चन्द्रमा का प्रभाव, महत्त्व, फल तथा उपाय

 

Uttarakhand

पंडित हर्षमणि बहुगुणा

*सुनहरे सबेरे का हार्दिक अभिनन्दन एवं सु – स्वागत* “‘
” *आज सोमवार अर्थात् चन्द्र वार , आज जानते हैं कि चन्द्रमा का हमारे जीवन में क्या – क्या प्रभाव पड़ता है।* ”
” *चन्द्रमा का प्रभाव, महत्त्व, फल तथा उपाय —–* ”
“”‘ *ऋग्वेद एवं यजुर्वेद में कहा गया है कि ‘चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षोः सूर्यो अजायत:।‘*
*अर्थात् चंद्रमा जातक के मन का स्वामी होता है। मन का स्वामी होने के कारण यदि जन्म कुंडली में चंद्रमा की स्थिति ठीक न हो या वह दोषपूर्ण स्थिति में हो तो जातक को मन और मस्तिष्क से संबंधित परेशानियां होती हैं। चन्द्रमा मां का सूचक है और मन का कारक है। इसकी राशि कर्क होती हैं।*
*प्रत्येक जन्मपत्री में दो लग्न बनाये जाते हैं। एक जन्म लग्न और दूसरा चन्द्र लग्न। जन्म लग्न को देह समझा जाता है तो चन्द्र लग्न मन । बिना मन के देह का कोई अस्तित्व नहीं होता और बिना देह के मन का कोई स्थान नहीं है। देह और मन हर प्राणी के लिए आवश्यक है इसीलिये लग्न और चन्द्र दोनों की स्थिति देखना ज्योतिष शास्त्र में बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। सूर्य लग्न का अपना महत्व है। वह आत्मा की स्थिति को दर्शाता है। मन और देह दोनों का विनाश हो जाता है परन्तु आत्मा अमर है।चन्द्र ग्रहों में सबसे छोटा ग्रह है। परन्तु इसकी गति ग्रहों में सबसे अधिक है। शनि एक राशि को पार करने के लिए ढ़ाई वर्ष लेता है, बृहस्पति लगभग 1वर्ष, राहू लगभग 18 महीने और चन्द्रमा सवा दो दिन कितना अंतर है। चन्द्रमा की तीव्र गति और इसके प्रभावशाली होने के कारण किस समय क्या घटना होगी, चन्द्र से ही पता चलता है। विंशोत्तरी दशा, योगिनी दशा, अष्टोतरी दशा आदि यह सभी दशाएं चन्द्र की गति से ही बनती हैं। चन्द्र जिस नक्षत्र के स्वामी से ही दशा का आरम्भ होता है।*
*अश्विनी नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातक की दशा केतु से आरम्भ होती है क्योंकि अश्विनी नक्षत्र का स्वामी केतु है। इस प्रकार जब चन्द्र भरणी नक्षत्र में हो तो व्यक्ति शुक्र दशा से अपना जीवन आरम्भ करता है क्योंकि भरणी नक्षत्र का स्वामी शुक्र है। अशुभ और शुभ समय को देखने के लिए में, अन्तर्दशा और प्रत्यंतर दशा देखी जाती है। यह सब चन्द्र से ही निकाली जाती है।*
*ग्रहों की स्थिति निरंतर हर समय बदलती रहती है। ग्रहों की बदलती स्थिति का प्रभाव विशेषकर चन्द्र कुंडली से ही देखा जाता है। जैसे शनि चन्द्र से तीसरे, छठे और ग्यारहवें भाव में हो तो शुभ फल देता है और अन्य दूसरे भावों में हानिकारक होता है। बृहस्पति चन्द्र लग्न से दूसरे, पाँचवें, सातवें, नौवें और ग्यारहवें भाव में शुभ फल देता है और दूसरे भावों में इसका फल शुभ नहीं होता। इसी प्रकार सब ग्रहों का चलत में शुभ या अशुभ फल देखना के लिए चन्द्र लग्न ही देखा जाता है। कई योग ऐसे होते हैं तो चन्द्र की स्थिति से बनते हैं और उनका फल बहुत प्रभावित होता है।चन्द्र से अगर शुभ ग्रह छः, सात और आठ राशि में हो तो यह एक बहुत ही शुभ स्थिति है। शुभ ग्रह शुक्र, बुध और बृहस्पति माने जाते हैं। यह योग मनुष्य जीवन सुखी, ऐश्वर्य की वस्तुओं से भरपूर, शत्रुओं पर विजयी , स्वास्थ्य, लम्बी आयु कई प्रकार से सुखी बनाता है।*
*इस प्रकार से चन्द्र की स्थिति से 108 योग बनते हैं और वह चन्द्र लग्न से ही बहुत ही आसानी के साथ देखे जा सकते हैं।*
*चन्द्र का प्रभाव पृथ्वी, उस पर रहने वाले प्राणियों और पृथ्वी के दूसरे पदार्थों पर बहुत ही प्रभावशाली होता है। चन्द्र के कारण ही समुद्र मैं ज्वारभाटा उत्पन्न होता है। समुद्र पर पूर्णिमा और अमावस्या को 24 घंटे में एक बार चन्द्र का प्रभाव देखने को मिलता है। किस प्रकार से चन्द्र सागर के पानी को ऊपर ले जाता है और फिर नीचे ले आता है। तिथि बदलने के साथ-साथ सागर का उतार चढ़ाव भी बदलता रहता है*।
*चन्द्र माता का कारक है। चन्द्र और सूर्य दोनों राजयोग के कारक होते हैं। इनकी स्थिति शुभ होने से अच्छे पद की प्राप्ति होती है। चन्द्र जब धनी बनाने पर आये तो इसका कोई मुकाबला नहीं कर सकता* *।
*चन्द्र खाने-पीने के विषय में बहुत प्रभावशाली है। अगर चन्द्र की स्थिति ख़राब हो जाये तो व्यक्ति कई नशीली वस्तुओं का सेवन करने लगता है। जातक पारिजात के आठवें अध्याय के 100 वे श्लोक में लिखा है चन्द्र उच्च का वृष राशि का हो तो व व्यक्ति मीठे पदार्थ खाने का इच्छुक होता है। जातक पारिजात के अध्याय 6, श्लोक 81 में लिखा है कि चन्द्र खाने-पीने की आदतों पर प्रभाव डालता है। इसी प्रकार बृहत् पराशर होरा के अध्याय 57 श्लोक 48 में लिखा है कि अगर चन्द्र की स्थिति निर्बल हो तो शनि की अंतरदशा में व्यक्ति को समय से खाना नहीं मिलता*।
*किसी भी कुंडली में चंद्र अशुभ होने पर माता को किसी भी प्रकार का कष्ट या स्वास्थ्य को खतरा होता है, दूध देने वाले पशु की मृत्यु हो जाती है। स्मरण शक्ति कमजोर हो जाती है. घर में पानी की कमी आ जाती है या नलकूप, कुएं आदि सूख जाते हैं। इसके प्रभाव से मानसिक तनाव, मन में घबराहट, मन में तरह तरह की शंका और सर्दी बनी रहती है. व्यक्ति के मन में आत्महत्या करने के विचार भी बार-बार आते रहते हैं।*
*अगर मन अच्छा है, मनोबल ऊँचा है तब व्यक्ति के भीतर आत्मविश्वास भी बढ़ता है और वह विपरीत परिस्थितियो में भी डटा रहता है लेकिन यदि किसी व्यक्ति का मन कमजोर है या वह बहुत जल्दी परेशान हो जाता है इसका अर्थ है कि कुण्डली में उसका चंद्रमा कमजोर अवस्था में है। आज हम कमजोर चंद्रमा की बात करेगें. चंद्रमा जब कुंडली के 6, 8 या 12वें भाव में अकेला स्थित होता है तब कमजोर हो जाता है. व्यक्ति का मन हमेशा अशांत रहता है। ग्रहों में चंद्रमा को स्त्री स्वरूप माना गया है। भगवान शिव ने चंद्रमा को मस्तक पर धारण किया हुआ है, इसलिए भगवान शिव को चंद्रमा का देवता कहा गया है। जिस प्रकार सूर्य हमारे व्यक्तित्व को आकर्षक बनाते हैं, उसी प्रकार चंद्रमा हमारे मन को मजबूत करते हैं। चंद्रमा हमारे मन का कारक है। चंद्रमा हमारी माता का भी कारक है। जिनकी कुंडली में चंद्रमा उच्च का होता है, उनको अपनी मां का भरपूर प्यार मिलता है। जिनकी कुंडली में चंद्रमा दूर होता है, उनको मां का प्यार उतना नहीं मिल पाता। जिसकी कुंडली में चंद्रमा अच्छा होता है, उसको बलवान कुंडली माना जाता है। चंद्रमा की उच्च स्थिति मन में सकारात्मक विचारों का प्रवाह करती है। ऐसे जातक जो भी कार्य करने की ठान लेते हैं, उसको सफलतापूर्वक सम्पादित करके ही दम लेते हैं। जिनकी कुंडली का स्वामी चंद्र होता है, उनकी कल्पनाशक्ति गजब की होती है।जिस प्रकार सूर्य का प्रभाव आत्मा पर पूरा पड़ता है, ठीक उसी प्रकार चन्द्रमा का भी मनुष्य पर प्रभाव पड़ता है. खगोलवेत्ता ज्योतिष काल से यह मानते आ रहे हैं कि ग्रह तथा उपग्रह मानव जीवन पर पल-पल पर प्रभाव डालते हैं. जगत की भौतिक परिस्थिति पर भी चंद्रमा का प्रभाव होता है।*
*चन्द्रमा का घटता बढ़ता आकार जिस प्रकार पृथ्‍वी पर समुद्र में ज्वार भाटा का कारक बनता है उसी प्रकार इसका प्रभाव मनुष्‍य के तन और मन पर भी पड़ता है। चन्द्रमा जैसे-जैसे कृष्ण पक्ष में छोटा व शुक्ल पक्ष में पूर्ण होता है वैसे-वैसे मनुष्य के मन पर भी चन्द्र का प्रभाव पड़ता है। सूर्य के बाद धरती के उपग्रह चन्द्र का प्रभाव धरती पर पूर्णिमा के दिन सबसे ज्यादा रहता है। जिस तरह मंगल के प्रभाव से समुद्र में मूंगे की पहाड़ियां बन जाती हैं और लोगों का खून दौड़ने लगता है उसी तरह चन्द्र से समुद्र में ज्वार-भाटा उत्पत्न होने लगता है।*
*जितने भी दूध वाले वृक्ष हैं सभी चन्द्र के कारण उत्पन्न हैं। चन्द्रमा बीज, औषधि, जल, मोती, दूध, अश्व और मन पर राज करता है। लोगों की बेचैनी और शांति का कारण भी चन्द्रमा है*।
“‘ *चंद्रमा का प्रभाव आपकी कुंडली में कैसा है। —-* “‘
‘ *कुंडली में चंद्रमा की स्थिति और उस पर दूसरे ग्रहों के प्रभावों के आधार पर इस बात की गणना करना बहुत आसान हो जाता है कि मनुष्य की मानसिक स्थिति कैसी रहेगी। अपने ज्योेतिषीय अनुभव में कई बार यह देखा है कि कुंडली में चंद्र का उच्च या नीच होना व्यक्ति के स्वा्भाव और स्वपरूप में साफ दिखाई देता है।*
*कुछ जन्म कुंडलियां जिनमें चंद्रमा के पीडित या नीच होने पर जातक को कई परेशानियां हो रही थीं*-
1. *सिर दर्द व मस्तिष्क पीडा : जन्म कुंडली में अगर चंद्र 11, 12, 1,2 भाव में नीच का होऔर पाप प्रभाव में हो, या सूर्य अथवा राहु के साथ हो तो मस्तिष्क पीडा रहती हैं । इस जातक को 28 वे वर्ष में मस्तिष्क पीडा शुरु हुई थी, जो कि 7 साल तक रही । इस दौरान जातक ने अनेक उपाय करवाये ।*
2. *डिप्रेशन या तनाव : चंद्र जन्म कुंडली में 6, 8, 12 स्थान में शनि के साथ हो । शनि का प्रभाव दीर्घ अवधी तक फल देने वाला माना जाता हैं, तथा चंद्र और शनि का मिलन उस घातक विष के समान प्रभाव रखने वाला होता हैं जो धीरे धीरे करके मारता हैं। शनि नशो(Puls) का कारक होता हैं, इन दोनो ग्रहो का अशुभ स्थान पर मिलन परिणाम डिप्रेशन व तनाव उतपन्न करता हैं ।*
3. *भय व घबराहट (Phobia) : चंद्र व चतुर्थ भाव का मालिक अष्टम स्थान में हो, लग्नेश निर्बल हो तथा चतुर्थ स्थान में मंगल,केतु, व्ययेश, तृतियेश तथा अष्टमेश में से किन्ही दो ग्रह या ज्यादा का प्रभाव चतुर्थ स्थान में हो तो इस भयानक दोष का प्रभाव व्यक्ति को दंश की तरह चुभता रहता हैं। चतुर्थ स्थान हमारी आत्मा या चित का प्रतिनिधित्व करता हैं, ऐसे में इस स्थान के पाप प्रभाव में होने पर उसका प्रभाव सीधे सीधे हमारे मन व आत्मा पर पडता हैं ।*
4. *मिर्गी के दौरे : चंद्र राहु या केतु के साथ हो तथा लग्न में कोई वक्री ग्रह स्थित हो तो मिर्गी के दौरे पडते हैं।5- पागलपन या बेहोशी- चतुर्थ भाव का मालिक तथा लग्नेश पीडित हो या पापी ग्रहो के प्रभाव में हो, चंद्रमा सूर्य के निकट हो तो पागलपन या मुर्छा के योग बनते हैं। इस योग में मन व बुद्धि को नियंत्रित करने वाले सभी कारक पीडित होते हैं । चंद्र, लग्न, व चतुर्थेश इन पर पापी प्रभाव का अर्थ हैं व्यक्ति को मानसिक रोग होना। लग्न को सबसे शुभ स्थान माना गया हैं परन्तु इस स्थान में किसी ग्रह के पाप प्रभाव में होने से उस ग्रह के कारक में हानी दोगुणे प्रभाव से होती हैं ।*
6. *आत्महत्या के प्रयास : अष्टमेश व लग्नेश वक्री या पाप प्रभाव में हो तथा चंद्र के तृतिय स्थान में होने से व्यक्ति बार बार अपने को हानि पहुंचाने की कोशिश करता हैं । या फिर तृतियेश व लग्नेश शत्रु ग्रह हो, अष्टम स्थान में चंद अष्टथमेश के साथ होतो जन्म कुंडली में आत्म हत्या के योग बनते हैं । कुछ ऐसे ही योग हिटलर की पत्रिका में भी थे जिनकी वजह से उसने आत्मदाह किया* ।
*शुभ चन्द्र व्यक्ति को धनवान और दयालु बनाता है। सुख और शांति देता है। भूमि और भवन के मालिक चन्द्रमा से चतुर्थ में शुभ ग्रह होने पर घर संबंधी शुभ फल मिलते हैं। क्या न करें :-*
*ज्योतिषशास्त्र में जो उपाय बताए गये हैं उसके अनुसार चन्द्रमा कमज़ोर अथवा पीड़ित होने पर व्यक्ति को रात्रि में दूध नहीं पीना चाहिए. सफ़ेद वस्त्र धारण नहीं करना चाहिए और चन्द्रमा से सम्बन्धित रत्न नहीं पहनना चाहिए।*
‘” *जन्म कुंडली मे अरिष्ट चंद्र शांति हेतु विशिष्ट उपाय —* “‘
*जन्म कुंडली मे यदि चंद्रमा अशुभ भावो 2, 6, 8, या 12 में नीच राशिस्थ हो अथवा शत्रु राशि ग्रह से युत या दृष्ट हो तो चंद्रमा जातक/जातिका को धन, परिवार, माता आदि के संबंद में अशुभ फल प्रदान करता है। इस स्थिति में जातको को बुध, शनि, राहु, केतु की महादशा/अंतर्दशा में मध्य अनिष्ट फल प्राप्त होते है। नीचे दिए शास्त्रोक्त उपाय करने से चंद्र अरिष्ट की शांति कर शुभ फल प्रदान करता है।*
1. *चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, श्रावण, कार्तिक, मार्गशीर्ष के शुक्ल पक्ष प्रथम सोमवार से आरम्भ कर 16 अथवा 54 सोमवार विधि पूर्वक व्रत कर शिव-पार्वती का पूजन कर समाप्ति के दिन पांच छोटी कन्याओं को भोजन कराने से अरिष्ट शांति होती है*।
2. *कुंडली मे चंद्र यदि कर्क या वृष राशि का हो तो भगवती गौरी का पूजन करना शुभ होता है*।
3. *स्वास्थ्य अथवा त्रिविध तापों की अरिष्ट शांति के लिए यथा सामर्थ्य महामृत्युंजय मंत्र का जाप एवं दशांश हवन और अमोघ शिवकवच का पाठ करना शुभ होता है।*
4. *यदि चंद्रमा केतु के साथ अथवा चंद्र शनि की युति हो तो श्री गणेश जी की पूजन व गणेश सहस्त्रनाम से उपासना करनी चाहिए।*
5. *चंद्रमा यदि बुध युक्त एवं स्त्री राशि मे हो तो श्री दुर्गा शप्तशती का पाठ कल्याणकारी रहता है।*
6. *विवाहादि कार्यो में चंद्र-राहु आदि ग्रहों का अशुभ प्रभाव हो तो शिव पार्वती पूजन एवं पूर्णिमा का व्रत करना चाहिए।*
7. *सोमवार और पूर्णिमा को प्रातः काल स्नानादि कर चांदी के बर्तन में कच्ची लस्सी दूध गंगाजल युक्त की धारा शिवलिंग पर मंत्र पूर्वक चढ़ाना चाहिए।*
8. *प्रत्येक सोमवार को बबूल वृक्ष को भी दूध से सींचना लाभदायक रहता है।*
9. *चंद्र यदि संतान संबंधित अरिष्ट कर रहा हो तो शिवजी की आराधना मंत्र जप हवन करना शुभ होता है*।
10. *पूर्णिमा के दिन चंद्रोदय के समय चांदी अथवा तांबे के बर्तन में मधुमिश्रित पकवान यदि चंद्र को अर्पित किए जाए तो इनकी तृप्ति होती है।*
11. *पूर्णमाशी के दिन चांदी का कड़ा चांदी की चैन प्रतिष्ठा के बाद धारण करनी लाभदायी रहती है*।
12. *स्त्रियों को मोती की माला सोमवार के दिन जब स्वाति नक्षत्र पड़े प्रतिष्ठा कर गले मे धारण करने से अरिष्ट फलो की शांति होती है*।
13. *बारह वर्ष तक कि आयु के बालको की स्वास्थ्य रक्षा के लिए चांदी के गोल सिक्के पर चंद्र बीज मंत्र “ॐ श्रां श्री°श्रौ° सः चन्द्रमसे नमः” लिखवाकर इसी मंत्र से अभिमंत्रित कर प्रतिष्ठा पूर्वक गले मे धारण करना शुभ रहता है।*
14. *मानसिक व शारीरिक व्याधियों की शान्ति के लिए शरद पूर्णिमा की रात बादाम मेवा युक्त खीर चाँद की रौशनी में रखे अगले दिन सुबह भगवान को भोग लाग कर तथा ब्राह्मण को खिलाने के बाद स्वयं सेवन करने से अनेक रोगों की शांति होती है।*
15. *चंद्र की महादशा में शुक्र अथवा सूर्य की अंतर्दशा में क्रमशः रूद्र्राभिषेक तथा शिव पूजन व श्वेत वस्त्र खीर आदि दान करने से लाभ होता है*।
16. *क्षीरणी (खिरनी) की जड़ सोमवार रोहिणी नक्षत्र में सफेद धागे में चंद्र मंत्र से अभिमंत्रित करके धारण करने से विशेष शांति होती है*।
17. *प्रतिदिन सफेद गौ को मीठी रोटी एवं हरा चारा खिलाये।*
18. *छोटे बच्चों को कुंडली मे चंद्र अशुभ होने पर उन्हें कैल्शियम का सेवन कराए शुभ रहेगा।*
19. *चंद्र अशुभ ग्रहों राहु-शनि आदि से आक्रांत होकर अशुभ स्थानों 6, 8, 12 वे में हो तो दूध, दही, खोया, पनीर एवं अन्य श्वेत वस्तुओं का व्यवसाय न करें।*
20. *स्वास्थ्य अथवा मानसिक परेशानी होने पर जातक/जातिका चांदी के पात्र में ही जल का सेवन करें ।*
21. *यदि कुंडली मे चंद्र-केतु का अशुभ योग 6, 8, या 12 भाव मे हो तो जातको को हरा वस्त्र, केले, साबुत मूंग, हरा पेठा आदि का दान करना चाहिए*।
22. *चंद्र यदि व्यवसाय में हानि कर रहा हो तो जातक/जातिका को चंद्रग्रहण के समय आटा, चांवल, चीनी, गुड़, सूखा नारियल, सफेद तिल एवं सतनाजा आदि का दान करना चाहिए तथा ग्रहण काल मे चंद्र के बीज मंत्र का यथा सामर्थ्य जप करना लाभकारी होता है*।
23. *चंद्र यदि संतान सुख में बाधक हो तो रात्रि काल के समय दूध एवं पानी मे सोने की सलाई गर्म कर बुझाकर पति/पत्नी दोनों को पीना शुभ होगा।*
सादर, साभार, संकलित ।
” *मंगलमय भविष्य की हार्दिक शुभकामनाओं सहित मधुरिम प्रभात* “

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