आचार्य अनिल कोठारी
पितृ पक्ष चल रहा है और कल 2 अक्टूबर तक रोज पितरों के नाम से पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध कर्म किए जाएंगे। इन दिनों में पितरों को जल अर्पित करने की परंपरा है और जल हथेली में लेकर अंगूठे की ओर से चढ़ाया जाता है। इसके साथ ही उंगली में कुशा की अंगूठी भी पहनी जाती है।
पितरों से जुड़े शुभ कर्म करते समय अंगूठे की ओर से पानी चढ़ाया जाता है। इस संबंध में मान्यता है कि अंगूठे की तरफ से पितरों को जल चढ़ाते हैं तो पितर देवता हमारे पिंडदान, तर्पण और धूप-ध्यान से जल्दी तृप्त हो जाते हैं।
हस्तरेखा ज्योतिष में भी बताई गई है इस परंपरा की वजह
हस्तरेखा ज्योतिष में हथेली के सभी हिस्सों के अलग-अलग स्वामी बताए गए हैं। देवी-देवताओं को हथेली के आगे वाले हिस्से की ओर से जल चढ़ाते हैं, क्योंकि ये हिस्सा देवी-देवताओं की पूजा के लिए सबसे अच्छा माना जाता है।
हथेली में अंगूठे और इंडेक्स फिंगर के नीचे बीच वाले हिस्से को पितृ तीर्थ कहते हैं, और इसे पितर देवताओं का स्थान माना जाता है। इस कारण पितरों से जुड़े कामों में अंगूठे की ओर से जल चढ़ाने की पंरपरा है। अंगूठे से चढ़ाया गया जल हमारे हाथ के पितृ तीर्थ से होता हुआ पितरों तक पहुंचता है।
हथेली का आगे का हिस्सा है जीवित लोगों के लिए
हमारी हथेली में आगे का हिस्सा जीवित लोगों के लिए है और पीछे का हिस्सा पितरों के लिए है।
पितरों के लिए श्राद्ध कर्म करते समय उंगली में कुशा की अंगूठी क्यों पहनते हैं?
श्राद्ध कर्म करते समय दोनों हाथों की अनामिका उंगली यानी इंडेक्स फिंगर में कुशा की अंगूठी पहनना जरूरी नियम है। इसके बिना पितरों से संबंधित शुभ कर्म पूरे नहीं होते हैं। कुशा को सबसे पवित्र घास माना गया है। इस घास के स्पर्श से हमारा शरीर पवित्र होता है।
अगर किसी व्यक्ति के पास कुशा की अंगूठी नहीं है तो उसे चांदी की अंगूठी पहनकर पूजन कर्म और श्राद्ध करना चाहिए। चांदी की अंगूठी न हो तो सोने की अंगूठी पहनकर श्राद्ध कर्म किए जा सकते हैं।