काका हरिओम्

Uttarakhand

यहां एक बात विशेष रूप से विचारणीय है कि विश्व के सभी संप्रदायों और मतों का स्रोत वैदिक सनातन धर्म ही है। स्वामी विवेकानंद और स्वामी रामतीर्थ जी के प्रवचनों में इसका स्पष्ट रूप से उल्लेख मिलता है। तभी तो उन्हें जोर देकर यह भी कहना पड़ा कि यीशु के संदेश को यदि कोई सही अर्थों में समझना चाहता है तो उसे वेदान्त का अध्ययन करना होगा। यह अतिशयोक्ति नहीं है।

धर्म और संप्रदाय या मत के अंतर को स्पष्ट करते हुए महापुरुषों ने कहा है कि धर्म की दृष्टि व्यापक है, वह स्वीकारता है कि सत्य को शब्दों में बांधा नहीं जा सकता, स्वयं को अंतिम मान लेना एक धार्मिक द्वारा की जाने वाली बहुत बड़ी भूल है। इस दृष्टि से सनातन विचारधारा ने चारुवाक् को मानने वालों का भी विचारकों के रूप में सम्मान किया है। आज की भाषा में डिक्टेटर नहीं डेमोक्रेटिक है सनातन धर्म। जो इसे असहिष्णु कहते हैं, उनकी बुद्धि पर तरस आता है।

इन दिनों वे लोग आक्रोश में हैं, जिन्होंने सबको सम्मान दिया, सबको अपने गले से लगाया। उनका गुस्सा वाजिब है क्योंकि बदले में उनको उपेक्षा मिली। उनकी सहनशीलता और क्षमा के भाव को कायरता समझा गया। हमेशा उनका मजाक उड़ाया गया। उनके इतिहास को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया। सबसे दुखद बात तो यह है कि इस सारे कृत्य में तथाकथित अपनों ने भी उन कृतघ्नों का साथ दिया। ऐसे में गुस्सा तो बनता है क्योंकि अभी भी वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे हैं। सबक सिखाना चाहिए। लेकिन सवाल उठता है कैसे?

क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि कहीं अपनी समरनीति बनाने में हम चूक रहे हैं। कुछ संस्थाओं का कार्यक्षेत्र रहा है इस दिशा में कार्य करना कि ऐसे लोगों को पनपने न दिया जाए, जो अल्पसंख्यक होकर भी बहुसंख्यकों पर हावी होने की नापाक कोशिश कर रहे हैं।

क्या वह अपने उद्देश्य को पाने में नाकाम रहीं हैं? यदि हां तो क्यों और यदि नहीं तो वह परिणाम क्यों नहीं मिला, जो मिलना चाहिए था। यह विचारणीय है। इस समय जोश के साथ होश भी चाहिए। अमर्यादित शब्दों के प्रयोग से बचने की जरूरत है।

यहां एक बात का ध्यान रखने की जरूरत है कि सिर्फ बहिष्कार से आपकी बात में दम नहीं आएगा, आपको अपनी अस्मिता को स्थापित करने के लिए समझ और कठोर परिश्रम करना होगा। जिस दिन आपकी संतान हिंदी की गिनती और महीनों को याद कर लेगी, रविवार को नहीं प्रतिपदा और अमावस्या को जब साप्ताहिक अवकाश रखा जाएगा, तब यदि अंग्रेजी नववर्ष को न मनाने का आह्वान किया जाए, तभी वह सार्थक हो पाएगा।

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