पंडित हर्षमणि बहुगुणा
आज फिर जल स्त्रोतों की सुचिता सुरक्षा के विषयक इस कारण कहना चाहूंगा कि जल ही जीवन है, यह केवल एक कहावत ही नहीं अपितु जीवन की एक सच्चाई भी है। अन्न को ब्रह्म कहा जाता है, पर अन्न नहीं होगा तो उसका विकल्प है फल या अन्य कोई भी वस्तु खाकर पेट भरा जा सकता है। किन्तु जल का कोई विकल्प नहीं है अतः जल स्त्रोतों की देखरेख व सुरक्षा एवं सुचिता का ध्यान रखना हमारा प्रमुख कर्तव्य है।
जल स्रोत सबके हैं किसी के व्यक्तिगत नहीं। आज ऐसे ही जल स्त्रोतों के विषयक कह रहा हूं, जिनमें से एक हन्त्यारा पानी के स्रोत से एक समय में रानीचौंरी की जलापूर्ति होती थी और दूसरा जल स्रोत है हाथी गला का शायद इन स्त्रोतों पर सरकार द्वारा कुछ न कुछ धनराशि को भी खर्च किया गया है, किन्तु हमारी उपेक्षा या नासमझी के कारण आज वीरान है। कभी कभी यह भी लगता है कि हम स्वार्थ के कारण जल स्त्रोतों की देखरेख व सुरक्षा के विषयक कह रहे हैं तभी तो कुछ समझ दार व्यक्ति उन स्त्रोतों को किसी का व्यक्तिगत स्त्रोत समझ कर अपने सहयोग से पल्ला झाड़ देते हैं और यदि कोई व्यक्ति इन स्रोतों से खिलवाड़ करता है तो कोई उसे सिविल क्षेत्र की घटना मान कर सही चिन्तन नहीं कर पाते हैं। अस्तु जल स्त्रोतों की देखरेख व सुरक्षा आवश्यक है चाहे वह किसी का भी, कहीं भी क्यों न हो। फक्वा पानी का स्रोत शायद हमारा है यह जन उसे राजशाही से जोड़ कर सार्वजनिक मानता था, शायद भ्रम था? पर जो भी हो यदि हम जल की समस्या का समाधान नहीं करेंगे तो आखिर भविष्य में पश्चाताप के अतिरिक्त कुछ भी नहीं बचेगा।
आइए जल दान के विषयक कुछ चर्चा की जाय। वास्तविकता यह है कि वसन्त ऋतु व ग्रीष्म ऋतु में शीतल सुगन्धित जल से भरे हुए घड़े के दान का विशेष महत्व है। भगवान वामन की प्रसन्नता के लिए वस्त्र, अन्न व जल का दान करना चाहिए। भविष्योत्तर पुराण में बताया है कि चैत्र, वैशाख, जेष्ठ व आषाढ़ मास में बिना मांगे ही जल दान करना चाहिए इसे वारिव्रत कहते हैं । इस मन्त्र के साथ —
नमोस्तु विष्णुरूपाय नमः सागर सम्भव: ।
अपां पूर्णोद्धरास्मांस्त्वं दु:खसंसार सागरात् ।।
“वैशाख मास में जलदान (धर्म घट ) करना चाहिए।
उदकुम्भो मयादत्तो ग्रीष्म काले दिने दिने।
शीतोदक प्रदानेन प्रीयतां मधुसूदन:।।
जेष्ठ माह में सन्तान वृद्धि हेतु अश्वत्थ वृक्ष के निमित्त जलदान करना चाहिए, निर्जला एकादशी का व्रत विचारणीय है , अतः तृष्णा शान्ति हेतु जल दान —
सिञ्चामि तेऽश्वत्थमूलं मम सन्तति वृद्धये।
अश्वत्थरूपी भगवान् प्रीयतां मे जनार्दन: ।।
सूर्य को अर्घ्य देने का यही कारण है। सोलह महादानों में चौदहवां दान सप्तसागर दान है। दानवीर या दानशील व्यक्ति सुवर्ण के सात कुण्ड बना कर क्रमशः पहले मैं लवण फिर दुग्ध, घृत, गुड़, दही, चीनी और सातवें में तीर्थों का जल भरकर विशेष विधि से दान करते हैं।
प्यासे को जल का दान करो ,
भूखे को अन्न प्रदान करो ।
रोगी को औषधि दान करो ,
निर्बल को शक्ति प्रदान करो।।
अन्न दान व जल दान के समान कोई दूसरा दान नहीं है और भविष्य में भी नहीं होगा। एक नाथ जी तो प्रयाग से जल लेकर रामेश्वर चढ़ाने के लिए जा रहे थे, रास्ते में एक गधा प्यास के कारण तड़प रहा था एकनाथ जी ने जल उसे पिला दिया। लोगों ने सोचा त्रिवेणी का जल व्यर्थ हो गया परन्तु एकनाथ जी ने हंसते हुए कहा कि भगवान सब प्राणियों के अन्दर है मेरी पूजा पूरी हो गई। अतः पेयजल के स्त्रोतों की देखरेख भी यदि हम करतें हैं तो हमारा हित ही होगा अहित कभी नहीं हो सकता है। आने वाली पीढ़ी के लिए कुछ पुण्य अर्जित अवश्य करने का प्रयास किया जा सकता है। संसार में प्याऊ लगाने की परम्परा इसी का द्योतक है। यदि हम जल दान नहीं कर सकते हैं तो उसे नष्ट, खराब या बन्द (तोड़- फोड़) तो नहीं करना चाहिए। देखरेख, सुचिता, सुरक्षा आदि हमारे हाथ में है। ”
पानी की बर्बादी न करें, बेवजह जल के स्तोत्रों को न छेड़ें, पेयजल समस्या से बचने के लिए पानी को बचाएं, भू-जल संरक्षण हेतु सभी लोग कदम उठाएं, यदि हम जल संरक्षण करेंगे तो पृथ्वी में पानी का स्तर अधिक गहरा नहीं होगा, हाल के कुछ वर्षों में भू-जल स्तर बहुत तेजी से घटा है जो कि हम सबके लिए खतरे की घण्टी है, आज विश्व भू-जल दिवस पर सभी भू-जल को संरक्षित करने हेतु अपनी तरफ से कोशिश करने का प्रयास करें, भू-जल को संरक्षित करेंगे तो हम सबका भविष्य सुरक्षित होगा। यदि सम्भव हो! तो जल संरक्षण हेतु भूमि गत टैंक बनाकर छत का जल उनमें भरा जा सकता है, यदि कच्चे होंगे तो जल भूमि के अन्दर समाएगा, यदि पक्के होंगे तो वह जल अन्य उपयोग में आ सकता है। “‘