सुप्रभातम्: महाभारत में भीष्म जानते थे कि श्रीकृष्ण भगवान हैं

भीष्म पितामह एक ज्ञानी और अनुभवी योद्धा के तौर पर महाभारत में जाने गए हैं। उन्हें न केवल धर्मों का ज्ञान था बल्कि उन्हें इस बात का भी ज्ञान था कि कौन किसका स्वरूप है। तो, ये कहना सही नहीं होगा कि भीष्म को ये बात ज्ञात नहीं थी कि भगवान श्रीकृष्ण साक्षात विष्णु के अवतार हैं। उन्हें इस बात का एहसास था कि श्रीकृष्ण भगवान् का अवतार हैं, इसका सबूत महाभारत के अनेक प्रसंगों और उनके जीवन की घटनाओं से भी स्पष्ट होता है। हालांकि, वे अपनी प्रतिज्ञा और कर्तव्य के कारण कौरवों के पक्ष में खड़े रहे, लेकिन उनके मन में श्रीकृष्ण के प्रति गहरी श्रद्धा और भक्ति थी। कैसे, जानते हैं…

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कृष्ण किसी के लिए अवतार हैं, तो किसी के लिए गीता का उपदेश देने वाले ब्रह्मनिष्ठ हैं। एक कृष्ण के इतने रूप, इतने चरित्र हैं कि जनमानस बस इतना ही कह सका, ‘हे कृष्ण! तुम सोलह कला सम्पूर्ण हो। इससे अधिक हम और कुछ नहीं कह सकते।’ श्रीकृष्ण को सम्पूर्ण अवतार, महा अवतार कहते हैं। श्रीकृष्ण का जन्म क्यों हुआ? भक्तों के उद्धार के लिए और दुष्टों के संहार के लिए।

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।
‘जब-जब धर्म की हानि होगी, जब-जब अधर्म बढ़ेगा, तब-तब दुष्टों का नाश करने और साधु अन्त:करण के व्यक्तियों का कल्याण करने मैं आता हूं।’ श्रीकृष्ण ने ‘गीता’ में यह वचन स्वयं कहा है। ‘कृष्ण’ शब्द का अर्थ है कि जो आकर्षित करने की शक्ति रखता है, जिसके भीतर चेतनता पूरे शिखर पर है। जैसे चुम्बक का काम है लोहे को अपनी ओर खींचना, ऐसे ही संसार का कल्याण करने को, जीवों का उद्धार करने को, जीवों को सन्मार्ग पर लाने को, खुद भगवान अपने ही रूप को एक जगह एक विशेष रूप में समाहित कर लेते हैं।

भीष्म पितामह महाज्ञानी और महान योगी थे। उन्हें शास्त्रों और धर्म का गहन ज्ञान था। भीष्म को श्रीकृष्ण के दिव्य स्वरूप और उनकी लीलाओं का पूर्ण ज्ञान था। वे समझते थे कि श्रीकृष्ण केवल अर्जुन के सारथी नहीं हैं, बल्कि साक्षात भगवान विष्णु हैं, जो धर्म की रक्षा के लिए अवतरित हुए हैं

वहीं जब कुरुक्षेत्र के युद्ध में श्रीकृष्ण ने भीष्म पितामह पर शस्त्र उठाने का प्रयास किया, जबकि श्रीकृष्ण ने शस्त्र न उठाने की प्रतिज्ञा ली थी, तो भीष्म ने प्रसन्न होकर भगवान को साष्टांग प्रणाम किया। यह घटना दर्शाती है कि भीष्म ने श्रीकृष्ण को भगवान मानते हुए अपने जीवन का परम धन्य क्षण समझा। इस बात का प्रमाण उस वक्त भी मिलता है जब भीष्म पितामह अपने मृत्यु-शय्या पर थे क्योंकि तब उन्होंने श्रीकृष्ण की महिमा का गुणगान किया और विष्णु सहस्रनाम का पाठ किया। उन्होंने श्रीकृष्ण को जगत का पालनकर्ता और धर्म के रक्षक के रूप में स्वीकार किया।

भीष्म जानते थे कि श्रीकृष्ण केवल अर्जुन को धर्म का ज्ञान देने के लिए ही गीता का उपदेश नहीं दे रहे हैं, बल्कि वे पूरे जगत के लिए धर्म की स्थापना कर रहे हैं। शांति पर्व में भीष्म पितामह ने स्पष्ट रूप से कहा कि श्रीकृष्ण ही परमात्मा हैं। वे अविनाशी, सर्वशक्तिमान और समस्त सृष्टि के कर्ता-धर्ता हैं। भीष्म ने अपने अंतिम क्षणों में भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान किया और अपने प्राण त्यागे। यह एक स्पष्ट संकेत है कि वे श्रीकृष्ण के परम भक्त थे और उनकी दिव्यता को पूरी तरह समझते थे।

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