रामायण में श्रीराम और रावण के बीच युद्ध शुरू होने वाला था। लंका के युद्ध के मैदान में दोनों पक्षों की सेनाएं तैयार थीं। उस समय श्रीराम ने वानर सेना से एक ऐसी बात कही, जिसे सुनकर सभी चौंक गए।
श्रीराम ने वानर सेना से कहा, ‘हमें एक प्रयास और करना चाहिए। युद्ध शुरू होने से पहले हम रावण के पास एक दूत भेजें जो रावण से बात करके युद्ध टालने का प्रयास करे।’
सभी ने श्रीराम से कहा, ‘अब ऐसी स्थिति में हम रावण के पास दूत भेजकर क्या करेंगे?’
श्रीराम बोले, ‘मेरा मन है कि हमें युद्ध टालने का एक प्रयास और करना चाहिए।’
इसके बाद ये चर्चा होने लगी कि दूत बनाकर किसे भेजा जाए? सभी वानरों ने विचार रखा कि इस काम के लिए हनुमान जी से अच्छा कोई और नहीं है, ये पहले भी लंका जा चुके हैं। इनका वहां प्रभाव भी है और दबाव भी है। ये तुरंत जाएंगे और बात करके लौट आएंगे।
ये बात सुनकर राम सोचने लगे, उन्होंने हनुमान जी को देखा। हनुमान जी ने जाने के लिए कोई उत्साह नहीं दिखाया। हनुमान जी ने मन ही मन श्रीराम से कहा, ‘मैं जाने के लिए संकोच नहीं कर रहा, लेकिन मैं चाहता हूं, इस काम के लिए किसी और का चयन किया जाए, खासतौर पर अंगद का।’
राम समझ गए कि हनुमान क्या चाहते हैं और राम भी यही चाहते थे। उन्होंने सभी से कहा, ‘मेरा मन है कि इस काम के लिए युवराज अंगद को भेजना चाहिए।’ यह सलाह सभी को अच्छी लगी। इससे यह भी संदेश जा रहा था कि राम की सेना में अकेले हनुमान ही नहीं बल्कि सभी एक से बढ़कर एक वीर हैं।
राम ने अंगद से कहा, ‘तुम जाओ और इस ढंग से बात करना कि हमारा भी काम हो जाए और रावण का भी भला हो जाए।’
इसके बाद अंगद को रावण के दरबार में दूत बनाकर भेजा गया।
सीख – इस पूरी कथा में दो बातें सीख सकते हैं। पहली बात तो ये है कि बड़े से बड़े अपराधी को भी एक मौका और देना चाहिए। युद्ध अंतिम विकल्प होना चाहिए। दूसरी बात, हनुमान जी की जगह अंगद को दूत बनाकर भेजना यानी दूसरी लाइन हमेशा तैयार रखनी चाहिए। काम या संस्था कोई भी हो, सिर्फ एक ही विकल्प पर निर्भर न रहें, दूसरे विकल्प भी तैयार रखें।