चिन्तन : शुभ और अशुभ कर्म कब करने चाहिए

पंडित हर्षमणि बहुगुणा

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हिंदू धर्म और वैदिक ज्योतिष में किसी भी शुभ और मांगलिक कार्यों को करने से पहले शुभ मुहूर्त जरूर देखा जाता है।

गृहप्रवेशस्त्रिदशप्रतिष्ठा विवाहचौलव्रतबन्धदीक्षा: ।
सौम्यायने कर्म शुभं विधेयं यद्गर्हितं तत्खलु दक्षिणे च ।।

उत्तरायण में सब शुभ कर्म हो सकते हैं। गृह प्रवेश, विवाह, देव प्रतिष्ठा, मुंडन कार्य, उपनयन संस्कार और दीक्षा, मंत्र सीखना आदि शुभ कर्म करने चाहिए और दक्षिणायन में अशुभ कर्म करना उचित है।

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*उत्तरायणगे सूर्ये मीनं चैत्रं च वर्जयेत् ।
*अजगोद्वंद्वकुंभालिमृगराशिगते रवौ ।।
*मुख्यं करग्रहं त्वन्यराशिगे न कदाचन ।
*कन्यातुलामिथुनगे लग्नेच शुभ वासरे ।।
अर्थात् उत्तरायण में चैत्र मास छोड़कर वैशाख, जेष्ठ, आषाढ़, फाल्गुन, मार्गशीर्ष और माघ मास में विवाह कार्य शुभ हैं। इसके अलावा अन्य महीनों में विवाह नहीं करना चाहिए। मार्गशीर्ष मास को इसलिए चुना है कि उस महीने में भगवान राम का विवाह पञ्चमी तिथि को हुआ था।

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आज की परिस्थितियां भिन्न होती जा रही हैं, सबसे बड़ी परेशानी स्थान की है, जनसंख्या वृद्धि के कारण असमंजस की स्थिति पैदा हो जाती है अतः मन इच्छा के अनुसार जो भी दिन उचित मिलता है उसी में विवाह या शुभ कार्य कर लेते हैं पर परिणाम की चिंता नहीं की जा रही है । अतः शुभ कार्य सदैव उत्तरायण में ही श्रेयस्कर हैं। चौल कर्म का दक्षिणायन में कोई विधान नहीं है। अतः सोच विचार कर ही दिन निश्चित किया जाना चाहिए। शेष हरि इच्छा।

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