विनोद चमोली
मुझे लगता है कि भाजपा आलाकमान ने पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री के रूप में प्रदेश की कमान दोबारा सौंपकर एक सही निर्णय लिया है। भाजपा में दो तरह के नेता हैं। इनमें पुरानी पीढ़ी के डाॅ रमेश पोखरियाल निशंक, सतपाल महाराज सहित कई नेता हैं। तो दूसरी ओर नई पीढ़ी के जमीन से जुड़े नेता हैं जो छात्र राजनीति या संघ की सेवा से निकलकर भाजपा में आगे पहुंचे हैं। इनमें तेजतर्रार नेताओं में पुष्कर सिंह धामी शामिल हैं ।
आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए सवाल यह था कि किसको सरकार की कमान सौंपी जाए? क्योंकि चुनौतियां बहुत हैं। धामी ने पिछले छह महीने में तेजी से काम किया। इन छह महीनों में ही धामी ने विधान सभा चुनाव की पूरी तैयारी की। उन्होंने उत्तराखण्ड के गांव-गांव पहाड़-पहाड़ जाकर घूमे और लोगों से मिले। पार्टी के प्रति लोगों में भरोसा पैदा किया। हालांकि, अपनी सीट हार गए।
उस लिहाज से मुझे लगता है कि पुष्कर सिंह धामी सही चुनाव हैं। उन्होंने राजनीति की शुरूआती दीक्षा लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्र संघ की राजनीति से ली है। वहीं से उन्होंने मेहनत के संस्कार ग्रहण किए हैं। इससे पहले उन्होंने भाजपा युवा मोर्चा में रहकर काफी डायनिमक लीडरशिप दी थी। उस दौरान उन्होंने अपनी संगठन-क्षमता दिखाई थी। इसीलिए शायद उन्हें दोबारा मुख्यमंत्री के रूप में इतनी बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई है।
पार्टी ने युवा शक्ति पर भरोसा भी जताया है। युवा नेता धामी 46 साल के हैं। उनके भीतर संगठन क्षमता जबर्दस्त है। पिछली विधानसभा में उन्हें सर्वश्रेष्ठ विधायक चुना गया था।
उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि छह महीने में पार्टी को नए सिरे से खड़ा कर विधानसभा चुनाव जीतना है। पार्टी के अंदर धड़ों में संतुलन बिठना है। गढ़वाल और कुमाऊं के बीच भी संतुलन बिठाना है। नई और पुरानी पीढी के नेताओं को साथ लेकर चलना है. सूबे में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी भी आगे बढ़ रही हैं। ऐसे में इन दोनों पार्टीयो से भी लोहा लेना है।