जीवन मंत्र : जब भी क्रोध करेंगे उसकी अदृश्य अग्नि कहीं न कहीं गिर कर परिणाम देगी, इसलिए गुस्से पर हमेशा नियंत्रण रखें

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हिमशिखर धर्म डेस्क  

देवताओं के राजा इंद्र को अक्सर अपनी शक्ति पर घमंड हो जाता था। एक बार ऐसे ही अहंकार में उन्होंने भगवान शिव से कहा कि हे शिव शंकर, मैं आपके जैसे ही किसी शक्तिशाली पुरुष से युद्ध करना चाहता हूं। इंद्र किसी भी तरह से भगवान शिव के समकक्ष नहीं थे। कई बार शिव की कृपा से उनकी राक्षसों से रक्षा हो पाई। फिर भी उसने भगवान शिव के सामने ऐसी बात कही।

भगवान शिव ने क्रोध में आकर अपने तीसरे नेत्र से एक अग्नि को प्रकट किया। वो अग्नि इंद्र को भस्म करने के लिए उनके पीछे गई। इंद्र डरकर भागे और जान बचाने के लिए इधर-उधर दौड़ने लगे। तब इंद्र की जान बचाने के लिए देवगुरु बृहस्पति ने भगवान शिव से प्रार्थना की। शिव ने अपनी उस क्रोधाग्नि को समुद्र में फेंक दिया।

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समुद्र में उस अग्नि से एक बालक का जन्म हुआ। वो बालक बड़ा भयंकर था। वो इतने ऊंचे स्वर में रोया कि उधर से गुजर रहे ब्रह्माजी बच्चे का रोना सुनकर रुक गए। उन्होंने उसे गोद में उठा लिया। ब्रह्माजी उसे गोद में उठाकर खिलाने लगे और खेलते-खेलते बालक ने ब्रह्माजी की दाढ़ी इतनी जोर से खींच दी कि उनकी आंखों में आंसू आ गए।

ब्रह्माजी ने कहा, मेरी आंखों से निकले जल को इस बालक ने धारण किया है, इसलिए इसका नाम जलंधर होगा। जलंधर बड़ा भारी असुर बना। उससे सारे देवता परेशान थे। उसने सभी को पराजित किया।

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सीखः कथा ये समझाती है कि हमारा क्रोध किसी न किसी तरह से नुकसान देता ही है। उसमें एक जलंधर छिपा होता है, जो आगे चलकर भारी संकट का कारण भी बन सकता है। क्रोध से बचना ही समझदारी है।

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