साल 2023 में मकर संक्रांति 14 जनवरी को है या 15 जनवरी को है, इसको लेकर लोगों के बीच कन्फ्यूजन की स्थिति बनी हुई है। यहां जानिए इस त्योहार की तिथि, शुभ मुहूर्त, पुण्यकाल और महत्व के बारे में।
हिमशिखर धर्म डेस्क
पंडित हर्षमणि बहुगुणा
भगवान सूर्य को समर्पित मकर संक्रांति का महापर्व इस बार 15 जनवरी को पड़ रहा है। दरअसल, इस साल सूर्य का मकर राशि में आगमन 14 जनवरी शनिवार की रात्रि को 8 बजे के बाद हो रहा है। ऐसे में निर्णयामृत के अनुसार सूर्यास्त के बाद संक्रांति काल शुरू होने की वजह से इसके पुण्य काल का विचार अगले दिन सूर्योदय से माना जाता है।
यूं तो भारतीय काल गणना के अनुसार साल में बारह संक्रातियां होती है, जिसमें मकर संक्रांति का विशेष महत्व माना गया है। ज्योतिष शास्त्र में संक्रांति का अर्थ सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश को कहा जाता है। अतः वह राशि जिसमें सूर्य प्रवेश करते हैं, संक्रांति के नाम से जानी जाती है। इसी तरह सूर्य जब धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो मकर संक्रांति होती है।
मकर संक्रांति श्रद्धा, उल्लास और मंगल के साथ सूर्यदेव की आराधना का महान पर्व है। भगवान सूर्यदेव उर्जा और प्राण का स्रोत हैं। जिनके बिना जीवन संभव नहीं है। मकर संक्रांति पर्व भगवान सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायण होने का संधिकाल है। शास्त्रों के अनुसार उत्तरायण की अवधि देवताओं का दिन तो दक्षिणायन रात्रि मानी जाती है। इस साल मकर संक्रांति पर्व की तिथि को लेकर उलझन की स्थिति बन रही है।
इस बार सूर्यदेव का मकर राशि में प्रवेश 14 जनवरी की रात्रि 8 बजे के बाद हो रहा है। ऐसे में उदया तिथि में यानी 15 जनवरी रविवार को सूर्योदय के बाद से मकर संक्रांति का स्नान-दान किया जाना शास्त्र सम्मत है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं। मकर संक्रांति पर दान का विशेष महत्व है। इस दिन तीर्थ स्नान, जप, पूजा-पाठ, तर्पण तथा यज्ञ करना उत्तम माना गया है। साथ ही तिल, खिचड़ी, गुड़ एवं कंबल दान करने का विशेष महत्व है।
मकर संक्रांति का शुभ मुहूर्त
मकर संक्रांति का पुण्यकाल 15 जनवरी को सुबह 07 बजकर 15 मिनट पर शुरू होगा और इसका समापन शाम 05 बजकर 46 मिनट तक रहेगा। वहीं, महापुण्यकाल सुबह 07 बजकर 15 मिनट से सुबह 09 बजकर 06 मिनट तक रहेगा। पुण्यकाल और महापुण्यकाल में स्नान-दान करना शुभ होता है।
इसलिए बदलती हैं संक्रांति की तिथियां
16 वीं, 17 वीं शताब्दी में 9, 10 जनवरी को, 17 वीं, 18 वीं शताब्दी में 11, 12 जनवरी को, 19 वीं, 20 वीं शताब्दी में 13, 14 जनवरी को, 20 वीं, 21 वीं शताब्दी में 14 और 15 जनवरी को मकर संक्रांति का पर्व मनाया गया। पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमते हुए 4 विकला पीछे घूमती है। इसे अयनांश भी कहते हैं। अयनांश धीरे-धीरे बढ़ता है। सूर्य के देरी से मकर में प्रवेश के कारण ही संक्रांति की तारीखें भी बदलती रहती हैं। इसलिए संक्रांति कभी 14 तो कभी 15 जनवरी को आती है।