” *कान्हा के जन्मोत्सव का हार्दिक अभिनन्दन एवं कान्हा का सु – स्वागतम्
पंडित हर्षमणि बहुगुणा
*यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।*
*अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ।।
आज श्री कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत है । आज के ही दिन साधु पुरुषों का उद्धार करने के लिए, पाप कर्म करने वालोें का विनाश करने के लिए और धर्म की अच्छी तरह स्थापना करने के लिए भगवान युग युग में प्रकट हुआ करते हैं और प्रकट भी हुए। भगवान के प्रादुर्भाव का मुख्य उद्देश्य था, पृथ्वी का भार उतारना। अतः कंश के कारागार में पहले शेषनाग जी का अवतरण व फिर भगवान विष्णु का अवतार और उनकी शक्ति योगमाया भी यशोदा के गर्भ से कन्या के रूप में प्रकट हुई। भगवान को अपने पुत्र रूप में वसुदेव और देवकी ने सरलता से नहीं पाया अपितु पिछले स्वायम्भुव मन्वन्तर में सुतपा और पृश्नि ने बारह हजार वर्षों तक तपस्या करने के उपरान्त भगवान से पुत्र प्राप्ति का वरदान मांगा और भगवान से इस वर को प्राप्त कर स्वयं प्रभु पृश्निगर्भ नाम से उनके पुत्र हुए। वही दूसरे जन्म में कश्यप व अदिति बने व तब प्रभु वामन के रूप में उनके पुत्र बने और द्वापर में पूर्व जन्म के पुण्यों के फलस्वरूप वसुदेव व देवकी के गर्भ से देवकीनंदन ने अवतार लिया।
श्रीकृष्ण भगवान के नाम से संसार के लोग उस ब्रह्म को जानते हैं। भगवान श्री कृष्ण ने महाभारत के युद्ध से पहले अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया और कहा कि हे अर्जुन मैं साधु पुरुषों का उद्धार करने के लिए, पापियों का विनाश करने के लिए तथा धर्म की स्थापना करने के लिए जब भी धर्म की हानि होती है और अधर्म की वृद्धि होती है तब मैं प्रत्येक युग में प्रकट होता हूं। यहां यह विशेष ध्यान देने योग्य बात भी है कि —-“*
*क्षिप्रं हि मानुषे लोके सिद्धिर्भवति कर्मणा ।*
*”कर्म से सिद्धि” इससे बड़ा प्रभाव शाली सूत्र गीता दर्शन में नहीं है। गीता तत्व इस सूत्र में इतना सुधार और करता है कि वह कर्म असंग भाव से करे अर्थात् कर्म फल शक्ति से बचकर करना चाहिए ।
‘भगवान श्री कृष्ण की धात्री मुखरा कहती हैं कि ऐसा कभी नहीं हुआ कि यह मुखरा अपने कर्त्तव्य के पथ से विचलित हुई हो ।प्रसूति कक्ष में कभी असावधान हो जाय, पर इस बार मुझे भी नींद आ गई मैंने कोई प्रमाद भी नहीं किया, प्रसूति कक्ष को अच्छी तरह सजाया भी था। पर अर्द्ध रात्रि के बाद भयंकर वर्षा होने लगी, मैं भी थकी थी, दीवार से सिर टिकाया कि नींद आ गई, पूरी सावधान पर ठीक समय पर सो गई इस अक्षम्य प्रमाद को कैसे भूलूं। प्रहरी भी सो गए । सब मुझे माफ भी कर दें पर मैं अपने अपराध को कम करने में सक्षम नहीं हूं मेरा अपराध क्षमा के योग्य भी नहीं है । भले ही महाराज नन्द* *कह रहे हैं कि तू डर क्यों रही है क्योंकि आज तो आनन्द का अवसर है, आज तीनों लोकों को अभय करने वाला आया है।सर्वज्ञ* *महर्षि भी यही कह रहे हैं। प्रभु की लीला बड़ी विचित्र है, वह रो रोकर सबको उठा रहा है क्योंकि
*जगाने वाला भी तो वही नन्दनन्दन ही था वहीं रो रोकर सबको जगा रहा था। इस भाव को आजीवन ढोती रही धाय मां।
*जहां तक मेरा मानना है कि आत्मा का दर्शन तो सबको नहीं हो सकता पर ईश्वर की दिव्य चेतना तो हम सब में है, और वही हम सब के पथ को सदैव आलोकित करती रहेगी, जीवन में भी और जीवन के बाद भी। बस इसी मंगल कामना के साथ।
श्रीकृष्ण: शरणं मम
” *आज श्री कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत है, जन्मोत्सव तो कभी भी मनाया जा सकता है। महान है हमारा देश जहां जन्म लेने के लिए देवता भी प्रार्थना करते रहते हैं । श्री कृष्ण की पूजा अर्चना कर अपना जीवन धन्य कर सकते हैं। क्योंकि जो मनुष्य भगवान की प्राप्ति के लिए कोई यत्न नहीं करता है भगवान के मत में वह न बुद्धि मान है और न मनीषी ही है । ईश्वर के नाते सब काम किए जायं तो उससे बहुत बड़ा लाभ मिल सकता है । तो आइए आज श्रीकृष्ण व्रत कर अपना मानव जीवन सफल बनाएं और विश्व कल्याण की कामना करते हुए सबके मंगलमय भविष्य की शुभकामना भी करें, अन्यथा बुरी आसुरी भावना के बढ़ने से भगवान आएंगे और उन्हें हमारी आसुरी वृत्तियों को समाप्त करना पड़ेगा।