महाभारत के युद्ध के ठीक बाद अर्जुन के रथ में आग लग गई थी और ये जलकर स्वाहा हो गया। यह ऐसा रथ था जो जररूत पड़ने पर किसी भी दिशा और किसी भी लोक में भ्रमण कर सकता था।
- महाभारत में अर्जुन के रथ की भी है बेहद दिलचस्प कहानी
- अर्जुन को अग्नि देव की ओर से मिला था 4 घोड़ों वाला दिव्य रथ
- अर्जुन के रथ के ऊपर पताका में स्वयं हनुमान जी विराजमान थे
हिमशिखर धर्म डेस्क
महाभारत का युद्ध अपनों के बीच हुआ था और यही कारण है कि अर्जुन कई बार इस युद्ध के दौरान मोह में फंसते रहे थे और यही कारण था कि भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें गीता का उपदेश दिया था। गीता से मिले ज्ञान के आधार पर ही अर्जुन ने अपने कर्म पर ध्यान दिया और युद्ध में अपने गुरु द्रोणाचार्य, पितामह भीष्म और अपने सगों से भिड़ गए थे। महाभारत में दोनों ओर से भीषण युद्ध हुआ था।
भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन का रथ संचालन किया था और पूरे युद्ध के दौरान वह उनके सारथी बने रहे, लेकिन महाभारत के खत्म होते ही जब अर्जुन और श्रीकृष्ण रथ से उतरे तो उनका रथ तुरंत ही जल गया। इस रथ के जलने का कारण अर्जुन को भी नहीं पता था, लेकिन भगवान श्रीकृष्ण सब जानते थे। आखिर ऐसा क्यों हुआ, आइए इसके बारे में बताएं।
अर्जुन महाभार युद्ध के खत्म होने के बाद भगवान श्रीकृष्ण से सर्वप्रथम उतरने का आग्रह किया था, लेकिन भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि वे पहले उतरें। क्यों कि भगवान को पता था कि जब तक भगवान वे रथ पर रहेंगे रथ सही सलामत रहेगा और उनके उतरते ही रथ जल जाएगा। अर्जुन के रथ से उतरने के बाद भगवान ने जैसे ही धरती पर अपने दोनों कदम रखे रथ जल गया।
यह देख अर्जुन बहुत ही विस्मित हुए और भगवान से पूछा कि आखिर उनका रथ जला क्यों, तब भगवान श्रीकृष्ण ने बताया की पार्थ, तुम्हारा रथ तो महाभारत के युद्ध के समय ही भीष्म, द्रोणाचार्य और कर्ण के दिव्यास्त्रों के प्रहारों से पहले ही खत्म हो चुका था, लेकिन इस रथ पर हनुमानजी विराजित थे, मैं स्वयं इसका सारथी था। साथ ही ये रथ सिर्फ मेरे संकल्प की वजह से चल रहा था। अब इस रथ का काम पूरा हो चुका है। इसीलिए मैंने ये रथ छोड़ दिया और ये जल गया।
बता दें कि महाभारत शुरू होने से पूर्व भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा था कि वह हनुमान जी की पूजा करे और उनसे प्रार्थना करें कि वह उनके रथ पर लगे ध्वज पर विराजमान हो जाएं। इसके बाद अर्जुन ने हनुमान जी से आग्रह किया था और हनुमान जी उनके रथ के ध्वजा पर विराजमान हो गए थे। यही कारण था कि महाभारत के युद्ध के दौरा अर्जुन का पितामाह भीष्म और कर्ण सहित कई योद्धाओं से युद्ध हुआ लेकिन उसने रथ को क्षति नहीं पहुंची थी।
यही कारण था कि जैसे ही श्रीकृष्ण भी रथ उतरे तो शेषनाग पाताल लोक चले गए और हनुमानजी रथ के ऊपर से अंतर्ध्यान हो गए और रथ में आग लग गई।
हनुमान जी का ध्वज के साथ सवार होना और फिर रथ का 18 दिन कुरुक्षेत्र युद्ध के उपरांत विस्मकारी ढंग से भस्म हो जाना- एक अद्भुत जानकारी है।