मनन करने योग्य : नि:स्वार्थ सेवा भाव ही कामयाबी का मूल मंत्र

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हर्षमणि बहुगुणा

पीछे अनुभव हैं आगे आशा और चारों ओर वास्तविकता के दर्शन होंगे परन्तु स्वयं के दर्शनों के लिए तो अपने भीतर ही जाना होगा। जीना बहुत सरल है, हारना – जीतना भी सरल है बस —सरल होना ही सबसे कठिन है।

सेवा तो आत्म संतुष्टि के लिए करनी चाहिए, प्रशंसा या महिमा के लिए नहीं। यही पुण्य है, इससे मानवता दुगुनी हो जाती है। परन्तु आज – कल प्रयास से नहीं, परिणाम से मतलब होता है और ताज्जुब है कि हमारे हाथ में मात्र प्रयास है परिणाम नहीं।

वजन बढ़ जाता है, तब हमें यदि तन बढ़े तो व्यायाम, मन बढ़े तो ध्यान, धन बढ़े तो दान करना चाहिए। क्योंकि आत्मविश्वास वह शक्ति है जिससे उजड़ी हुई दुनिया फिर बसाई जा सकती है। सुख पाने का सबसे अच्छा रास्ता, — उन वस्तुओं की चिन्ता छोड़ दी जाय जो अपनी इच्छा शक्ति से बाहर लगती हैं।

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सुख शान्ति की खोज का अपना – अपना तरीका है। कोई मन्दिर में, कोई गुरुद्वारे में,चर्च में, मठ में, मस्जिद में तो कोई मयखाने में तो कोई कण – कण में ईश्वर अंश जीव अविनाशी देखता है। दृष्टिकोण अपना – अपना है।

आत्मविश्वास सबसे आवश्यक है भले ही सफलता की गारंटी नहीं देता परन्तु सफलता के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा जरूर देता है। यदि हमें जीवन से प्रीति है तो विश्वास करें कि जो कुछ भी हो रहा है वह अच्छे के लिए ही हो रहा है और जो नहीं हो रहा है वह और भी अच्छे कारण से नहीं हो रहा है ।

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भरोसे और विश्वास पर ही पूरी दुनिया टिकी है। विश्वासघात जिसने किया उसका सर्वस्व गया और बिना भरोसे कुछ भी नहीं हो सकता है। अतः मनन कीजिएगा, चिन्तन कीजिएगा, आज का विचारणीय बिन्दु यही है।

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