पिछले कई महीनों से स्कूल बंद रहने से बच्चों की पढ़ाई का काफी नुकसान हुआ है। ऑनलाइन पढ़ाई, स्कूल जाकर जो समग्र शिक्षा होती है, उसका विकल्प नहीं है। संक्रमण का खतरा अभी टला नहीं है, इसलिए स्कूल खोलने के साथ सतर्कता भी बरतनी होगी। बच्चे ही देश में नई पौध हैं। इनकी जिंदगियों को बेहतर बनाना शिक्षा की ताकत से ही संभव है।
हिमशिखर धर्म डेस्क
एक संसारी और फकीर में क्या फर्क है, यह सवाल सालों से उठता आ रहा है। कभी आपके सामने हार्मोनियम आ जाए और यदि बजाना न आता हो, तो भी ठीक वैसा ही करिए जैसा एक अच्छा वादक करता है। आप धम्मन ठीक से चला लेंगे, उंगलियां अच्छे से जमा लेंगे, धुन भी निकलेगी, लेकिन होगी बेसुरी। लेकिन, जब वही सब क्रिया एक कुशल वादक करेगा तो सुर सही निकलेंगे। यही इस सवाल का उत्तर है।
महामारी के बाद अब हमारे सामने एक बड़ी समस्या आ रही है बच्चों की शिक्षा को लेकर। हम भारतीय लोग स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालयों को केवल कैम्पस के रूप में नहीं देखते। इन संस्थाओं में हम गुरुतत्व देखते हैं, जो शायद दुनिया नहीं देखती। जीवन को सही ढंग से टटोलना हो तो गुरुतत्व की आवश्यकता पड़ती है। अब जब ये संस्थान खुल रहे हैं, तो गुरु परंपरा को पुनर्जीवित करके ही खोली जाएं। बच्चों में यह भाव जगाया जाए कि वे केवल पढ़ने नहीं, जीवन को हासिल करने जा रहे हैं।
नौनिहालों पर महामारी का संकट दोहरा पड़ा है – पहला जीवन पर, दूसरा शिक्षा पर। कई निजी और कुछ हद तक सरकारी स्कूलों ने ऑनलाइन शिक्षण मॉड्यूल को अपनाया। लेकिन वही बच्चे ऑनलाइन शिक्षा हासिल कर पाए जिनके पास साधन और सुविधाएं थीं। विडम्बना यह है कि मोबाइल, लैपटॉप-कम्प्यूटर और नेटवर्क के अभाव में बड़ा वर्ग इससे वंचित रहा। इस तरह कोरोना ने सामाजिक खाई को बहुत चौड़ा कर दिया है।
कोरोना से जंग जारी है। इसमें एक दिन हमारी जीत जरूर होगी, लेकिन जब तक कोरोना पूरी तरह खत्म नहीं हो जाता तब तक भावी पीढ़ी की सुरक्षा को लेकर कोरोना गाइडलाइन के तहत मास्क के उपयोग, सैनिटाइजेशन व दो गज दूरी की पालना को लेकर जरूरी कदम भी उठाने होंगे।