हिमशिखर धर्म डेस्क
नवरात्रि में देवी दुर्गा की पूजा करने के साथ ही देवी कथाएं सुनने और पढ़ने का महत्व काफी अधिक है। मान्यता है कि ऐसा करने से अक्षय पुण्य मिलता है और सकारात्मकता बढ़ती है। देवी दुर्गा ने समय-समय पर अपने भक्तों के कष्ट दूर करने के लिए अलग-अलग अवतार लिए हैं। प्राचीन समय में महिषासुर को ब्रह्मा जी से वरदान मिल गया था कि कोई भी देवता-दानव उसका वध नहीं कर पाएंगे, तब देवी दुर्गा अवतरित हुई थीं और उन्होंने महिषासुर का वध किया था।
श्रीकृष्ण से पहले हुआ था देवी योगमाया का अवतार
द्वापर युग में भगवान विष्णु श्रीकृष्ण के रूप में प्रकट होने वाले थे। कंस के कारागार में देवकी के गर्भ से श्रीकृष्ण का जन्म हुआ और दूसरी ओर गोकुल में नंद बाबा के यहां यशोदा जी के गर्भ से देवी मां ने योगमाया के रूप में यशोदा जी के गर्भ से जन्म लिया था। उस समय यशोदा जी गहरी नींद में थीं। वसुदेव कंस के कारागार से बालक कृष्ण को लेकर गोकुल पहुंचे और कृष्ण को यशोदा जी के पास रख दिया और वहां से नन्हीं बालिका को उठाकर मथुरा के कारागार में वापस आ गए थे और बालिका को देवकी के पास रख दिया।
कंस को जब देवकी की आठवीं संतान के बारे में खबर मिली तो वह तुरंत ही कारागार में पहुंच गया। कंस ने देवकी के पास उस नन्ही बालिका को उठा लिया और जैसे ही कंस ने उसे मारने की कोशिश की तो बालिका उसके हाथ से छूटकर आकाश की ओर चली गईं। देवी ने जाने से पहले कंस के सामने आकाशवाणी की थी कि तुम्हारा वध करने वाला जन्म ले चुका है। योगमाया देवी का एक नाम मां विंध्यवासिनी भी है।
माता दुर्गा ने तोड़ा देवताओं का घमंड
एक बार देवताओं को अपनी शक्ति पर घमंड हो गया था। जब माता दुर्गा ने देवताओं का घमंड देखा तो वे एक तेजपुंज के रूप में प्रकट हुईं। विराट तेजपुंज का रहस्य जानने के लिए इंद्र ने पवनदेव को भेजा।
पवनदेव ने खुद को सबसे शक्तिशाली देवता बताया। तब तेजपुंज ने वायुदेव के सामने एक तिनका रखा और तिनके को उड़ाने की चुनौती दी। पूरी ताकत लगाने के बाद भी पवनदेव उस तिनके को हिला न सके। इनके बाद अग्निदेव पहुंचे तो उन्हें चुनौती दी की इस तिनके को जलाकर दिखाएं, लेकिन अग्निदेव की असफल हो गए।
इन दोनों देवताओं की हार के बाद देवराज इंद्र का घमंड टूट गया और उन्होंने तेजपुंज की उपासना की। देवी मां वहां प्रकट हुईं और घमंड न करने की सलाह दी।
असंख्य आंखों के साथ प्रकट हुई थीं शाकंभरी
एक बार असुरों के आतंक की वजह से धरती पर कई वर्षों तक सूखा और अकाल पड़ गया था। तब भक्तों के दुख दूर करने के लिए असंख्य आंखों वाली देवी शाकंभरी प्रकट हुईं।
देवी ने लगातार नौ दिनों तक अपनी हजारों से आंसुओं की बारिश की थी, जिससे पृथ्वी पर फिर से हरियाली छा गई थी। शाकंभरी को ही शताक्षी नाम से भी जाना जाता है। इस स्वरूप में देवी फल और वनस्पतियों के प्रकट हुई थीं।