यमराज धनतेरस सम्बन्ध : जानें क्‍यों धनतेरस के द‍िन यमराज को करते हैं दीपदान

हर्ष मणि बहुगुणा

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कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी ‘धन तेरस’ कहलाती है, इस दिन चांदी के बर्तन खरीदना अत्यन्त शुभ माना जाता है। परन्तु वास्तव में यह यमराज से सम्बन्ध रखने वाला व्रत है। इस दिन सायंकाल घर के बाहर मुख्य द्वार पर एक बर्तन में अनाज रखकर उसके ऊपर यम के निमित्त दक्षिणाभिमुख दीपक जलाना चाहिए तथा उसकी पूजा करनी चाहिए दीपक जलाते समय यह प्रार्थना करनी चाहिए-

मृत्युना पाशहस्तेन कालेन भार्यया सह ।

त्रयोदश्यां दीपदानात् सूर्यज: प्रीयतिमिति ।।

‘यमराज की बहिन यमुना में धन तेरस के दिन स्नान का विशेष माहात्म्य है, अतः यमुना स्नान कर पूरे दिन व्रत रखकर संध्या के समय दीपक जलाना चाहिए। क्योंकि-

कार्तिकस्यासिते पक्षे त्रयोदश्यां निशामुखे ।

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यमदीपं बहिर्दद्यादपमृत्युर्विनश्यति ।।

यम दूतों के द्वारा प्राणियों के प्राण हरण के समय जो वेदना उस परिवार को होती है उसका एक ज्वलन्त उदाहरण यमदूतों द्वारा वर्णित किया गया। उन्होंने कहा कि एक बार हमने एक राजकुमार के प्राण उसके विवाह के चौथे दिन बाद हरण किए उस समय वहां का करुण क्रन्दन, चीत्कार, हाहाकार देख सुन कर हमें अपने कृत्य पर अत्यन्त घृणा हुई और अत्यधिक दु:ख हुआ।

प्रभो! कुछ ऐसी युक्ति बताइएगा कि किसी की असामयिक मृत्यु न हो। इस पर यमराज ने कहा कि आज धनतेरस है और जो व्यक्ति आज धनतेरस के दिन मेरे निमित्त दीपदान करेगा उसकी असामयिक मृत्यु नहीं होगी। तब से यह परम्परा चली आ रही है। आप भी धन तेरस के दिन दीपदान कीजिए व अपना भविष्य उज्ज्वल बनाईए। “

“आज के दिन ही भगवान धन्वन्तरी का जन्मोत्सव भी है। समुद्र मंथन के समय भगवान धन्वन्तरी का प्राकाट्य माना जाता है देव दानवों द्वारा समुद्र मंथन करते समय क्षीर सागर से सभी रोगों की औषधियों को एक कलश में भर कर भगवान धन्वन्तरी प्रकट हुए, उस दिन कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि थी, अतः सम्पूर्ण भारत व अन्य देशों में जहां हिन्दू निवास करते हैं में इस तिथि को धन्वन्तरी जयन्ती मनाई जाती है। विशेष कर आयुर्वेद के मनीषी व वैद्यकीय समाज के लोग भगवान धन्वंतरी की प्रतिमा का पूजन करते हैं तथा जन सामान्य के दीर्घायु की कामना की जाती है।

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यह मान्यता है कि भगवान धन्वंतरी प्राणियों को रोग मुक्त करने के लिए भव भेषजावतार के रूप में अवतरित हुए। यह सब इस देश की महानता का प्रतीक है। भारतीय संस्कृति एवं आध्यात्मिक चेतना के लिए अपने पूर्वजों का स्मरण कर हम उनके कृतज्ञ हैं। ऐसे महान देश के लोगों की मंगल कामना करते हुए प्रभू श्रीराम से प्रार्थना है कि सबका योगक्षेम बनाए रखेंगे।

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