हिमशिखर धर्म डेस्क
श्रीमद्भगवदगीता की महिमा अगाध और असीम है। यह श्रीमद्भगद्गीता ग्रंथ प्रस्थानत्रय में माना जाता है। मनुष्य मात्र के उद्धार के लिए तीन राजमार्ग ‘प्रस्थानत्रय’ नाम से कहे जाते हैं-एक वैदिक प्रस्थान है, जिसको ‘उपनिषद’ कहते हैं। दूसरे को ‘ब्रह्मसूत्र’ कहते है। तीसरा स्मार्त प्रस्थान है, जिसको ‘भगवद्गीता’ कहते हैं। उपनिषदों में मंत्र है, ब्रह्मसूत्र में सूत्र हैं और श्रीमद्भगवदगीता में श्लोक हैं।
श्रीमद्भगवदगीता में श्लोक होते हुए भी भगवान् की वाणी होने से ये मन्त्र ही हैं। इन श्लोकों में बहुत गहरा अर्थ भरा हुआ होने से इनको सूत्र भी कह सकते हैं। ‘उपनिषद’ अधिकारी मनुष्यों के काम की चीज है और ‘ब्रह्मसूत्र’ विद्वानों के काम की चीज है, परन्तु ‘श्रीमद्भगवदगीता’ सभी के काम की चीज है।
श्रीमद्भगवदगीता बहुत ही अलौकिक, विचित्र ग्रंथ है। इसमें साधक के लिए उपयोगी पूरी सामग्री मिलती है। चाहे वह किसी भी देश का, किसी भी वेश का, किसी भी समुदाय का, किसी भी वर्ण का, किसी भी आश्रम का व्यक्ति क्यों न हो। इसका कारण यह है कि इसमें किसी समुदाय विशेष की निन्दा या प्रशंसा नहीं की गई है। प्रत्युत वास्तविक तत्व का वर्णन ही है।
वास्तविक तत्व (परमात्मा) वह है, जो परिवर्तनशील प्रकृति और प्रकृत-जन्य पदार्थों से सर्वथा अतीत और सम्पूर्ण देश, काल, वस्तु, व्यक्ति, परिस्थिति आदि में नित्य-निरंतर एकरस-एकरूप रहने वाला है। जो मनुष्य जहां है, जैसा है, वास्तविक तत्व वहां वैसा ही पूर्ण रूप से विद्यमान है। परन्तु परिवर्तनशील प्रकृतिजन्य वस्तु, व्यक्तियों में राग-द्वेष के कारण उसका अनुभव नहीं होता। सर्वथा राग-द्वेष रहित होने पर उसका स्वतः अनुभव हो जाता है।
श्रीमद्भगवदगीता का उपदेश महान अलौकिक है। इस पर कई टीकाएं लिखी गई हैं और लिखी जा रही हैं। फिर भी संत-महात्माओं और चिंतकों के मन में गीता के नए-नए भाव प्रकट होते रहते हैं। इस गंभीर ग्रंथ पर कितना ही विचार किया जाए, तो भी इसका कोई पार नहीं पा सकता। इसमें जैसे-जैसे गहरे उतरते जाते हैं, वैसे-ही-वैसे इसमें से गहरी बातें मिलती चली जाती हैं। जब एक अच्छे विद्वान् पुरुष के भावों का भी जल्दी अन्त नहीं आता, फिर जिनका नाम, रूप आदि यावन्मात्र अनन्त है, ऐसे भगवान् के द्वारा कहे हुए वचनों में भरे हुए भावों का अन्त आ ही कैसे सकता है?
इस छोटे से ग्रंथ में इतनी विलक्षणता है कि अपना वास्तविक कल्याण चाहने वाला किसी भी वर्ण, आश्रम, देश, सम्प्रदाय, मत आदि का कोई भी मनुष्य क्यों न हो, इस ग्रंथ को पढ़ते ही इसमें आकृष्ट हो जाता है। अगर मनुष्य इस ग्रंथ का थोड़ा सा भी पठन-पाठन करे तो उसको अपने उद्धार के लिए बहुत ही संतोषजनक उपाय मिलते हैं। हरेक दर्शन के अलग-अलग अधिकारी होते हैं, पर गीता की यह विलक्षणता है कि अपना उद्धार चाहने वाले सब के सब इसके अधिकारी हैं।
श्रीमद्भगवदगीता एक प्रासादिक ग्रंथ है। इसका आश्रय लेकर पाठ करने से विचित्र, अलौकिक और शान्तिदायक भाव स्फुरित होते हैं। वास्तव में इस ग्रंथ की महिमा का वर्णन करने में कोई भी समर्थ नहीं है।
महाभारत युद्ध के दौरान दिया था उपदेश
अपने ही गुरुओं और भाई पर कैसे शस्त्र उठाए जाए ये सोच कर महाभारत युद्ध के दौरान अर्जुन विमुख होने लगे। अर्जुन को इस दुविधा से निकालने के लिए तब श्रीकृष्ण ने उन्हें गीता का ज्ञान दिया था और अर्जुन को कहा था कि इंसान को निष्काम भाव से केवल कर्म करने चाहिए फल की इच्छा नहीं। इस युद्ध में वो तुम्हारे शत्रु के रूप में खड़े हैं।
श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए उपदेश ही श्रीमद्भागवत गीता में लिखे गए हैं। ऐसा कहा जाता है कि जब भी आप किसी दुविधा या परेशानी में हो तो श्रीमद्भागवत गीता को पढ़ लें। क्योंकि इसमें लिखे गए श्लोक आपको सही मार्ग दिखाने में सहायक होते हैं। श्रीमद्भागवत गीता को पढ़ने से हमें जीवन में सही राह चुनने में मदद मिलती है। साथ ही इससे हमें जीवन की बुरी परिस्थितियों से कैसे निकला जाए, इसका ज्ञान भी मिलता है।