मैनाक पुराणानुसार भारत के एक पर्वत का नाम है। जब श्रीराम केे भक्त हनुमान माता सीता की खोज में बिना विश्राम किए आकाश मार्ग से जा रहे थे, तब समुद्र ने अपने भीतर रहने वाले मैनाक पर्वत से निवेदन किया था कि वह ऊपर उठकर हनुमान को अपनी चोटी पर विश्राम करने के लिए कहे।
हिमशिखर धर्म डेस्क
रामायण में हनुमान जी समुद्र के ऊपर से उड़कर देवी सीता की खोज में लंका जा रहे थे। रास्ते में समुद्र के बीच में से एक पर्वत निकला जो कि सोने का था। उस पर्वत का नाम था मैनाक।
मैनाक पर्वत ने हनुमान जी से कहा, ‘आप उड़कर जा रहे हैं तो क्यों न कुछ देर मुझ पर विश्राम कर लें।’
हनुमान जी ने मैनाक पर्वत को देखा और उसे स्पर्श करके कहा, ‘आपने मेरा इतना ध्यान रखा और मुझे विश्राम करने के लिए प्रस्ताव दिया, इसके लिए धन्यवाद, लेकिन मैं अभी रुक नहीं सकता। मेरा लक्ष्य है सीता जी की खोज करना, ये श्रीराम का काम है। जब तक मैं अपना लक्ष्य पूरा नहीं कर लेता, तब तक मैं विश्राम नहीं कर सकता।’
मैनाक बोला, ‘अभी यात्रा बहुत लंबी है। आपको विश्राम कर लेना चाहिए।’
हनुमान जी बोले, ‘अभी मुझमें बहुत उत्साह है। इस समय विश्राम करने से मुझे आलस्य हो सकता है।’
हनुमान जी समझ गए थे कि ये सोने का पर्वत है। अगर मैं इस पर रुक गया तो कहीं न कहीं मेरे जीवन में आलस्य, भोग-विलास उतर सकता है। हनुमान जी मैनाक को धन्यवाद कहकर आगे बढ़ गए।
सीख – जब हम किसी लक्ष्य की ओर बढ़ते हैं तो हमें भी भोग-विलास, सुख-सुविधा के साधन मिलते हैं। कभी-कभी कार, मोबाइल, टीवी जैसी चीजें मैनाक की तरह हमें रोकती हैं। बुद्धिमानी ये होनी चाहिए कि इन्हें स्पर्श करें यानी इनका उपयोग करें और अपने लक्ष्य की ओर बढ़ जाएं। कुछ लोग इन चीजों में उलझ जाते हैं और रास्ता भटक जाते हैं।