देवरहा बाबा एक सिद्ध और चमत्कारिक संत थे। वह हमेशा जनकल्याण का काम करते थे। देवरिया जिले के मईल गांव में सरयू के किनारे उनका आश्रम था। आमतौर पर सुनने में आता हैं कि देवरहा बाबा 900 साल तक जिन्दा थे। पर कुछ लोग 250 साल तो कुछ 500 साल मानते हैं। बाबा यमुना के किनारे वृन्दावन में 30 मिनट तक पानी में बिना सांस लिए रह सकते थे। बाबा जानवरों की भाषा समझ जाते थे। पल भर में खतरनाक जंगली जानवरों को वह काबू कर लेते थे।
योगिराज श्रीदेवरहा बाबा
मन को प्रसन्न एवं स्वस्थ रखने का पहला उपाय है – शरीर को स्वस्थ रखना। शरीर वह रथ है, जिस पर बैठकर जीवन की यात्रा करनी होती है। शरीर एक चलता-फिरता देव-मन्दिर है, जिसमें स्वयं भगवान अपनी विभूतियों के साथ विराजते हैं। अतः मन की निर्मलता और बुद्धि की शुद्धता का साधन शरीर से प्रारम्भ होता है। शरीर तो एक साधनमात्र है, जिसकी सहायता से परम साध्य को प्राप्त करने के लिए योग, तप, जप आदि किया जाता है। इस साधनरूपी शरीर को स्वस्थ और पवित्र रखने से ही योग की शुरूआत होती है।
मांसाहार, शराब, ध्रुमपान आदि-ये सभी रोगों की जड़ हैं। सात्विक भोजन से रक्त शुद्ध होता है। तामसी भोजन से शरीर आलसी और रोगी रहता है। सात्विक भोजन से गरीबी भी दूर रहती है तथा जीवन में संतोष और प्रसन्नता आती है। अमीर आदमी यदि व्यसनों में फंसा रहे, तामसी वृत्ति रखे तो दरिद्रता सहज आयेगी। अपनी वृत्तियों की संतुष्टि के लिये वह पाप करेगा, धोखा देगा और फलस्वरूप दुःख का भागी होगा। दुःख नाना प्रकार के रोगों के रूप में कष्ट देता है।
प्रकृति के निकट रहो। शुद्ध मिट्टी में भी औषधी के गुण हैं। बच्चों का शुद्ध मिट्टी में खेलना बुरा नहीं है। नेत्र-ज्योति की रक्षा के लिए सबेरे नंगे पांव घास पर टहलो। दर्द के स्थान पर किसी के दाहिने पैर का अंगूठा लगवाओ तो आराम पहुंचेगा। दाहिने पांव के अगूंठे से विद्युत-तरंगे विशेष रूप से प्रवाहित होती हैं। आसनों की सिद्धि से शरीर निरोग रहता है। बद्धपद्मासन स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद है।
सूर्य की किरणों में औषिध के प्रचुर गुण हैं। पहले के समय में कुएं चैड़े होते थे, जिससे सूर्य तथा चन्द्रमा की किरणें पानी तक पहुंच सकें। जिस पानी या भोजन पर सूर्य अथवा चन्द्रमा की किरणें पड़ेंगी, वह अपेक्षाकृत अध्कि स्वादिष्ट तथा मीठा होगा। भोजन या दूध-दही तब सेवन करें, जब दायां स्वर चल रहा हो। जल-ग्रहण करने के समय बायां स्वर चलना चाहिए। इसके विपरीत आचरण से काया रोगी होती है-
दाहिने स्वर भोजन करै, बांयें पीवै नीर।
ऐसा संयम जब करै, सुखी रहे शरीर।।
बायें स्वर भोजन करै, दाहिने पीवे नीर।
दस दिन भूला यों करै, पावै रोग शरीर।।
सात्विक भोजन-पान से और सादे वस्त्र धरण करने से बुद्धि शुद्ध रहती है। सात्विक जीवन से शान्ति मिलती है। तामसिक जीवन से बेचैनी रहती है, उद्वेग रहता है तथा जलन और ईष्र्या होती है। इसी कारण बीड़ी-सिगरेट आदि मादक वस्तुओं का उपयोग नहीं करना चाहिए। इनसे वृत्तियां तामसिक होती हैं। इनके सेवन से बुरी आदतें पड़ जाती हैं। तंबाकू खाने-पीने से तेज नष्ट हो जाता है। कहा गया है कि युद्ध में कामधेनु के कान का जहां रक्त गिरा वहीं तंबाकू उगा और पनपा।
अतः मादक द्रव्यों के सेवन से आरोग्यकामी मनुष्य को सदा बचना चाहिए। स्वस्थ्य विचार स्वस्थ मन से उत्पन्न होता है, स्वस्थ मन स्वस्थ शरीर में रहता है और उसी का शरीर स्वस्थ रहता है, जिसकी इन्द्रियां अपने वश में हैं। इन्द्रियों को वश में रखने के लिए प्रतिदिन ब्रह्ममुहूर्त में जगकर परमात्मा का एक घंटा नियम से ध्यान किया जाए तो कल्याण अवश्य होगा।