🙏🙏 ” *स्वर्णिम प्रभात का हार्दिक अभिनन्दन एवं सु – स्वागत* ” 🙏🙏
पंडित हर्षमणि बहुगुणा
गलती एक बार हो सकती है शायद वह अपराध नहीं है, दुबारा होने पर क्षम्य नहीं हो सकती क्योंकि वह जानबूझकर की गई है। परन्तु समाज में कतिपय लोग ऐसे भी होते हैं कि एक ही गलती को बार – बार करते हैं और हर बार यही कहते हैं कि अनजाने में हुई और समाज उन्हें क्षमा भी कर देता है पर उस परमपिता परमेश्वर के यहां इसका जवाब अवश्य देना होगा। व्यक्ति को अपनी भूल सुधारनी चाहिए इसी से वह महान बनता है । इस छोटी सी कहानी से सीख लेनी आवश्यक है ।
अरब देश के एक सुल्तान न्याय प्रिय और प्रजा वत्सल थे। एक बार वे जंगल की सैर को निकले, आखेट के शौकीन भी थे। सायं काल सूर्यास्त का नजारा देख रहे थे तभी उन्हें लगा कि सामने टीले पर कोई जानवर बैठा है निशाना साध कर तीर छोड़ा, तीर लगते ही एक चीख निकली, बादशाह कांप गये क्योंकि यह मानव की चीख थी। उसके पास जाकर देखा तो एक बालक पीड़ा से छटपटा रहा था। उसका मजदूर पिता कुछ समय बाद आया, अपने पुत्र की यह हालत देख उसके बुरे हाल ।
सुल्तान ने बालक का उपचार करवाया जो ठीक हो गया उसके बाद दो थाल एक में अशर्फियां व दूसरे में तलवार रखी थी। राजा ने मजदूर से कहा — ‘मैंने जानवर समझ कर तीर छोड़ा, परन्तु वह तुम्हारे पुत्र को लगा पर तीर चलाने के कारण दोषी मैं ही हूं, तुम चाहो तो अशर्फियां लेकर इस भूल को माफ कर दो अथवा यदि मुझे माफी का हकदार न समझो तो तलवार से मेरा सर कलम कर दो । ‘
सुल्तान की न्याय प्रियता देख कर मजदूर आश्चर्य चकित रह गया और उसने कहा — ‘ महाराज मुझे दोनों में से कुछ भी नहीं चाहिए ! केवल आप यह भूल दोबारा न करें आप निरीह प्राणियों का वध करना छोड़ दें ।’ सुल्तान ने उस दिन के बाद से शिकार करना छोड़ दिया। यह थी न्याय प्रियता ! आज क्या ऐसा हो सकता है? शायद —- ? मानवीय दृष्टिकोण से विचारणीय है , अनुकरणीय है।
*मंगलमय जीवन की हार्दिक शुभकामनाओं सहित, मधुरिम प्रभात* ।