डा दिनेश जोशी
आयुर्वेद चिकित्सक
कलाई के मूल में नाड़ी होती है। आयुर्वेद चिकित्सक इसी से मालूम करते हैं कि मनुष्य के शरीर में कौनसा तत्व प्रबल है और किसका असंतुलन हो रहा है।
हिंदुओं में रक्षासूत्र बांधने की अतिप्राचीन परंपरा है। यह एक पवित्र पर्व है जिसके पीछे सिर्फ धार्मिक मान्यताएं ही नहीं बल्कि कुछ वैज्ञानिक कारण भी हैं। आयुर्वेद भी रक्षासूत्र को स्वास्थ्य के लिए लाभदायक मानता है।
शास्त्रों के अनुसार, पुरुष की दाईं और महिला की बाईं कलाई पर राखी बांधनी चाहिए। कलाई के मूल में नाड़ी होती है। आयुर्वेद चिकित्सक इसी से मालूम करते हैं कि मनुष्य के शरीर में कौनसा तत्व प्रबल है और किसका असंतुलन हो रहा है।
जब शरीर में तीन दोषों – वात, पित्त और कफ का संतुलन बिगड़ जाता है तब रोग की उत्पत्ति होती है। अगर ये सम होते हैं यानी इनमें सामंजस्य बरकरार रहता है तो शरीर स्वस्थ रहता है।
जब कलाई पर राखी बांधी जाती है तो इससे नाड़ी पर दबाव पड़ता है और वात, पित्त तथा कफ का संतुलन बनाए रखने में मदद मिलती है।
भारत में गर्म मौसम के बाद जब श्रावण की शुरुआत होती है तो जल की अधिकता से अनेक रोग भी उत्पन्न हो जाते हैं। श्रावण को शीतलता के अलावा रोगों की उत्पत्ति करने वाला महीना भी माना जाता है। खासकर त्वचा सम्बंधित रोग होते हैं जो पित्त प्रधान होते हैं।रक्त की शुद्धता आवस्यक है।
इसलिए श्रावण के सोमवार को उपवास और पूर्णिमा के दिन रक्षासूत्र बांधने से स्वास्थ्य को इसका लाभ मिलता है। इसके अलावा रक्षासूत्र मनुष्य को निरंतर रक्षाबंधन जैसे पर्व की पवित्रता का स्मरण कराता रहता है। अतः राखी तन, मन और जीवन को प्रसन्नता प्रदान करती है।