सुप्रभातम् : संत ने समझाया ईश्वर और इंसान के साथ का फर्क

Uttarakhand

हिमशिखर धर्म डेस्क

एक बार संत अपने शिष्य के साथ बीहड़ वन से गुजर रहे थे। तभी उनके ध्यान का वक्त हुआ। वे दोनों ध्यान के लिए बैठे ही थे कि उनको एक शेर की गर्जना सुनाई दी। दोनों ने देखा कि शेर उनकी तरफ ही आ रहा है। शिष्य शेर को देखकर इतना घबरा गया कि वह जान बचाने के लिए एक पेड़ पर चढ़़ गया, किंतु संत व्यंकटेश खामोशी से ध्यान लगाते रहे। शेर वहां आया और चुपचाप आगे निकल गया।

शेर जब चला गया तो शिष्य पेड़ पर से उतरा और दोनों आगे बढ़े। थोड़ी देर बाद जब संत को मच्छर ने काटा तो उसको मानने के लिए उन्होंने अपने गाल पर चपत लगाई। यह देखकर शिष्य बोला, ‘गुरुदेव क्षमा करें मेरे मन में एक शंका है उसका समाधान करे। अभी थोड़ी देर पहले जब एक शेर आपके समीप आया तो आप बिलकुल नहीं घबराए, किंतु एक मच्छर के काटने पर आपको गुस्सा आ गया।’

संत ने जवाब दिया, ‘तुम ठीक कहते हो, लेकिन तुम भूल रहे हो, जब मैं ईश्वर के साथ में था। इसलिए मुझे डर नहीं लगा और न गुस्सा आया, जबकि मच्छर के काटते वक्त मैं एक इंसान के साथ था। यही वजह है कि जब शेर मेरे पास आया तो मुझे उसकी खबर तक नहीं हुई, जबकि मच्छर के काटने पर मैं बुरी तरह बौखला गया और उसको मारने के लिए मैने अपने ही गाल पर चपत लगा दी।

ईश्वर और इंसान के साथ रहने में यही तो फर्क है। इंसान का साथ दुनियादारी सीखाता है, जबकि ईश्वर का साथ दुनिया से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। इसके बावजूद दुनिया में इंसानों की संगति करना पड़ती है। क्योंकि उसके बिना काम नहीं चल सकता है। इसलिए आदमी को ईश्वर की आराधना में समय बीताना चाहिए।

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