हिमशिखर पर्यावरण डेस्क
विनोद चमोली
न जायते म्रियते वा कदाचिन्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।
अजो नित्यः शाश्वतोयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे।। (श्रीमद्भगवतगीता)
यानी यह आत्मा न कभी जन्म लेती है और न कभी मरती है। यह जन्म रहित, हमेशा रहने वाली शाश्वत और अनादि है। शरीर के मारे जाने पर भी यह नहीं मारी जाती।
यह शरीर ही है जो उत्पन्न होता है, बढ़ता है, बदलता है, घटता है या क्षीण होता है और फिर विनाश को प्राप्त होता है। ये विकार शरीर के है। किंतु आत्मा के ये सब विकार नहीं होते।
यह आत्मा कभी उत्पन्न नहीं होती। यह कभी बदलती भी नहीं है और न ही शरीर की तरह बढ़ती या घटती है। लेकिन शरीर पैदा होने के बाद धीरे-धीरे क्षीण होता जाता है यानी वृद्धावस्था को प्राप्त होता है और शरीर कमजोर होता जाता है और उसके अंग प्रत्यंग सही से कार्य नहीं करते। किंतु आत्मा कभी क्षीण नहीं होती। वह सदा एक सी रहती है। शरीर क्षीण होकर विनाश को प्राप्त हो जाता है किंतु आत्मा कभी मरती भी नहीं है। शरीर उत्पन्न होता है और नष्ट होता है लेकिन आत्मा न कभी उत्पन्न होती है और न कभी नष्ट होती है।
अब इस धरा में हिमालय के सच्चे रक्षक शरीर रूप से मौजूद नहीं हैं। लेकिन प्रकृति के चितेरे प्रेमी सुंदर लाल बहुगुणा अब पेड़-पौधों के रूप में हमेशा जिंदा रहेंगे। इस दुनिया में जब भी कहीं पर्यावरण को बचाने की बात उठेगी, तो उसमें गांधी के उस सच्चे अनुयायी की छवि हमेशा नजर आएगी। इतना ही नहीं जब भी प्रकृति पर कोई खतरा मंडराएगा तो उनकी शिक्षा और उनका दिखाया हुआ रास्ता देश के लोगों को संबल देगा। प्राण वायु देने वाले वृक्षों को बचाने के लिए देश के कोने-कोने तक आवाज पहुंचाने वाले विश्व विख्यात पर्यावरणविद् सुंदर लाल बहुगुणा की कर्म स्थली पर्वतीय नवजीवन मंडल सिल्यारा में शनिवार को उनकी स्मृति में स्थानीय अनुयायियों ने पेड़ लगाकर श्रद्धांजलि दी।
देहरादून से आन लाईन अपील करते हुए प्रकृति प्रेमी सुंदर लाल बहुगुणा के पुत्र प्रदीप बहुगुणा ने कहा कि पेड़-पौधों के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। इसलिए लोगों को पेड़ लगाने के लिए आगे आना होगा। कहा कि उनके पिता को सच्ची श्रद्धांजलि देने की बात करने वाले सभी लोगों को अपने जीवन में कम से कम पांच पेड़ लगाने का संकल्प लेना होगा। साथ ही लगाए गए पौधों की तब तक सुरक्षा करनी होगी, जब तक वे बड़े नहीं हो जाते। पेड़ लगाना प्रकृति का संरक्षण और संवर्द्धन है, जो कि ईश्वर की श्रेष्ठ आराधना है। कहा कि सिल्यारा आश्रम में जल्द ही स्मारक बनाया जाएगा, जिससे युवा पीढ़ी स्वर्गीय सुंदर लाल बहुगुणा के जीवन से प्रेरणा लेकर आगे बढ़ सके।