जाने कितने सुलझे और न सुलझे हुए सवाल हैं। कई चीजों से जुड़े सवाल तो आज तक एक पहेली बने हुए हैं। इसी के अंतर्गत जब हमारे धार्मिक कर्मकांडों का जिक्र होता है तो इससे जुड़ी कई मान्यताएं और परंपराएं हमारा ध्यान अपनी ओर खींचती है। ऐसे ही एक परंपरा है भगवान की पूजा अर्चना करते हुए ताली बजाने की। जी हां, जब हम किसी अपने देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना करते हैं, तो तालियां बजाते हुए उनका अभिनंदन करते हैं। भगवान की पूजा के दौरान ताली बजाने की धार्मिक मान्यता आज से नहीं बल्कि कई सदियों से चल रही ही है। लेकिन कम ही लोग हैं जो उत्सुकतावश इसके पीछे का कारण जानने का प्रयास करते हैं। तो चलिए आज हम आपको बताएंगे कि जब भी हम भगवान कि पूजा या फिर आरती-वंदना करते हैं तो तालियां क्यों बजाते हैं? हम आपको आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दोनों तरीकों से बताएंगे कि लोग ऐसा क्यों करते हैं।
हिमशिखर धर्म डेस्क
आमतौर पर भगवान की स्तुति करने वक्त ताली बजाने का प्रचलन है। सामान्यत: हम किसी भी मंदिर में आरती के समय सभी को ताली बजाते देखते हैं और हम खुद भी ताली बजाना शुरू कर देते हैं। ऐसे कई मौके होते हैं जहां ताली बजाई जाती है। किसी समारोह में, स्कूल में, घर में आदि स्थानों पर जब भी कोई खुशी और उत्साह वाली बात होती है हम उसका ताली बजाकर अभिवादन करते हैं।
ताली दुनिया का सर्वोत्तम एवं सरल सहज योग है और यदि प्रतिदिन यदि नियमित रूप से ताली बजाई जाये तो कई तरह के हठयोग या आसनों का फायदा मिलता है।
एक्यूप्रेशर सिद्धांत के अनुसार, मनुष्य के हाथों में पूरे शरीर के अंग व प्रत्यंग के दबाव बिंदु होते हैं, जिनको दबाने पर संबंधित अंग तक खून व ऑक्सीजन का प्रवाह पहुंचने लगता है और धीरे-धीरे वह रोग ठीक होने लगता है। यह जानकार आप सभी को बेहद ख़ुशी होगी कि इन सभी दबाव बिंदुओं को दबाने का सबसे प्रभावी व सरल सरल तरीका होता है ताली बजाना।
ताली के प्रकार व लाभ
1- ताली में बाएं हाथ की हथेली पर दाएं हाथ की चारों अंगुलियों को एक साथ तेज दबाव के साथ इस प्रकार मारा जाता है कि दबाव पूरा हो और आवाज अच्छी आये।
2- थप्पी ताली- ताली में दोनों हाथों के अंगूठे, अंगूठे से कनिष्का, कनिष्का से तर्जनी, तर्जनी से सभी अंगुलियां अपने समानांतर दूसरे हाथ की अंगुलियों पर पड़ती हों, हथेली-हथेली पर पड़ती हो। इस प्रकार की ताली की आवाज बहुत तेज व काफी दूर तक जाती है। यह ताली कान, आंख, कंधे, मस्तिष्क, मेरूदंड के बिंदुओं पर दबाव डालती है।
एक्यूप्रेशर चिकित्सकों की राय में इस ताली को भी तब तक बजाना चाहिए, जब तक कि हथेली लाल न हो जाये।
3- ग्रिप ताली- इस प्रकार की ताली में सिर्फ हथेली को हथेली पर ही इस प्रकार मारा जाता है कि वह क्रॉस का रूप धारण कर ले। यह ताली उत्तेजना बढ़ाने का विशेष कार्य करती है।
इस ताली से अन्य अंगों के दबाव बिंदु सक्रिय हो उठते हैं और यह ताली सम्पूर्ण शरीर को सक्रिय करने में मदद करती है। यदि इस ताली को तेज व देर तक बजाया जाये तो शरीर में पसीना आने लगता है।
अंत में इतना ही कहूंगा कि एक्यूप्रेशर के प्रभाव एवं दुष्प्रभावों को, जिन्हें हम आज नहीं समझ पाते हैं। उन्हें हमारे पूर्वज ऋषि-मुनि हजारों-लाखों लाख पहले ही जान गए थे। अब हर किसी को बारी-बारी शारीरिक संरचना की इतनी गूढ़ बातें समझानी संभव नहीं थीं, इसलिए हमारे पूर्वजों ने इसे एक परंपरा का रूप दे दिया। ताकि मानव समुदाय आने वाली कई सदियों तक उनकी इस अनमोल खोज का लाभ उठाते रहें।