आज शनिवार, 1 अप्रैल को चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी है। इसे कामदा एकादशी कहा जाता है। इस तिथि पर व्रत-उपवास करने वाले भक्तों की सभी इच्छाएं विष्णु जी की कृपा से पूरी हो सकती हैं। शनिवार को एकादशी होने से इस दिन शनि देव की भी पूजा करेंगे तो कुंडली के ग्रह दोष शांत हो सकते हैं।
पंडित हर्षमणि बहुगुणा
आज कामदा एकादशी है। भारतीय समाज में हर दिन, हर तिथि किसी न किसी पर्व या त्योहार से जुड़े हैं। कामदा एकादशी के व्रत करने से ब्रह्महत्या आदि पापों का शमन होता है, पिशाचत्व आदि दोषों का नाश होता है और इस व्रत की कथा पढ़ने व सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल भी मिलता है। व्रत का महात्म्य पद्म पुराण में वर्णित है। जिसे गुरु वशिष्ठ ने महाराज दिलीप को सुनाया था।
इस एकादशी के विषयक युधिष्ठिर महाराज ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा! तब भगवान श्रीकृष्ण ने यह प्राचीन इतिहास सुनाया। — गुरु वशिष्ठ ने कहा कि नागपुर नामक नगर में महा भयंकर नाग रहते थे उनका राजा पुण्डरीक था, उस नगर में किन्नर, गन्धर्व और अप्सराएं भी रहती थी। ललित गन्धर्व तथा ललिता अप्सरा पति पत्नी के रूप में रहते थे व सदैव काम पीड़ित रहते थे। राज सभा में गान करते हुए ललित को पत्नी की याद आई तो उसकी जिह्वा लड़खड़ा गई व पैरों की गति भी रुक गई। राजा को इसका आभास कर्कोटक ने करवाया और राजा पुण्डरीक ने गन्धर्व को राक्षस होने का शाप दिया और शापित होने से वह भयंकर राक्षस हो गया। ललिता अपने पति की इस दशा से हैरान हो गई व छटपटाने लगी व पति के पीछे पीछे वन वन भटकने लगी। जंगल में उसे एक आश्रम दिखाई दिया जहां एक ऋषि शान्त बैठे थे। ललिता वहां गई व परेशान मुद्रा में खड़ी हो गई, ऋषि ने कारण पूछा तब ललिता ने सब सच सच बता दिया व राक्षस भाव से मुक्ति का उपाय जानना चाहा। इस पर ऋषि ने कहा देवी इस समय चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि है अतः तुम इसका व्रत करो इस व्रत से तुम्हारे सभी पाप व शाप का दोष दूर होगा। ललिता ने व्रत किया और अपने पति के उद्धार हेतु यह कहा कि ‘मैंने यह कामदा एकादशी का व्रत उपवास किया उसके पुण्य के प्रभाव से मेरे पति का राक्षस भाव दूर हो जाय’ । ललिता के पुण्य अर्पण करने के तत्काल बाद उस गन्धर्व काशाप दूर हो गया और उसे तत्क्षण पूर्ववत् गन्धर्वत्व की प्राप्ति हो गई। यह है इस व्रत की महिमा। अपना कल्याण चाहने वाले भारतीय इन व्रतों को करते हैं और अपना मानव जीवन सफल बनाते हैं।
शनिवार और एकादशी के योग में विष्णु जी के साथ ही शनि देव की पूजा जरूर करें। विष्णु जी के मंत्र ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जप करें। शनि देव को तेल चढ़ाएं और ऊँ शं शनैश्चराय नम: मंत्र का जप करें।
मंत्र जप और ग्रंथों का करें पाठ
एकादशी पर भगवान विष्णु और उनके अवतारों से जुड़े ग्रंथों का पाठ खास तौर पर करना चाहिए। जैसे विष्णु पुराण, श्रीमद् भगवद गीता, गीता सार, श्रीराम चरित मानस का पाठ कर सकते हैं। कृं कृष्णाय नम: और श्रीराम, श्रीकृष्ण के नामों का भी जप कर सकते हैं।
सूर्यास्त के बाद तुलसी के पास जलाएं दीपक
भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण की पूजा में तुलसी के बिना भोग नहीं लगाया जाता है। तुलसी के बिना विष्णु पूजा पूरी नहीं होती है। तुलसी के साथ विष्णु जी के स्वरूप शालीग्राम की पूजा की जाती है। एकादशी की शाम सूर्यास्त के बाद तुलसी के पास दीपक जलाएं और परिक्रमा करें। ध्यान रखें शाम को तुलसी को स्पर्श नहीं करना चाहिए।
ये है एकादशी व्रत की सरल विधि
जो लोग एकादशी पर व्रत करते हैं, उन्हें अन्न का सेवन नहीं करना चाहिए। दिनभर भगवान का ध्यान करें। भूखे रहना संभव न हो तो फलों का रस, दूध और फलों का सेवन कर सकते हैं। इस दिन जरूरतमंद लोगों को फलाहार का दान करना चाहिए। एकादशी की सुबह-शाम विष्णु जी की पूजा करें। अगले दिन यानी द्वादशी तिथि पर सुबह विष्णु पूजा करें। जरूरतमंद लोगों को भोजन कराएं, इसके बाद खुद भी खाना खा सकते हैं। इस तरह एकादशी का व्रत पूरा होता है।
बाल गोपाल के साथ करें गोमाता की पूजा
इस तिथि पर बाल गोपाल और गोमाता की पूजा करें। तुलसी के साथ माखन-मिश्री का भोग लगाएं। किसी गोशाला में धन और हरी घास का दान करें। गायों की देखभाल करें।