सुपर एक्सक्लूसिव: गंगोत्री में 21 साल से आंसू बहा रहा ‘गंगापुत्र’

हिमशिखर खबर ब्यूरो

Uttarakhand

उनकी आंखों में आंसू हैं। खुशी या विषाद के नहीं, बल्कि स्नेह के। स्नेह भी ऐसा कि जिसे व्याख्यायित करने लगें तो शब्द कम पड़ जाएं। गंगा के प्रति है ना। पूरे 21 साल हो गए हैं, उन्हें गंगोत्री से थोड़ा आगे भागीरथी के तट पर ऐसे ही आंसू बहाते हुए। ऐसा प्रतीत होता है, मानो उनके भीतर जल का विशाल भंडार मौजूद है। नाम है स्वामी वेदांतानंद। शिक्षा एमए। ठिकाना अररिया बिहार, जिसे अंतर्मन में वैराग्य का भाव उत्पन्न होने पर तकरीबन 26 साल पहले छोड़ दिया और कोलकाता समेत देश-दुनिया के विभिन्न स्थानों से होते हुए पहुंच गए सीधे मां गंगा की शरण में। बस! उस दिन से आज तक मां के आंचल की छांव में ही गुजर रहा है एक-एक पल।

सर्दी हो गर्मी अथवा घनघोर बरसात, बसंत बाबा को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। किसी से कुछ बोलते भी नहीं। सुबह से शाम तक आप बसंत बाबा को भागीरथी के तट पर बैठा पाएंगे, अश्रुधारा बहाते हुए। आंखों से टपक रही बूंदें भागीरथी के जल में विलीन हो रही हैं और भावविभोर साधक मां गंगा को पुकार रहा है। गंगा की साधना में लीन इस साधक का यह रोज का नियम है। रोजाना आठ से नौ घंटे यह क्रिया चलती है। सुबह से शाम तक। सर्दियों में गंगोत्री धाम सहित जब यह पूरा उच्च हिमालयी क्षेत्र पांच से छह फीट बर्फ से ढक जाता है, तब भी। इसके लिए उन्होंने बाकायदा क्रंदन घाट का निर्माण भी कराया।

यह मां गंगा और देवभूमि की खूबसूरत वादियों का आकर्षण ही तो है कि साधु-संन्यासी यहां अनादिकाल से कभी न लौटने के लिए खिंचे चले आते रहे हैं। बसंत बाबा भी इन्हीं में से एक हैं। जर्जर काया एवं लंबी दाढी़ उनके जुनून की दास्तां बयां करने के लिए काफी है। वैसे तो बाबा किसी से भी बात नहीं करते, लेकिन आग्रह एवं जिज्ञासापूर्वक पूछे जाने पर पिछली जिंदगी के बारे में बताने को तैयार हो जाते हैं।

कहते हैं, बचपन से ही अध्यात्म की ओर झुकाव होने लगा। मन में तरह- तरह के विचार कौंधते थे। व्यग्रता बढ़ती जाती थी, सो एमए करने के बाद घर छोड़ दिया। शादी का विचार तो पहले ही त्याग दिया था।

घर से निकलने के बाद कोलकाता पहुंचा और एक मिशन के साथ काम करने लगा। लेकिन, कुछ समय में ही वहां से मोह भंग हो गया। अन्य धर्म गुरुओं के भी शरणागत हुआ, फिर भी मन को सुकून नहीं मिला। अंग्रेजी, हिंदी व बांग्ला भाषाओं पर अच्छी पकड़ थी, सो विदेश की राह पकड़ ली। आस्ट्रेलिया, अमेरिका व इंग्लैंड में सनातन धर्म का प्रचार किया, लेकिन मन को शांति फिर भी नहीं मिली। बारह साल पहले अचानक मां गंगा की शरण में आने की प्रेरणा मिली और सीधे गंगोत्री धाम चला आया। तब से भूलवश भी मां से अलग होने का विचार मन में नहीं आया। अब तो मां के आंचल में ही मेरा संसार है।

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